Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 587
________________ १५८० धर्मशास्त्र का इतिहास प्रायश्चित्तशतद्वयोकारिका--गोपाल स्वामी द्वारा प्रायश्चिससारसंग्रह-रत्नाकर मिश्र द्वारा। (बोधायनीय)। प्रायश्चित्तसारावलि--बहन्नारदीयपूराण का एक अंश । प्रायश्चित्तश्लोकपति-गोविन्द द्वारा। प्रायश्चित्तसुधानिधि-मायण के पुत्र एवं माधवाचार्य प्रायश्चित्तसंक्षेप-चिन्तामणि न्यायालङ्कार द्वारा। के भाई सायण द्वारा। दे० प्र० ९२ ___सम्भवतः यह उपर्युक्त प्रायश्चित्तव्यवस्थासंक्षेप ही है। प्रायश्चित्तसुबोधिनी-श्रीनिवासमखी द्वारा (आपप्रायश्चित्तसंग्रह-कृष्णदेव स्मार्तवागीश द्वारा। नो० स्तम्बीय)। न्यू० (१, पृ० २३९)। प्रायश्चित्तसेतु--सदाशंकर द्वारा। प्रायश्चित्ससंग्रह-देवराज द्वारा। यह हिन्दी में है। प्रायश्चित्ताध्याय----महाराजसहस्रमल्ल श्रीपति के पुत्र काशी के महाराज चेतसिंह के लिए लिखित; महादेव के निबन्धसर्वस्व का तृतीय अध्याय । इण्डि० १७७०-१७८१ ई०। आ० (जिल्द ३, पृ० ५५५)। प्रायश्चित्तसंग्रह-नारायण भट्ट द्वारा । शूलपाणि रघु०, प्रायश्चित्तानुक्रमणिका--वैद्यनाथ दीक्षित द्वारा। स्मृतिसागरसार का उल्लेख है, अतः १६०० ई० के प्रायश्चित्तेन्दुशेखर---शिवभट्ट एवं सती के पुत्र नागोजिउपरान्त । प्रायश्चित्त को परिभाषा यों दी हुई है--- भट्ट द्वारा। दे० प्रक० ११० ; पाण्डु० (नो०, जिल्द 'पापक्षयमात्रकामनाजन्यकृतिविषयः पापक्षयसाधन- ५, पृ० २३) की तिथि सं० १८४८ (१७८१-८२ कम प्रायश्चित्तम्।' प्रायश्चित्तसदोदय-देवेश्वर के पुत्र सदाराम द्वारा। प्रायश्चित्तेन्दुशेखरसारसंग्रह-शिवभट्ट एवं सती के पुत्र प्रायश्चित्तसमुच्चय--त्रिलोचनशिव द्वारा। नागोजि द्वारा। इण्डि० आ० (जिल्द ३, पृ० ५५५) । प्रायश्चितसमुच्चय--भास्कर द्वारा। प्रायश्चित्तोड्योत-दिनकर द्वारा। दिनकरोद्योत का प्रायश्चितसार-त्र्यम्बकभट्ट मोल्ह द्वारा। बंश। प्रायश्चित्तसार---दलपति द्वारा (नृसिंहप्रसाद का अंश)। प्रायश्चित्तोद्योत-मदनसिंह देव द्वारा (मदनरत्न का दे० प्रक० ९९। अंश)। दे० प्रक० ९४॥ प्रायश्चित्तसार-भट्टोजि दोक्षित द्वारा। जयसिंह- प्रायश्चित्तोद्वार-महादेव के पुत्र दिवाकर ('काल' कल्पद्रुम द्वारा व०। उपाधि) द्वारा (इसके अन्य नाम हैं स्मार्तप्रायश्चित्त प्रायश्चित्तसार-श्रीमदाउचा शुक्ल दीक्षित द्वारा। एवं स्मार्तनिष्कृतिपद्धति)। बड़ोदा (सं० १३३४, प्रतापनारसिंह मेंव०। दे०बी० बी० आर० ए०एस० १५४३ एवं १६६३)। (पृ० २२४)। प्रायश्चित्तौघसार--अपराधों को चार शीर्षकों में बाँटा प्रायश्चित्तसार--हरिराम द्वारा। गया है-घोर, महापराध, मर्षणीय (क्षन्तव्य) एवं प्रायश्चित्तसार--यादवेन्द्र विद्याभूषण के स्मृतिसार से। लघु (और इनके प्रायश्चित्ते पर)। नो० न्यू० (१, पृ० २४०), पाण्डु० तिथि १६१३ प्रासाददीपिका--जटमल्लविलास द्वारा व०। १५०० ई० के पूर्व। प्रायश्चितसारकौमुदी--वनमाली द्वारा। नो० न्यू० प्रासावप्रतिष्ठा--गृहरि ('पण्ढरपुर' उपाधि) द्वारा। (जिल्द ९, पृ० ५८)। प्रतिष्ठामयूख एवं मत्स्यपुराण पर आधारित। प्रायश्चित्तसारसंग्रह-आनन्दचन्द्र द्वारा। नो० न्यू० भडकमकर संग्रह में पाण्डु० श०सं० १७१४ में उतारी (जिल्द ३, पृ० १२६)। गयी। नि० सि० एवं रामवाजपेयी का उल्लेख है। प्रायश्चित्तसारसंग्रह-नागोजिभट्ट द्वारा । दे० प्र०११०। प्रासावप्रतिष्ठा--भागुणिमिश्र द्वारा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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