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धर्मशास्त्रीय प्रन्धसूची
के पुत्र रेणुकाचार्य द्वारा। शक सं० ११८८ (१२६६ ई० ) में प्रगीत (इण्डि० आ०, जिल्द १, पृ० ६७)।
पारस्करगृह्य परिशिष्टपद्धति कूपादिप्रतिष्ठा पर काम
देव दीक्षित द्वारा (गुजराती प्रेस में मुद्रित ) । पारस्करगृह्यसूत्र - (कातीयगृह्यसूत्र ) तीन काण्डों में (स्टेंज्लर द्वारा लिपजिग में, काशी सं० सी० एवं गुजराती प्रेस, बम्बई द्वारा कई टीकाओं के साथ मुद्रित एवं एस० बी० ई०, जिल्द २९, द्वारा अनूदित ) । to अमृतव्याख्या, अपनी शुद्धिचन्द्रिका में नन्दपण्डित द्वारा व०; १५५० ई० के पूर्व टी० अर्थभास्कर, राघवेन्द्रारण्य के शिष्य भास्कर द्वारा। टी० प्रकाश, विश्वरूप दीक्षित के पुत्र वेदमिश्र द्वारा लिखित एवं उनके पुत्र मुरारिमिश्र द्वारा प्रयुक्त । टी० संस्कारगणपति, प्रयागभट्टात्मज कोनेट के पुत्र रामकृष्ण द्वारा (चौखम्भा सं० सी० द्वारा प्र०), चार खण्डों में; ये भारद्वाजगोत्रीय और विजयसिंह द्वारा संरक्षित थे; वशिष्ठा नदी पर चिचमण्डलपत्तन में लिखित; कर्क, हरिहर, गदाधर, हलायुध, काशिका एवं दीपिका उ० हैं; लेखक ने श्राद्धगणपति भी प्रणीत किया; इण्डि० आ० ( ० ५६२) में श्राद्धसंग्रह का वर्णन है; लग० १७५० ई० टी० सज्जनवल्लभा, मेवाड़वासी भारद्वाज गोत्र के बलभद्र पुत्र जयराम द्वारा ; उवट, कर्क एवं स्मृत्यर्थसार के उल्लेख हैं एवं गदाधर द्वारा व०; अलवर (उद्धरण ३९) पाण्डु० की तिथि सं० १६१९ अर्थात् १५५४-५ ई० है; १२००-१४०० ई० के बीच; गुजराती प्रेस एवं चौखम्भा द्वारा प्रका० । टी० भाष्य, कर्क द्वारा; त्रिकाण्डमण्डन, हेमाद्रि एवं हरिहर द्वारा व०; १९०० ई० के पूर्व गुज० प्रे० द्वारा मुद्रित । टी० भाष्य, परिशिष्टकण्डिका पर कामदेव द्वारा ; गुज० प्रेस द्वारा मुद्रित | टी० वामन के पुत्र गदाधर द्वारा; कर्क, जयरामभाष्य, भर्तृ यज्ञ, मदनपारिजात, हरिहर के नाम आये हैं; लग० १५०० ई०; काशी सं० सी० एवं गुज० प्रे० द्वारा मुद्रित। टी० भर्तृयज्ञ द्वारा,
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जयराम के भाष्य में व० 1 टी० वेदमिश्र के पुत्र मुरारिमिश्र द्वारा ( पारस्करगृह्यमन्त्रों पर ) ; पाण्डु ० (स्टीन, पृ० २५२ ) की तिथि सं० १४३० (१३७३ ई० ) । टी० वागीश्वरीदत्त द्वारा। टी० वासुदेव दीक्षित द्वारा; हरिहर एवं रघु० (यजुर्वेदिश्राद्धतस्व में) द्वारा व ० ; सभी कृत्यों की पद्धति है; १२५० ई० से पूर्व । टी० काश्यपगोत्र के नागरब्राह्मण नृसिंह के पुत्र विश्वनाथ द्वारा; विश्वनाथ के चाचा अनन्त के पौत्र लक्ष्मीघर द्वारा बनारस में संगृहीत, तिथि १६९२ माघ ( १६३५ ई० ) ; कर्क, हरिहर, कालनिर्णय प्रदीपिका के उल्लेख हैं; अतः विश्वनाथ की तिथि लग० १५५० ई० है; देखिए अलवर (उद्धरण ४२ ) ; गुज० प्रेस में मुद्रित । टी० हरिशर्मा द्वारा; प्रायश्चित्ततत्त्व में उल्लिखित ( जीवा०, जिल्द १, पृ० ५३१) | टी० भाष्य एवं पद्धति, हरिहर द्वारा (गुज० प्रे० एवं काशी सं० सी०); कर्क, कल्पतरुकार, रेणु, वासुदेव, विज्ञानेश्वर के उल्लेख हैं; श्राद्धक्रियाकौमुदी ( विन्दानन्दकृत) में व० ; १२७५-१४०० ई० के बीच; दे० प्रक० ८४; रघु० ने यजुर्वेदिश्राद्धतत्त्व में हरिशर्मा एवं हरिहर के नाम लिये हैं ( कात्यायनगृह्य की एक व्याख्या में ) । · पारस्करगृह्यसूत्रपद्धति कामदेव द्वारा । पारस्करगृह्यसूत्रपद्धति - भास्कर द्वारा । दे० ऊपर। पारस्करगृह्यसूत्रपद्धति --- वासुदेव द्वारा । देखिए ऊपर। पारस्कर मन्त्रभाष्य --- मुरारि द्वारा । दे० 'पारस्करगृह्यसूत्र' के अन्तर्गत । पारस्करभाससूत्रवृत्त्यर्थसंग्रह --- उदयशंकर द्वारा (स्टीन, पृ० १७) ।
पारिजात - बहुत-से ग्रन्थों के नाम इस शीर्षक से पूर्ण होते हैं, यथा-- मदनपारिजात, प्रयोगपारिजात, विधानपारिजात ।
पारिजात - दे० प्रक० ७५ ।
पारिजात - भानुदत्त द्वारा बिहार० (जिल्द १, सं० २५७ एवं जे० बी० ओ० आर० एस० १९२७, भाग ३-४ पृ० ७) ।
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