Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 584
________________ धर्मशास्त्रीय प्रत्यसुची प्रवरखण्ड -- ( आपस्तम्बीय ) टी० कपदस्वामी द्वारा (कुम्भकोणम् में १९१४ में एवं मैसूर में १९०० ई० में प्रका० ) । प्रवरखण्ड - ( एक प्रश्न में वखानस ) । प्रवरगण -- शार्दूलविक्रीडित छन्द में प्रवरों पर एक ग्रन्थ । दे० बी० बी० आर० ए० एस० ( पृ० २२५, सं० ७०७)। २५वें श्लोक के पश्चात् का अंश नहीं मिलता । प्रवरवर्पण - कमलाकर द्वारा। इसे गोत्रप्रवरनिर्णय भी कहा जाता है। पी० चेन्तसालराव द्वारा सम्पादित गोत्रप्रवरनिबन्धक दम्बक में प्रका० । मैसूर, १९०० । प्रवरवीप - ( या प्रवरप्रदीप ) प्रवरदीपिका में व० । प्रवरवीपिका- कृष्णशैव द्वारा। प्रवरमंजरी, स्मृति चन्द्रिका का उल्लेख है । १२५० ई० के उपरान्त । प्रवरनिर्णय - - विश्वादर्श से । प्रवरनिर्णय - भास्करत्रिकाण्डमण्डन कृत । कलकत्ता सं० कालेज, पाण्डु० (जिल्द २, पृ० ६९ सं० ६५) । टी० रामनन्दी द्वारा । प्रवरनिर्णय-भट्टोजि द्वारा । गोत्रप्रवरनिर्णय भी नाम है। प्रवरनिर्णयवाक्यसुषार्णव-- विश्वनाथदेव कृत । प्रवरमञ्जरी -- दे० गोत्रप्रवरमंजरी । नृसिंहप्रसाद में पर । प्रवराभ्याय -- लक्ष्मणसेन के मन्त्री पशुपति द्वारा । ११७०-१२०० ई० के लग० । प्रबराध्याय -- भृगुदेव लिखित कहा गया है। प्रवराध्याय - लौगाक्षि का कहा गया है । कात्यायन का ११वीं परिशिष्ट । Jain Education International १५७७ प्रवराध्याय - विश्वनाथ कवि द्वारा । प्रवराध्याय --- विष्णुधर्मोत्तर से । प्रवराध्याय-स्मृतिदर्पण 1 प्रवासकृत्य - रामचन्द्र के पुत्र गंगाधर द्वारा । स्तम्भतीर्थ ( आधुनिक खम्भात) में प्रणीत । सं० १६६३ ( १६०६-७ ई० ) । जीविका के लिए विदेश निर्गत साग्निक ब्राह्मणों के कर्तव्यों पर । प्रस्तावपारिजात । प्रस्तावरत्नाकर - पुरुषोत्तम के पुत्र हरिदास द्वारा गदापत्तन में वीरसिंह के आश्रय में सं० १६१४ ( १५५७-८ ई० ) में लिखित । नीति, ज्योतिःशास्त्र आदि विषयों पर पद्य में । प्रह्लादसंहिता - ( वल्लभमतीय) लक्ष्मण के आचाररत्न में व० । व० । प्रवरविवरण- प्रवरदीपिका में उल्लिखित | प्रवराध्याय - अधिकांश श्रौतसूत्रों में प्रवर पर एक प्रकरण है। प्रवरध्याय-- मानवश्रोत का भाग ( बी० बी० आर० ए० एस० जिल्द २, पृ० १७७ ) । प्रवराष्याय --- अगस्त्य का कहा गया है। गोत्रों एवं प्रवरों प्रायश्चित्तकल्पतर — कल्पत का एक अंश । प्रायश्चित्तकाण्ड - वैद्यनाथ के स्मृतिमुक्ताफल का द्वितीय प्राचीन षडशीति-- ( अभिनव षडशीति के विरोध में) । दे० 'षडशीति' । प्रातः कृत्य । प्रातः पूजाविधि -- नरोत्तमदास द्वारा ( चैतन्य के अनुयायियों के लिए)। प्रायश्चित्तकदम्ब (या निर्णय ) गोपाल न्यायपंचानन द्वारा । रघुनाथ, नारायण, जगन्नाथ तर्कपंचानन के अन्तों का उल्लेख करता है। नो० (जिल्द १०, पृ० ११९) । प्रायश्चित्तकदम्बसारसंग्रह - - काशीनाथ तर्कालंकार द्वारा । शूलपाणि, मदनपारिजात, नव्यद्वैतनिर्णयकृच्चन्द्रशेखर के मत व० हैं। नो० न्यू० ( पृ० २३३-३५)। प्रायश्चित्तकमलाकर कमलाकर भट्ट द्वारा । भाग । प्रायश्चित्तकारिका - गोपाल द्वारा । बौधायनसूत्र पर आधारित । सायण के पहले । प्रायश्चित्तकुतूहल- कृष्णराम द्वारा । प्रायश्चित्तकुतूहल – मुकुन्दलाल द्वारा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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