Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 609
________________ १६०२ धर्मशास्त्र का इतिहास विवाववारिधि-रमापति उपाध्याय सन्मिश्र द्वारा। विवाहतत्त्व-(या उद्वाहतत्त्व) रघु० द्वारा। दे० प्र० ___ व्यवहार के १८ आगमों पर। १०२। टी. काशीराम द्वारा। विवादव्यवहार-गोपाल सिद्धान्तवागीश द्वारा। विवाहतत्त्वार्णव--रघु० के उद्वाहतत्त्व (जिल्द २, पृ० विवादसार-कुल्लूककृत। लेखक के श्राद्धसागर में ११७) में व०। व०। दे० प्रक० ८८। विवाहविरागमनपद्धति। विवादसारार्णब-सर विलियम जोंस के कहने पर सन् विवाहनिरूपण--नन्दभट्ट द्वारा । १७८९ ई० में सर्वोर शर्मा त्रिवेदी द्वारा ९ तरंगों विवाहनिरूपण-वैद्यनाथ द्वारा। में संगहीत। इसमें आया है-'सविल्य मिस्तर- विवाहपटल-रघु० के ज्योतिस्तत्त्व में व०। सम्भवतः श्रीजोन्समहीपाज्ञप्त' आदि। मद्रास गवर्नमेण्ट वराहमिहिर या शाङ्गधर का ज्योतिष-सम्बन्धी पाण्डु०, जिल्द ६, पृ० २४०७, सं० ३२०३। ग्रन्थ। विवादसिन्धु। विवाहपटल---सारंगपाणि (शाङ्गपाणि ? ) द्वारा, जो विवादार्णवभञ्जन--- (या भङ्ग) गौरीकान्त एवं अन्य मुकुन्द के पुत्र थे। । पण्डितों द्वारा संगृहीत। ड० का० पाण्डु० सं० विवाहपटल-हरिदेवसूरि द्वारा। ३६४ (१८७५-७६ ई०); नो० (जिल्द ९, पृ० विवाहपटलस्तवक--सोमसुन्दर-शिष्य द्वारा। बड़ोदा २४४, स० ३१६५) । (सं० १३३)। विवादार्णवसेतु-बाणेश्वर एवं अन्य पण्डितों द्वारा विवाहपद्धति-(या विवाहादिपद्धति, गोभिलीय)। वारेन हेस्टिग्स के लिए संगृहीत एवं हल्हेड द्वारा विवाहपद्धति--गौरीशंकर द्वारा। अंग्रेजी में अनूदित (१७७४ ई० में प्रका०)। ऋणा- विवाहपद्धति--चतुर्भुज द्वारा। दान एवं अन्य व्यवहारपदों पर २१ मियों (लहरों विवाहपद्धति-जगन्नाथ द्वारा। अर्थात् प्रकरणों) में विभाजित। बम्बई के वेंकटेश्वर विवाहपति-नरहरि द्वारा। प्रेस में मुद्रित। इस संस्करण से पता चलता है कि यह विवाहपति---नारायण भट्ट द्वारा। ग्रन्थ रणजीतसिंह (लाहौर) की कचहरी में प्रणीत विवाहपति--- रामचन्द्र द्वारा। हुआ था। अन्त में प्रणेता पण्डितों के नाम आये हैं। विवाहपद्धति-(या विवाहादिकर्मपद्धति) देवादित्य के नो० (जिल्द १०. पृ० ११५-११६) एवं नो० न्यू० पुत्र गणेश्वरात्मज रामदत्त राजपण्डित द्वारा। लेखक (जिल्द १, पृ० ३३९-३४१, जहाँ पण्डितों के नाम चण्डेश्वर के चचेरे भाई थे अतः वे लग० १३१०० तो आये हैं, किन्तु रणजीतसिंह का उल्लेख नहीं है। १३६० ई० में थे। आभ्युदयिकश्राद्ध, विवाह, विवादार्थसंग्रह। चतुर्थीकर्म, पुंसवन एवं समावर्तन तक के अन्य विवाहकर्म--मथुरा के अग्निहोत्री विष्णु द्वारा। संस्कारों पर। वाजसनेयियों के लिए। विवाहकर्मपखति-दे० विवाहपद्धति। विवापरति-अनूपविलास से। विवाहकर्ममन्त्रव्याख्या सुबोधिनी-अलवर (संख्या विवाहपद्धतिव्याल्या-गूदड़मल्ल द्वारा। __१४५२) । हरिहर पर आधारित है। विवाहप्रकरण-कर्क की लघुकारिका से। विवाहकर्म समुच्चय--पाण्डु० सन् १९१३ ई० में उतारी विवाहरत्न- हरिभट्ट द्वारा। १२२ अध्यायों में। गयी। ह० प्र० (पृ० ११)। विवाहरत्नसंक्षेप-क्षेमकर द्वारा। विवाहकौमुदी-से० प्रा० (सं० ५१४०-४१)। विवाहवन्दावन-राणिग या राणग के पुत्र केशवाचार्य विवाहचतुर्थीकर्म। द्वारा। विवाह के शुभ मुहूर्तों पर १७ अध्यायों में। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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