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धर्मशास्त्र का इतिहास पार्थिवलिंगपूजा---बौधायनसूत्र, बृहद्वसिष्ठ, लिंगपुराण पितृमेधभाष्य-(आपस्तम्बीय) गार्ग्य गोपाल द्वारा।
पर आधृत। इण्डि० आ० (पृ० ५८५)। पितृमेषविवरण-रङ्गनाथ द्वारा। पाणिलिंगपूजाविधि---स्टीन कैटलाग (पृ० ९५) में पितृमेघसार--गोपालयज्वा द्वारा। __ दो भिन्न ग्रन्थ।
पितृमेषसार-रङ्गनाथ के पुत्र वेंकटनाथ द्वारा। पार्वणचटवारप्रयोग--देवभट्ट द्वारा।
पितृमेषसारसुधीविलोचन--(एक टीका) वैदिकपार्वणचन्द्रिका--गंगोली संजीवेश्वर शर्मा के पुत्र रत्न- सार्वभीम द्वारा। सम्भवतः उपर्युक्त वेंकटनाथ ही हैं। पाणि शर्मा द्वारा। कई प्रकार के, किन्तु विशेषतः पितृमेषसूत्र--गीतम द्वारा। टी० कृष्ण के पुत्र अनन्त
पार्वग श्राद्ध पर। छन्दोग सम्प्रदाय के अनुसार। यज्वा द्वारा। भारद्वाज द्वारा। हिरण्यकेशी द्वारा। पार्वणत्रयश्राविधि--स्टीन (पृ० ९५)।
आपस्तम्बीय (प्रश्न, कल्प के ३१-३२)। टी. पार्वणप्रयोग--श्राद्धनसिंह का एक अंश।
कपर्दिस्वामी द्वारा (कुम्भकोनम् में प्रका०, १९०५ पार्वणश्राद्ध-(आश्वलायनीय)। टी० प्रदीप भाष्य, नारायण द्वारा।
पितृसांवत्सरिकाप्रयोग। पार्वणश्राद्धपद्धति।
पितुहितकरणी---श्रीदत्त की पितृभक्ति में व० । लग० पार्वणश्राद्धप्रयोग--छन्दोगों के लिए।
१३०० ई०। पार्वणश्रावप्रयोग--देवभट्ट द्वारा वाजसनेयियों के लिए। पिष्टपशुखण्डन----टीकाकार शर्मा द्वारा। नो० न्यू० पार्वणस्थालीपाकप्रयोग---नारायण भट्ट के प्रयोगरत्न का (जिल्द ३, पृ० ११६) । एक अंश।
पिष्टपशुखण्डनमीमांसा--(या पिष्ट पशुमीमांसा) विश्वपार्वणादिश्राद्धतत्त्व---रघु० का श्राद्धतत्त्व देखिए। नाथ के पुत्र एवं नीलकण्ठ के शिष्य नारायण पण्डित पिण्डपितृयज्ञप्रयोग--(हिरण्यकेशीय) उमापति के पुत्र द्वारा । नो० (जिल्द १०, पृ० ३१२) । यज्ञों में बकरे चन्द्रचूड़ भट्ट द्वारा।
के स्थान पर पिष्टपशु का प्रयोग बतलाया गया है। पिण्डपितृयज्ञप्रयोग--विश्वेश्वर भट्ट (उप० गागाभट्ट) पाण्डु० तिथि सं० १७८५ (१७२८ ई०)। द्वारा। बीकानेर कैटलाग (१३६)।
पिष्टपशुमण्डन--गायेगोत्र के टीकाकार शर्मा द्वारा। पिण्डपितृयज्ञप्रयोग----हरिहर के प्रयोगरत्न से। बड़ोदा (सं० २४३६)। सम्भवतः यह उपर्युक्त पिष्टपितामहस्मृति--दे० प्रक० ४४ ।
पशुखण्डन ही है। टी० बड़ोदा (पाण्डुलिपि में)। पितृदयिता--अनिरुद्ध कृत। दे० प्रक० ८२। संस्कृत- पिष्टपशुमण्डनव्याल्यार्थदीपिका-रक्षपाल द्वारा। __ साहित्यपरिषद् सी०, कलकत्ता द्वारा प्रका। पिष्टपशुमीमांसाकारिका----विश्वनाथ के पुत्र नारायण पितपद्धति--गोपालाचार्य द्वारा। शलपाणि का उल्लेख । है। अतः १४५० ई० के उपरान्त।
पुंसवनादिकालनिर्णय। पितृभक्ति--श्रीदत्त द्वारा। दे० प्रक० ८९, यजुर्वेद पुण्याहवाचनप्रयोग-पुरुषोत्तम द्वारा।
के पाठकों के लिए। टी० मुरारि द्वारा। लग० पुत्रक्रमदीपिका-रामभद्र द्वारा। बारह प्रकार के पुत्रों १५वीं शती के अन्त में।
के दायाधिकारों एवं रिक्थ पर। पितृभक्तितरंगिणी--(उप० श्राद्धकल्प) वाचस्पति मिश्र पुत्रप्रतिग्रहप्रयोग-शौनककृत कहा गया है। पीटर्सन द्वारा। दे० प्रक० ९८।
की छठी रिपोर्ट (सं० १२२)। पितमेषप्रयोग--कपर्दिकारिका के एक अनुयायी द्वारा। पुत्रपरिग्रहसंशयोझेदपरिच्छेद---स्टीन (पृ० ९५)। नो० (जिल्द १०, पृ० २७१)।
पुत्रस्वीकारनिरूपण--वत्स गोत्र के विश्वेश्वर के पुत्र
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