Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

View full book text
Previous | Next

Page 577
________________ १५७० धर्मशास्त्र का इतिहास पार्थिवलिंगपूजा---बौधायनसूत्र, बृहद्वसिष्ठ, लिंगपुराण पितृमेधभाष्य-(आपस्तम्बीय) गार्ग्य गोपाल द्वारा। पर आधृत। इण्डि० आ० (पृ० ५८५)। पितृमेषविवरण-रङ्गनाथ द्वारा। पाणिलिंगपूजाविधि---स्टीन कैटलाग (पृ० ९५) में पितृमेघसार--गोपालयज्वा द्वारा। __ दो भिन्न ग्रन्थ। पितृमेषसार-रङ्गनाथ के पुत्र वेंकटनाथ द्वारा। पार्वणचटवारप्रयोग--देवभट्ट द्वारा। पितृमेषसारसुधीविलोचन--(एक टीका) वैदिकपार्वणचन्द्रिका--गंगोली संजीवेश्वर शर्मा के पुत्र रत्न- सार्वभीम द्वारा। सम्भवतः उपर्युक्त वेंकटनाथ ही हैं। पाणि शर्मा द्वारा। कई प्रकार के, किन्तु विशेषतः पितृमेषसूत्र--गीतम द्वारा। टी० कृष्ण के पुत्र अनन्त पार्वग श्राद्ध पर। छन्दोग सम्प्रदाय के अनुसार। यज्वा द्वारा। भारद्वाज द्वारा। हिरण्यकेशी द्वारा। पार्वणत्रयश्राविधि--स्टीन (पृ० ९५)। आपस्तम्बीय (प्रश्न, कल्प के ३१-३२)। टी. पार्वणप्रयोग--श्राद्धनसिंह का एक अंश। कपर्दिस्वामी द्वारा (कुम्भकोनम् में प्रका०, १९०५ पार्वणश्राद्ध-(आश्वलायनीय)। टी० प्रदीप भाष्य, नारायण द्वारा। पितृसांवत्सरिकाप्रयोग। पार्वणश्राद्धपद्धति। पितुहितकरणी---श्रीदत्त की पितृभक्ति में व० । लग० पार्वणश्राद्धप्रयोग--छन्दोगों के लिए। १३०० ई०। पार्वणश्रावप्रयोग--देवभट्ट द्वारा वाजसनेयियों के लिए। पिष्टपशुखण्डन----टीकाकार शर्मा द्वारा। नो० न्यू० पार्वणस्थालीपाकप्रयोग---नारायण भट्ट के प्रयोगरत्न का (जिल्द ३, पृ० ११६) । एक अंश। पिष्टपशुखण्डनमीमांसा--(या पिष्ट पशुमीमांसा) विश्वपार्वणादिश्राद्धतत्त्व---रघु० का श्राद्धतत्त्व देखिए। नाथ के पुत्र एवं नीलकण्ठ के शिष्य नारायण पण्डित पिण्डपितृयज्ञप्रयोग--(हिरण्यकेशीय) उमापति के पुत्र द्वारा । नो० (जिल्द १०, पृ० ३१२) । यज्ञों में बकरे चन्द्रचूड़ भट्ट द्वारा। के स्थान पर पिष्टपशु का प्रयोग बतलाया गया है। पिण्डपितृयज्ञप्रयोग--विश्वेश्वर भट्ट (उप० गागाभट्ट) पाण्डु० तिथि सं० १७८५ (१७२८ ई०)। द्वारा। बीकानेर कैटलाग (१३६)। पिष्टपशुमण्डन--गायेगोत्र के टीकाकार शर्मा द्वारा। पिण्डपितृयज्ञप्रयोग----हरिहर के प्रयोगरत्न से। बड़ोदा (सं० २४३६)। सम्भवतः यह उपर्युक्त पिष्टपितामहस्मृति--दे० प्रक० ४४ । पशुखण्डन ही है। टी० बड़ोदा (पाण्डुलिपि में)। पितृदयिता--अनिरुद्ध कृत। दे० प्रक० ८२। संस्कृत- पिष्टपशुमण्डनव्याल्यार्थदीपिका-रक्षपाल द्वारा। __ साहित्यपरिषद् सी०, कलकत्ता द्वारा प्रका। पिष्टपशुमीमांसाकारिका----विश्वनाथ के पुत्र नारायण पितपद्धति--गोपालाचार्य द्वारा। शलपाणि का उल्लेख । है। अतः १४५० ई० के उपरान्त। पुंसवनादिकालनिर्णय। पितृभक्ति--श्रीदत्त द्वारा। दे० प्रक० ८९, यजुर्वेद पुण्याहवाचनप्रयोग-पुरुषोत्तम द्वारा। के पाठकों के लिए। टी० मुरारि द्वारा। लग० पुत्रक्रमदीपिका-रामभद्र द्वारा। बारह प्रकार के पुत्रों १५वीं शती के अन्त में। के दायाधिकारों एवं रिक्थ पर। पितृभक्तितरंगिणी--(उप० श्राद्धकल्प) वाचस्पति मिश्र पुत्रप्रतिग्रहप्रयोग-शौनककृत कहा गया है। पीटर्सन द्वारा। दे० प्रक० ९८। की छठी रिपोर्ट (सं० १२२)। पितमेषप्रयोग--कपर्दिकारिका के एक अनुयायी द्वारा। पुत्रपरिग्रहसंशयोझेदपरिच्छेद---स्टीन (पृ० ९५)। नो० (जिल्द १०, पृ० २७१)। पुत्रस्वीकारनिरूपण--वत्स गोत्र के विश्वेश्वर के पुत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652