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धर्मशास्त्रीय ग्रन्थसूची
महार्णव - - ( कर्मविपाक ) मदनपाल के पुत्र मान्धाता कृत माना गया है। दे० प्रक० ९३ । महार्णव - पोङ्ग भट्ट (? पेदिभट्ट) के पुत्र विश्वेश्वरभट्ट द्वारा । दे० प्रक० ९३ (नो० जिल्द ७ पृ० १२१) । मान्धाता - लिखित महार्णव ही है।
महार्णवव्रतार्क ।
महालयप्रयोग | महालय श्राद्धपद्धति ।
महाविष्णुपूजापद्धति---अखण्डानुभूति के शिष्य अखण्डा
नन्द द्वारा ।
महाविष्णुपूजापद्धति -चैतन्यगिरि द्वारा | महाशान्ति---शुद्धि एवं शान्ति से सम्बन्धित कृत्यों पर दो अध्याय ( क्रम से १८ एवं २५ प्रकरणों में ) । महाशिवरात्रि निर्णय - कश्मीर के कृष्णराम द्वारा । महाष्टमी निर्णय ।
महिषीदान ।
महिषीदानमन्त्र |
महेश्वरम धर्म ।
मांस निर्णय दुण्ढि द्वारा ।
मांस पीयूषलता - - रामभद्रशिष्य द्वारा (सें० प्रा० कैटा
लाग, सं० ४१४३)।
मांसभक्षणदीपिका-वेणीराम शाकद्वीपी द्वारा । मांसमीमांसा -- रामेश्वर भट्ट के पुत्र नारायण भट्ट द्वारा । नि० सि० द्वारा व० ।
मांसविवेक भट्ट दामोदर द्वारा । बतलाया गया है कि मसर्पण के प्रयोग आजकल विहित नहीं हैं। मांसविवेक -- ( या मांसतत्त्वविवेक) विश्वनाथ पंचानन द्वारा । १६३४ ई० में प्रणीत । सरस्वतीभवन सी० में प्रका० । इसे मांस तत्त्वविचार भी कहा गया है। माघोद्यापन ।
माण्डव्यस्मृति-- जीमूतवाहन ( कालविवेक), हेमाद्रि, दानमयूख द्वारा वृ० ।
मातुलसुतापरिणय |
मातृगोत्रनिर्णय -- नारायण द्वारा । मातृगोत्रनिर्णय-- रुद्रकवीन्द्र के पुत्र १२७
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मुद्गलात्मज
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लौगाक्ष भास्कर द्वारा ( बड़ोदा, सं० १४६३)। माध्यन्दिनीय ब्राह्मणीं में विवाह के लिए मातृगोत्र वर्जित है।
मातृदत्तीय -- हिरण्यकेशिसूत्र पर टी० । नि० सि० में
व० ।
मातृसांवत्सरिक श्राद्धप्रयोग |
मातृस्थापनाप्रयोग |
मात्रादिश्राद्धनिर्णय कोकिल द्वारा ।
माधवप्रकाश--- ( या सदाचारचन्द्रोदय) । दे० 'आचारचन्द्रोदय' ।
माधवीय कालनिर्णय दे० माधवकृत 'कालनिर्णय' । माधवीयसारोद्वार -- नारायण के पुत्र रामकृष्ण दीक्षित द्वारा | महाराजाधिराज लक्ष्मणचन्द्र के लिए लिखित, पराशरमाधवीय का एक अंश । स्टीन ( पृ० ३०९ ) । लग० १५७५- १६०० ई० ।
माधवोल्लास -- रघुनन्दन द्वारा देवप्रतिष्ठातत्त्व ( पृ० ५०९) में व० ।
माध्यन्दिनीयाचारसंग्रहदीपिका -- पद्मनाभ द्वारा । arrayer - (क्नौर द्वारा सम्पा० एवं गायकवाड़ ओरिएण्टल सी० में प्रकाशित) । 'पुरुष' नामक दो भागों में। टी० (भाष्य) अष्टावक्र द्वारा, याज्ञवल्क्य, गौतम, पराशर, बैजवाप, शबरस्वामी, भद्रकुमार एवं स्वयं भट्ट अष्टावक्र के उल्लेख हैं। भूमिका में (द्वितीय 'पुरुष' ) आया है कि लेखक ने इसे तब लिखा जब कि १०० वर्ष (संवत् अज्ञात) बीत चुके थे । erraगृह्यपरिशिष्ट बी० बी० आर० ए० एस० ( पृ० २०६, सं० ६५७) । मानवशास्त्र - देखिए 'मनुस्मृति' । माकल्प - हेमाद्रि द्वारा ब० । urrenaivaति- मानसिंह द्वारा सें० प्रा० (सं० ४११६) ।
मानसोल्लास सोमेश्वर कृत । दे० 'अभिलषितार्थचिन्तामणि ।' मार्कण्डेयस्मृति- मिताक्षरा (याज्ञ० ३।१९ ) एवं स्मृतिचन्द्रिका द्वारा व० ।
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