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धर्मशास्त्र का इतिहास मार्तण्डदीपिका-अहल्याकामधेनु में व०।
टी० मुकुन्दलाल द्वारा। टी. रघुनाथ वाजपेयी मार्तण्डार्चनचन्द्रिका--मुकुन्दलाल द्वारा।
द्वारा; पीटर्सन की छठी रिपोर्ट (पृ० ११)। टी० मालववर्शन--चण्डेश्वर के दानरत्नाकर में उल्लिखित ।। सिद्धान्तसंग्रह, राधामोहन शर्मा द्वारा। टी० हलायुध
सम्भवतः यह भोज के किसी मत का संकेत मात्र है, द्वारा। टी. व्याख्यानदीपिका, देवराजभट्ट के पुत्र न कि इस नाम की कोई पुस्तक है।
निर्दू रिबसवोपाध्याय द्वारा (व्यवहार पर)। मासकृत्य।
मिताक्षरासार--(विज्ञानेश्वर के ग्रन्थ का सारांश) मासतत्त्वविवेचन--अज्ञात। मासों एवं उनमें किये जाने मयाराम द्वारा। वाले उपवासों, भोजों एवं धार्मिक कृत्यों पर। मिथिलेशाहिक-गंगोली संजीवेश्वर शर्मा के पुत्र रत्नबीकानेर (प० ४२१) ।
पाणि शर्मा द्वारा। मिथिला के राजकुमार छत्रसिंह मासदर्पण।
के आश्रय में प्रणीत। सामवेद के अनुसार शौचविधि, मासनिर्णय-भट्टोजि द्वारा।
दन्तधावन, स्नान, सन्ध्याविधि, तर्पण, जपयज्ञ, देवमासमीमांसा-गोकुलदास महामहोपाध्याय द्वारा। पूजा, भोजन, मांसभक्षण, द्रव्यशुद्धि, गार्हस्थ्यधर्म
चान्द्र, सौर, सावन एवं नाक्षत्र नामक चार प्रकार नामक आह्निकों पर। नो० (जिल्द ६ पृ० ३०-३२) । के मासों एवं वर्ष के प्रत्येक मास में किये जाने वाले इस ग्रन्थ में मिथिलेशचरित है जिसमें महेशठक्कुर धार्मिक कृत्यों पर।
एवं उनके ९ वंशजों का उल्लेख है, और ऐसा आया मासादिनिर्णय-दुण्ढि द्वारा।
है कि महेश को दिल्ली के राजा से राज्य प्राप्त हुआ मासिकश्रावनिर्णय--कमलाकर के पिता रामकृष्ण द्वारा। था। नो० (जिल्द ६, पृ० ४८)। नि० सि० में व०।
मीमांसापल्लव-चिपति एवं रुक्मिणी के पुत्र इन्द्रपति मासिकश्राद्धपद्धति-गोपीनाथ भट्ट द्वारा।
द्वारा। एकादशीव्रत, श्राद्ध, उत्सर्ग जैसे धर्मशास्त्रीय मासिकश्रावप्रयोग-(आपस्तम्बीय) रघुनाथ भट्ट विषयों पर मीमांसा के नियम प्रयुक्त हैं। नो० सम्राटस्थपति द्वारा।
(जिल्द ५, पृ० २८१-८२) इनके गु गोपालभट्ट थे। मासिकश्रावमानोपन्यास-मौनी मल्लारिदीक्षित द्वारा। मुक्तिक्षेत्रप्रकाश-आपाजिभट्ट के पुत्र भास्कर द्वारा। मिताक्षरा--हरदत्तकृत गौतमधर्मसूत्र पर टी०। दे० । अयोध्या, मथुरा, माया आदि सात तीर्थों पर प्रकाशों प्रक० ८६।
में विभक्त। बड़ोदा, सं० १२३८६। लेखक ने मिताक्षरा-मथुरानाथ द्वारा याज्ञवल्क्यस्मृति पर टी०।। प्रयाग के लिए 'सितासिते सरिते', अयोध्या के लिए मिताक्षरा-विज्ञानेश्वर द्वारा याज्ञवल्क्यस्मृति पर टी०। 'अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या' (तैत्तिरी
इसे ऋजुमिताक्षरा भी कहा जाता है । दे० प्रक०७०।। यारण्यक) 'वागक्षरं प्रथमजा' (ते. ब्रा०) एवं टी० प्रमिताक्षरा या प्रतीताक्षरा, नन्दपण्डित द्वारा; मथुरा, माया काशी के लिए क्रम से 'गोपालतापिनी', दे० प्रक० १०५ । टी० बालम्भट्टी (उप० लक्ष्मी- 'नृसिंहपूर्वतापनीय' एवं 'रामतापनीय' वैदिक वचन व्याख्यान) लक्ष्मीदेवी द्वारा। दे० प्रक० १११, उद्धत किये हैं। चौखम्भा सी० में (व्यवहार) एवं घरपुरे द्वारा मुक्तिचिन्तामणि--गजपति पुरुषोत्तमदेव द्वारा। जग(आचार, प्रायश्चित्त एवं व्यवहार) प्रका०। टी० नाथपुरी की तीर्थयात्रा पर धार्मिक कृत्यों के विषय सुबोधिनी, विश्वेश्वर भट्ट द्वारा; दे० प्रक० ९३ में। लग० १५०० ई०। (व्यवहार, घरपुरे द्वारा अनूदित एवं प्रका०)। मुद्गलस्मृति-(बड़ोदा, ताड़पत्र पाण्ड० सं०११९५०) टी. मिताक्षरासार, मधुसूदन गोस्वामी द्वारा। मौनादिविधि, दाय, अशौच, प्रायश्चित्त पर।
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