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धर्मशास्त्रीय प्रत्यसूची निर्णयामृत--रामचन्द्र द्वारा। नो० (जिल्द ११, ५, पृ० ११६) । तिथि सं० १५५० (१४९४ ई०)। __ भूमिका, पृ० ४)।
लेखन-काल में ये नवयुवक थे और वेद को ११ निर्णयामृत-(पाश्चात्य) रघुनन्दन के शुद्धितत्त्व में व०।। प्रकार से पढ़ते थे। टी० युवदीपिका, लेखक निर्णयाणव-बालकृष्ण दीक्षित द्वारा।
द्वारा। टी. वेदार्थप्रकाश, लेखक द्वारा। टी. निर्णयार्थप्रदीप--अहल्याकामधेन में व०।
देवराज द्वारा। निर्णयोसार--(तीर्थनिर्णयोद्धार) राघवभट्ट द्वारा। नीतिमंजरी-शम्भुराज द्वारा। दण्डप्रकरण का एक
नि: सि० एवं स्मृतिदर्पण का उल्लेख है। अतः अंश (बर्नेल, तंजीर, पृ० १४१ वी)। १६५० ई० के उपरान्त। अलवर (उद्धरण ३२६), नीतिमयूख--नीलकण्ठ द्वारा (बनारस, जे० आर० दे० 'तिथिनिर्णय' (राघवकृत)।
घरपुरे एवं गुजराती प्रेस, बम्बई द्वारा प्रका०)। निर्णयोडारखण्डनमण्डन-यज्ञेश द्वारा (बड़ोदा, सं० नीतिमाला--नारायण द्वारा।
५२४७)। राघवभट्ट द्वारा लिखित निर्णयोद्धार के नोतिरत्न--वररुचि का कहा गया है। विषय में उठाये गये सन्देहों का निवारण । नीतिरत्नाकर-गदाधर के पितामह एवं कालसागर के नीतिकमलाकर--कमलाकर द्वारा।
लेखक कृष्णबृहत्पण्डित महापात्र द्वारा। लग० नीतिकल्पतर--क्षेमेन्द्र द्वारा।
१४५० ई०। नीतिगभितशास्त्र-लक्ष्मीपति द्वारा।
नीतिरत्नाकर-(या राजनीतिरत्नाकर) चण्डेश्वर नीतिचिन्तामणि--वाचस्पति मिश्र द्वारा।
द्वारा। दे० प्रक० ९०; डा० जायसवाल द्वारा नीतिदीपिका।
प्रका। नीतिप्रकाश---कुलमुनि द्वारा।
नीतिलता...-क्षेमेन्द्र द्वारा। लेखक की औचित्यविचार. नोतिप्रकाश---वैशम्पायन द्वारा (मद्रास में डा० आपर्ट चर्चा में व०। ११वीं शती के द्वितीय एवं तृतीय द्वारा सम्पादित, १८८२)। नीतिप्रकाशिका नाम चरण में। भी है। राजधर्मोपदेश, धनुर्वेदविवेक, खड्गोत्पत्ति, नीतिवाक्यामृत-महेन्द्रदेव के छोटे भाई एवं नेमिदेव मुक्तायुधनिरूपण, सेनानयन, सैन्यप्रयोग एवं राज- के शिष्य सोमदेव सूरि द्वारा। बम्बई में मानिकचन्द व्यापार पर आठ अध्यायों में तक्षशिला में दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला द्वारा टीका के साथ वैशम्पायन द्वारा जनमेजय को दिया गया शिक्षण। प्रका०। धर्म, अर्थ, काम, अरिषड्वर्ग, विद्यावृद्ध, राजशास्त्र के प्रवर्तकों का उल्लेख है। टी० आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता, दण्डनीति, मन्त्री, पुरोहित, तत्त्वविवृत्ति, कौडिन्यगोत्र के नज्जुण्ड के पुत्र सीता- सेनापति, दूत, चार, विचार, व्यसन, सप्तांग राज्य राम द्वारा।
(स्वामी आदि), राजरक्षा, दिवसानुष्ठान, सदाचार, नीतिप्रवीप--वेतालभद्र का कहा गया है।
व्यवहार, विवाद, षाड्गुण्य, युद्ध, विवाह, प्रकीर्ण नीतिभाजनभाजन--भोजराज को समर्पित (मित्र, नो०, नामक ३२ प्रकरणों में है। औफेस्ट का का कथन जिल्द २, पृ. ३३)।
है कि लेखक मल्लिनाथ द्वारा किरातार्जुनीय में नीतिमंजरी--आनन्दपुर के मुकुन्द द्विवेदी के तनुज व० है। टी० अज्ञात; बहुत ही महत्त्वपूर्ण, क्योंकि
अत्रिपुत्र लक्ष्मीधरात्मज द्याद्विवेदी द्वारा। अष्टकों स्मृतियों एवं राजनीतिशास्त्र के उबरण दिये (अध्यायों) में (ऋग्वेद के आठ अष्टकों के अनु- हुए हैं। सार) २०० श्लोक, जिनमें वैदिक उदाहरणों के साथ नीतिविलास-प्रजराज शुक्ल द्वारा। नैतिक वचन कहे गये हैं। इण्डि० एण्टी० (जिल्द नीतिविवेक-करुणाशंकर द्वारा।
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