Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 623
________________ १६१६ ब्राह्मण) द्वारा। (२) गदाधर द्वारा । ( ३ ) श्रीकंठ शर्मा द्वारा । नो० न्यू० (जिल्द १, पृ० ३७२) । शुद्धिसेतु- - उमाशंकर द्वारा । शुनः पुच्छस्मृति - मिता० ( याज्ञ० ३।१६ ) एवं अपरार्क द्वारा व० । शुभकर्मनिर्णय -- मुरारि मिश्र द्वारा । गोभिल के अनुसार गृह्य कृत्यों पर । १५वीं शताब्दी के अन्त में (नो०, जिल्द ६, पृ० ७) । शूद्रकमलाकर - (या शूद्रधर्मतत्त्व) कमलाकर भट्ट कृत । दे० प्रक० १०६ । शूद्रकर्मवृत्ति - शेषकृष्ण की शुद्धाचारशिरोमणि में व० । शूद्रकुलवी पिका- रामानन्द शर्मा द्वारा । बंगाल के कायस्थों के इतिहास एवं वंशावली का विवेचन है । नो० (जिल्द २, पृ० ३५) । धर्मशास्त्र का इतिहास सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विवाह पर एवं पंचमहायज्ञों पर भी । मयूख एवं शुद्धितत्त्व का उल्लेख है । १६४० ई० के उपरान्त । संस्कार के अंश को संस्कारदीपिका भी कहा गया है । शूद्रपद्धति स्मृतिमहाराज के अंश के रूप में कृष्णराज द्वारा प्रका० । मदनरत्न का उ० है । गोदान से आरम्भ है। बड़ोदा (सं० ८०२३) । शूद्रविवेक - रामशङ्कर द्वारा । शूद्रश्राद्धपद्धति - रामदत्त ठक्कुर द्वारा । शूद्रषट्कर्मचन्द्रिका | शूद्रसंस्कारदीपिका --- कृष्णभट्ट के पुत्र गोपालभट्ट द्वारा । बड़ोदा (सं० ८९७५) । शूद्रसंकर -- अलवर (सं० १४९२ ) । शूद्रस्मृति । शूत्रकृत्य - - लालबहादुर द्वारा । शूद्रकृत्यविचारतत्त्व -- रघु० कृत । दे० प्रक० १०२ ॥ शूद्राचार -- लगता है, केवल पुराणों के उद्धरण मात्र शूद्रजपविधान । दिये हुए है। शूद्रधर्मतत्त्व — कमलाकर भट्ट द्वारा । यह शूद्रकमलाकर शूद्राचारचिन्तामणि - मिथिला के हरिनारायण के दरबार में वाचस्पति मिश्र द्वारा लिखित । हो है । स्मृतिकौमुदी ही है । दे० प्रक० ९३ । शूद्रधर्मोद्योत --- दिनकरोद्योत का एक अंश । गागाभट्ट द्वारा पूर्ण किया गया । शूद्रपञ्चसंस्कारविधि - कश्यप द्वारा । शूद्रधर्मबोधिनी - मदनपाल द्वारा । यह मदनपाल की शूद्राचारपद्धति -- रामदत्त ठक्कुर द्वारा। यह संदिग्ध है। कि लेखक वही रामदत्त है, जो चण्डेश्वर का चचेरा भाई था । शूद्राचारविवेकपद्धति-गोण्डिमिश्र द्वारा । शूद्राचारशिरोमणि -- गोविन्दार्णव के लेखक नृसिंहशेष के पुत्र कृष्णशेष द्वारा | केशवदास ( जिन्होंने दक्षिण में अपनी शक्ति प्रदर्शित की और जो परमवैष्णव के नाम से प्रसिद्ध थे ।) के पुत्र पिलाजीनृप के अनुरोध पर प्रणीत । ड०का पाण्डु० (सं० ५५, १८७२-७३) स्तम्भतीर्थ (खम्भात ) में संवत् १६४७ की फाल्गुन वदी ४, गुरुवार ( मार्च ४, १५९१ ई० ) को उतारी गयी । गोविन्दार्णव, मिताक्षरा, शंखधर, शद्रक शूद्र पद्धति - मकरन्दपाल के पुत्र त्रिविक्रमात्मज देणपाल के पुत्र अपिपाल द्वारा । एक पाण्डु० गौड़देश में संवत् १४४२ (१५२० ई०) में उतारी गयी (नो०, जिल्द ५, पृ० ३०२ ); श्राद्धक्रियाकौमुदी एवं श्रद्धतत्त्व में व० । स्पष्ट वर्णन है कि यह सोममिश्र के ग्रन्थ पर आधृत है । अन्त के श्लोक में आया है'शाके युग्मसरोज सम्भवमुखाम्भोराशिचन्द्रान्विते' (शक संo १४४२ = १५२० ई० ) । शूद्रपद्धति - गोपाल के पुत्र कृष्णतनय गोपाल ( उदास विरुदधारी) द्वारा । शूद्रों के १० संस्कारों पर एक बृहत् ग्रन्थ, यथा--गर्भाधान, पुंसवन, अनवलोभन, Jain Education International वृत्ति, शूद्रोत्पत्ति, स्मृतिकौमुदी का उ० है और लक्ष्मण के आचाररत्न में व० । १५२०-१५९० ई० के बीच में । 'शेष' वंश के लिए दे० इण्डि० एण्टीक्वेरी ( जिल्द ४१, पृ० २४५) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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