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धर्मशास्त्रीय ग्रन्थसूची
१५९७ तिथि सं० १५५२ एवं संख्या ४०५५ की तिथि १५०७ (पृ० १३६-१४१) एवं जीवानन्द (भाग १, पृ० संवत्।
१७७-१९१) द्वारा प्रका० । लघुकालनिर्णय---माधवाचार्य द्वारा । प्रथम श्लोक लष्वत्रिस्मृति--जीवानन्द (भाग १, पृ० १-१२) द्वारा 'व्याख्याय माधवाचार्यों धर्मान पाराशरानथ' है और प्रका० । दे० प्र० १६। अन्तिम है--'व्यतिपाते च वैधृत्यां तत्कालव्यापिनी लध्वाश्वलायनस्मृति--आनन्दाश्रम (पृ० १४२-१८१) तिथिः' (दे० बीकानेर, पृ० ४०८-४०९) । द्वारा प्रका। लघुचाणक्य।
ललितार्चनचन्द्रिका--विद्यानन्दनाथ के गुरु सच्चिदानन्दलघुचिन्तामणि--वीरेश्वरभट्ट गोडबोले द्वारा। नाथ द्वारा। लघुजातिविवेक-शूद्रकमलाकर में व० ।
ललितार्चनदीपिका। लघुनारदस्मृति-नि० सि० एवं सं० कौ० में व०। ललितार्जनपद्धति--स्वयंप्रकाशानन्दनाथ के शिष्य चिदालघुनिर्णय-शिवनिधि द्वारा (बड़ोदा, सं० १२८५४)। नन्दनाथ द्वारा। सम्भवतः यह ललितार्चनचन्द्रिका ही लघुपरति--(या कर्मतत्त्वप्रदीपिका) रघुनाथ के पुत्र है।
पुरुषोत्तमात्मज कृष्णभट्ट द्वारा। कारिका, वृत्ति, लवणश्राव--(मृत्यु के उपरान्त चौथे दिन मृत को वामनभाष्य एवं जयन्त पर आधारित । आचार, लवण की रोटियों के अर्पण पर)। व्यवहार पर विवेचन। नो० (जिल्द १०, पृ० लिखितस्मृति--दे० प्र० १३। जीवानन्द (भाग ३, २४८); बड़ोदा (सं० १४२२, पाण्डु० संवत् १५९२, पृ० ३७५-३८२) एवं आनन्दाश्रम (पृ० १८२१५३५-६ ई०)। चन्द्रिका, स्मृतिसार एवं स्मृत्यर्थ- १८६) द्वारा प्रका०। ड० का० (पाण्डु० ४४,
सार का उल्लेख है। १३२०-१५०० ई० के बीच। १८६६-६८) में ६ अध्यायों में एक लिखितस्मृति है, लघुपाराशरस्मृति।
जिसमें वसिष्ठ एवं अन्य ऋषि लिखित से चातुर्वर्ण्य - लघुबृहस्पतिस्मृति।
धर्म एवं प्रायश्चित्तों के प्रश्न पूछते हुए उल्लिखित हैं। लघुयमस्मृति--अपरार्क (याज्ञ० १।२३८) एवं हलायुध लिङ्गतोभद्र । (ब्राह्मणसर्वस्व) द्वारा उल्लिखित ।
लिङ्गतोभद्रकारिका। लघुदसिष्ठस्मृति ।
लिङ्गधारणचन्द्रिका। लघुविष्णुस्मृति--अपरार्क एवं हलायुध (ब्राह्मणसर्वस्व) लिङ्गधारणदीपिका। द्वारा व० । आनन्दाश्रम (पृ० ११७-१२३) द्वारा लिङ्गप्रतिष्ठा--अनन्त द्वारा। प्रका।
लिङ्गप्रतिष्ठापनविधि---अनन्त द्वारा (बौधायन के लघुव्यास-संस्कारमयूख में व० । जीवानन्द (भाग २, अनुसार)। इण्डि० आ० (जिल्द ३, पृ० ५८४पृ० ३१०-३२०) द्वारा प्रका० ।
५८५)। लघुशंखस्मृति--आनन्दाश्रम (पृ. १२४-१२७) द्वारा लिङ्गाविप्रतिष्ठाविधि-रामेश्वर भट्ट के पुत्र नारायणभट्ट प्रका।
द्वारा। लघुशातातपस्मृति--आनन्दाश्रम (पृ. १२८-१३५) लिङ्गार्चनचन्द्रिका--विष्णु-पुत्र गदाधरात्मज सदाशिव द्वारा प्रका।
दशपुत्र द्वारा जयसिंह को प्रसन्न करने के लिए प्रणीत। लघुशौनकस्मृति---१४४ श्लोकों में (बड़ोदा, सं० लेखक ने आशौचचन्द्रिका भी लिखी है। १८वीं ११८६३)।
शताब्दी का प्रथम चरण । लघुहारीतस्मृति अपराक द्वारा व। आनन्दाश्रम लेखपंचाशिका---५० प्रकार के विक्रयपत्रों, प्रतिज्ञापत्रों
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