Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 591
________________ १५८४ भास्कराह्निक | भिक्षुतत्त्व - महादेवतीर्थ के शिष्य श्रीकण्ठतीर्थ द्वारा | यतिधर्म एवं अन्य संन्यासग्रहणार्थी लोगों के कर्तव्यों पर | नो० न्यू० (जिल्द १, पृ० २६० ) । भीमपराक्रम —— गोविन्दानन्द की शुद्धिकौमुदी में, श्राद्ध सौख्य (टोडरानन्द) एवं तिथितत्त्व में व० । यह ज्योतिष-ग्रन्थ सा लगता है । भुक्तिदीपिका --- ग्रहण के पूर्व भोजन करने के प्रश्न पर । भुक्तिप्रकरण -- कमलाकर द्वारा । भुजबलभीम -- भोजराज द्वारा । दे० प्रक० ६४ । शूलपाणि ( श्राद्धविवेक) एवं टोडरानन्द द्वारा व० । ज्योतिष-ग्रन्थ | भूप्रतिमादान । भृगुस्मृति - विश्वरूप, धर्मशास्त्र का इतिहास मिताक्षरा, अपरार्क द्वारा व० । भैरवाचपारिजात - जैत्रसिंह द्वारा । मण्डपकर्तव्यतापूजापद्धति -- शिवराम शुक्ल द्वारा । भूतशुद्धि-- औफेस्ट का लिपजिग कैटलाग (सं० मण्डपकुण्ड मण्डन -- नरसिंहभट्ट सप्तर्षि द्वारा। टी० प्रका५३८) । भूतशुद्धचादिप्राणप्रतिष्ठा - - ओफेस्ट (सं० ५३७) । भूपालकृत्य समुच्चय-- चण्डेश्वर के कृत्यरत्नाकर ( पृ० ४९९) में व० । सम्भवतः यह भोज धारेश्वर का ग्रन्थ है। शिका ( लेखक कृत ) । मण्डपकुण्डसिद्धि-- वरशर्मा के पुत्र विट्ठलदीक्षित द्वारा । श० सं० १५४१ (१६१९-२० ई० ) में काशी में प्रणीत । विवृति ( लेखक द्वारा ); कुण्डकौमुदी, कुण्ड रत्नाकर, प्रतिष्ठासारसंग्रह, प्रयोगसार, रामवाजपेयी के उल्लेख हैं । मण्डपनिर्णय-- उत्सर्गमयूख में उल्लिखित । भूपालपद्धति -- कुण्डाकृति में व० । भूपालवल्लभ -- परशुराम द्वारा । धर्म, ज्योतिष ( फलित), साहित्य-शास्त्र आदि पर एक विश्वकोश; नि० सि०, निर्णयदीपक, कालनिर्णयसिद्धान्तव्याख्या में व० । मण्डपप्रकरण । मण्डपोद्वासनप्रयोग - धरणीधर के पुत्र द्वारा । मण्डलकारिका -- ऑफरूट (सं० ६४७ ) । मण्डलदेवतास्थापन ---- ओफेस्ट (सं० ६४८ ) | मतपरीक्षा । मतोद्धार -- शकरपण्डित द्वारा । जीमूतवाहन ( कालविवेक), Jain Education International भैरवाचपारिजात - श्रीनिकेतन के पुत्र एवं सुन्दरराज के शिष्य श्रीनिवासभट्ट द्वारा । भ्रष्टवैष्णवखण्डन -- श्रीधर द्वारा । मकरन्दप्रकाश--- हरिकृष्ण सिद्धान्त द्वारा । आह्निक, संस्कार पर। पाण्डु० ( बीकानेर, पृ० ४१६) की तिथि सं० १७२५ (१६६८- ९ ई० ) । मङ्गलनिर्णय -- केशव दैवज्ञ के पुत्र गणेश द्वारा उपनयन, विवाह आदि के कृत्यों पर । मञ्जरी - - बहुत-से ग्रन्थों के नाम के अन्त में आती है, यथा--गोत्रप्रवरमञ्जरी, स्मृतिमञ्जरी (गोविन्दराजकृत) । मठप्रतिष्ठातत्त्व --- रघुनन्दनकृत । दे० प्रक० १०२ । मठाम्नायादिविचार - शंकराचार्य सम्प्रदाय के प्रमुख सात मठों के धार्मिक कृत्यों पर । नो० (जिल्द १०, २५६ ) एवं स्टीन ( पृ० ३१२ ) । मठोत्सर्ग -- कमलाकर द्वारा सें० प्रा० (सं० ३७७१ ७२)। मठोत्सर्ग -- माग्निदेव द्वारा (सें० प्रा० (सं० ३७७० ) । मणिमञ्जरोच्छेदिनी । मथुरासेतु -- आपदेव के पुत्र अनन्तदेव द्वारा स्मृतिकौस्तुभ में व० । ० प्रक० १०९ । मदनपारिजात --- मदनपाल का कहा गया है (विश्वेश्वर भट्ट द्वारा प्रणीत) । दे० प्रक० ९३ । मदनमहार्णव- दे० ' महार्णव' | मदनरत्न --- ( या मदनरत्नप्रदीप) मदनसिंहदेव का कहा गया है। दे० प्रक० ९४ । अलवर (उद्धरण (३३६, समयोद्योत का ) । बड़ोदा (सं० ४०३५, शुद्धि पर सं० १५५१, १४९४-५ ई० ) ; इसमें For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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