Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 599
________________ १५९२ धर्मशास्त्र का इतिहास यतिधर्मसंग्रह-सर्वज्ञविश्वेश के शिष्य विश्वेश्वर यतिसिद्धान्तनिर्णय-सच्चिदानन्द सरस्वती द्वारा। सरस्वती द्वारा। आनन्दाश्रम (पूना) द्वारा प्रका०। यत्यनुष्ठान। यतिधर्मसमुच्चय--यादवप्रकाश द्वारा। वैष्णवों के लिए यत्यनुष्ठानपद्धति-शंकरानन्द द्वारा। ११ पर्यो में। यत्यन्तकर्मपदति-रघनाथ द्वारा। यतिधर्मसमुच्चय-रघुनाथ भट्टाचार्य द्वारा। यत्याचारसंग्रहीययतिसंस्कारप्रयोग--विश्वेश्वर सरस्वती यतिधर्मसमुच्चय--सर्वज्ञ विश्वेश के शिष्य विश्वेश्वर- (नो०, जिल्द १, पृ० १७४) । सरस्वती द्वारा। पाण्डु० (नो०, जिल्द ८,पृ० २९३) यत्याचारसप्तर्षिपूजा। की तिथि सं० १६६८ (१६११-१२ ई.)। इसे यत्याराधनप्रयोग। यतिधर्मसंग्रह (उपर्युक्त) भी कहा जाता है। यत्याहिक-बड़ोदा (सं० ८५६३) । यतिनित्यपदति--आनन्दानन्द द्वारा (बड़ोदा, सं० यमस्मृति--दे० प्रक० ४९; जीवानन्द (भाग १, पृ० ५०१७)। ५६०-५६७) एवं आनन्दाश्रम (पृ० ११२-११६) पतिपत्नीधर्मनिरूपण--पूर्णानन्द के शिष्य पुरुषोत्तमानन्द द्वारा प्रका। सरस्वती द्वारा। यल्लाजीय--यल्लभट्ट के पुत्र यल्लाजि द्वारा। अन्त्येष्टि, यतिमरणोपयुक्तांशसंग्रह। सपिण्डीकरण आदि पर। आश्वलायनसूत्र, भारद्वाज यतिलिंगसमर्थन-तीन स्कन्धों में। सूत्र और इनके भाष्यों तथा शौनक पर आधारित। यतिवन्दननिषेध। पशवन्तभास्कर-पुरुषोत्तमात्मज हरिभट्ट के पुत्र यतिवन्वनशतदूषणी। आपाजिभट्ट-तनुज हरिभास्कर या भास्कर द्वारा। यतिवन्दनसमर्थन। बुन्देलखण्ड के राजा इन्द्रमणि के पुत्र यशवन्तदेव के यतिवल्लभा-(या सेन्यासपद्धति) विश्वकर्मा द्वारा। आश्रय में। बीकानेर (पृ० ५०८) में इसका एक अंश संन्यास, यति के चार प्रकारों (कुटीचक, बहूदक, संवत्सरकृत्यप्रकाश है। नो० (जिल्द ४, पृ०२६९)। हंस एवं परमहंस) एवं उनके कर्तव्यों पर। नो० । हरिभट्ट त्र्यम्बकपुरी से आये थे और काश्यप गोत्र (जिल्द १०, १७५)। विधानमाला की चर्चा हुई है। के थे एवं आपाजिभद्र काशी में रहते थे। लग० यतिसंस्कार--(प्रतापनारसिंह का एक भाग)। पतिसंस्कार-पुत्र द्वारा यति की अन्त्येष्टि एवं श्राद्ध याज्ञवल्क्यस्मृति-दे० ख० १,प्र० ३४। टी० अपरार्क पर। नो० (जिल्द १०, पृ० १०। द्वारा; दे० प्रक० ७९ । टी० कुलमणि द्वारा। टी० यतिसंस्कारप्रयोग-रायम्भद्र द्वारा। देवबोध द्वारा; रघु० के शुद्धितत्त्व में व०। टी० यतिसंस्कारप्रयोग-विश्वेश्वर द्वारा। नो० (जिल्द १, धर्मेश्वर द्वारा; शूलपाणि के प्रायश्चित्तविवेक में __ पृ० १७३)। व० (पृ० ५२९)। टी० बालक्रीड़ा, विश्वरूप यतिसंस्कारविषि-(दो भिन्न ग्रन्थ) दे० स्टीन (पृ. द्वारा; दे. प्रक० ६०। टी० पर टी विभावना। टी० पर टी. अमृतस्यन्दिनी (सोमयाजी द्वारा)। यतिसंस्कारविधिनिर्णय-इण्डि० आ० (पृ. ५२३, टी० पर टी० वचनमाला, सोमयाजी के शिष्य के सं० १६४७) । शिष्य द्वारा। टी० पर टी. अज्ञात । टी. मितायतिसंस्कारोपयोगिनिर्णय। क्षरा, मथुरानाथ द्वारा । टी० मिताक्षरा, विज्ञानेश्वर यतिसन्ध्यावातिक-शंकर के शिष्य सुरेश्वर द्वारा। द्वारा; दे० प्रक० ७०, मिताक्षरा की टीकाओं के नो० (जिल्द १०, पृ. ९)। लिए देखिए 'मिताक्षरा'। टी० रघुनाथभट्ट द्वारा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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