Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 621
________________ १६१४ धर्मशास्त्र का इतिहास शिववाक्यावली-वीरेश्वर के पुत्र चण्डेश्वर द्वारा। ण्डतानिरूपण, गर्भस्रावाशीच, सद्यःशौच, शवानु" दे० प्रक० ९०। गमनाशीच, अन्त्येष्टिविधि, मुमूर्षुकृत्य, अस्थिसंचयन, शिवसर्वस्व-नि० सि० में एवं रघु० द्वारा उल्लिखित। उदकादिदान, पिण्डोद्रकदान, वृषोत्सर्ग, प्रेतक्रियाधिशिवाराधनदीपिका--हरि द्वारा। कारी, द्रव्यशद्धि पर। शिवार्चनचन्द्रिका-नि० सि० में व० । शुद्धिकौमुदी--सिद्धान्तवागीश भट्टाचार्य द्वारा 1 बड़ोदा शिवार्चनचन्द्रिका---अप्पयदीक्षित द्वारा। (सं० १०१८३)। शिवार्चनचन्द्रिका--श्रीनिकेतन.. के पुत्र श्रीनिवास भट्ट शुद्धिगुच्छ --गदाधर के कालसार में वर्णित । द्वारा। १६ प्रकाशों में। शुद्धिचन्द्रिका-कालिदास द्वारा। हुल्श (सं० ९३) । शिवार्चनपद्धति-अमरेश्वर द्वारा। शुद्धिचन्द्रिका--कौशिकादित्य के षडशीति या आशौचशिवार्चनशिरोमणि-नारायणानन्द नाथ द्वारा। निर्णय पर नन्दपण्डित द्वारा टीका। दे० प्रक० १०५ । शिवार्चनशिरोमणि---लोकानन्द नाथ के शिष्य ब्रह्मानन्द शुद्धचिन्तामणि--वाचस्पतिमिश्र द्वारा। दे० प्रक० ९८ । नाथ द्वारा। २० उल्लासों में। शुद्धितत्त्व-रघु० द्वारा। दे० प्रक० १०२ । जीवानन्द शिवालयप्रतिष्ठा-राधाकृष्ण द्वारा। द्वारा प्रका० । टी० बाँकुडा में विष्णुपुर के निवासी शिवाष्टमूर्तितत्त्वप्रकाश-सदाशिवेन्द्र सरस्वती के शिष्य राधावल्लभ के पुत्र काशीराम वाचस्पति द्वारा; - रामेश्वर द्वारा। कलकत्ता में १८८४ एवं १९०७ ई० में मुद्रित । शिष्टिभाष्य--दे. बौधायनगाभाष्य । टी० गुरुप्रसाद न्यायभूषणभट्टाचार्य द्वारा। नो० न्यू० शक्रनीतिसार-..-ऑपर्ट द्वारा मद्रास में सन १८९२ ई० (जिल्द १, पृ० ३७१) । टी० राधामोहन शर्मा में एव जीवानन्द द्वारा १८९२ ई० में प्रका० तथा प्रो० द्वारा; कलकत्ता में १८८४ एवं १९०७ में मुद्रित। विनयकुमार सरकार द्वारा सैकेड बुक्स आव दि शुद्धितत्त्वकारिका--रामभद्र न्यायालंकार द्वारा। उपहिन्दू सीरीज में अनूदित। चार अध्यायों में एवं वक्त शद्धिकारिका ही है। २५०० श्लोकों में। इसमें राजधर्म, अस्त्र-शस्त्रों शुद्धितरवकारिका--हरिनारायण की। रघु० के शुद्धिएवं बारूद (आग्नेयचूर्ण) आदि का वर्णन है। तत्त्व पर आधृत। शुक्लाष्टमी। शुद्धितत्त्वार्णव-श्रीनाथ कृत । शुद्धितत्त्व में व०। शुद्धदीपिका--दुर्गादत्तकृत। ह० प्र० (पृ० २१ एवं (रघु० कृत) लग० १४७५-१५२५ ई०।। २५५)। प्रयोगसार से संगृहीत। शुद्धिदर्पण--अनन्तदेव याज्ञिक द्वारा। शुद्धि की परिशुद्धसौख्य। भाषा यह दी हुई है-'विहितकर्हित्वप्रयोजको धर्मशुद्धिकारिका--(१) रामभद्र न्यायालंकार द्वारा । रघु० विशेषः शुद्धिः ।' गोविन्दानन्द की शुद्धिकौमुदी के ही के शुद्धितत्त्व पर आधृत। (२) नारायण वन्द्योपाध्याय विषय इसमें हैं। द्वारा। नो० न्यू० (२, पृ० १९६)। शुद्धिदीप --- (या-प्रदीप) केशवभट्ट द्वारा। गोविन्दानन्द शुद्धिकारिकावलि-मोहनचन्द्र वाचस्पति द्वारा । नो० की शद्धिकीमदी के विषयों का ही विवेचन है। न्यू० (१, पृ० ३६७-३६९)। शुद्धिरत्नाकर का शुद्धिदीप--नि० सि० एवं विधानपारिजात तथा रुद्रधर उल्लेख है। के शुद्धिविवेक में व०। शुद्धिकौमुदी---गोविन्दानन्द द्वारा। बिब्लि० इण्डि। शुद्धिदीपिका--(१) श्रीनिवास महीन्तापनीय कृत; दे० प्रक० १०१। ज्योति मात्रप्रशंसा एवं राशिनिर्णय, ग्रहनिर्णय, ताराशुद्धिकौमुदी- महेश्वर द्वारा। सहगमन, आशौच, सपि- शुद्धिनिर्णय, वारादिनिर्णय, विवाहनिर्णय, जातक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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