________________
१५४४
धर्मशास्त्र का इतिहास इसे--- द्रुमोद्योत भी कहा जाता है। अलवर जातिविवेक--व्यम्बक द्वारा।
(उद्धरण ३०५); बम्बई में मुद्रित, १९०३। जातिविवेक-नारायण भट्ट द्वारा (बड़ोदा, सं० १११४७) जयानिबन्ध-(निबन्ध ? ) चण्डेश्वर के कृत्यरत्नाकर जातिविवेक-पराशर द्वारा। (पृ० १६६) में व०।
जातिविवेक-रघुनाथ द्वारा। जयाभिषेकप्रयोग-रघुनाथ द्वारा।
जातिवितेक--विश्वनाथ द्वारा (नो०, जिल्द ९, पृ० जयार्णव-नि० सि० एवं पारस्करगृह्यसूत्रभाष्य में १७९)। स्टीन के कैटलाग में इसे 'विवेकसंग्रह गदाधर द्वारा व० । दे. युद्धजयार्णव ।
कहा गया है (पृ० ८९)।। जलयात्रा।
जातिविवेक-विश्वेश्वरभट्ट द्वारा (सम्भवतः 'कायस्थजलाशयप्रतिष्ठा-भागणिमित्र द्वारा।
धर्मप्रदीप' का प्रथम भाग)। जलाशयारामोत्सर्गविषि--(या पद्धति) (१) रामे- जातिविवेक---प्रत्यण्डपुर (महाराष्ट्र में पराण्ड ?) के श्वर के पुत्र नारायण भट्ट द्वारा; रूपनारायण को विश्वनाथ-पौत्र, शाङ्गधर-पुत्र, वासिष्ठ गोत्र के उ० करता है; १५१३-१५७५ ई०; दे० प्रक० १०। व्यास गोपीनाथ कवि द्वारा। तीन उल्लासों में।
(२) कमलाकर द्वारा; दे० प्रक० १०६।। पाण्डु० (इण्डि० आ०, जिल्द ३, पृ० ५१९, सं० जलाशयोत्सर्गतत्व-रघुनन्दन कृत (जीवानन्द द्वारा १६३९) की तिथि शक सं०.१५६४ (१६४२ ई०) प्रका०) दे० प्रक० १०२।
है। पीटर्सन (अलवर, सं० १३२३) के मत से यह जातकर्म-संस्कारभास्कर से।
विश्वम्भरवास्तुशास्त्र का एक भाग है, जो हेमाद्रि जातकर्मपति-केशवभट्ट द्वारा।
द्वारा उ० है, पिता का नाम व्यासराज है; जो पहले जातकर्मपति-दामोदर द्वारा।
विश्वनाथ कहा जाता था और पितामह का नाम जातकर्मादिपालाशकर्मान्त-बापण्णभट्ट द्वारा।
समराज। जातरिष्टयादिनिर्णय-विद्यार्णव द्वारा; नो० न्यू० जातिविवेकशतप्रश्न---सायण कृत कहा गया है। (२, पृ० ५५-५६)।
जातिविवेकसंग्रह-विश्वनाथ द्वारा। जातिनिर्णय-जड़ोदा (सं० ११००३) कायस्थ आदि पर। जातिसांकर्य--शिवलाल सुकुल द्वारा। जातिमाला-रुद्रयामलतन्त्र का एक अंश । जातिसांकर्यवाद---अनन्ताल्वार द्वारा। जातिमाला-विभिन्न हिन्दू जातियों की उत्पत्ति पर। जातिसांकर्यवाद-वेणीराम शाकद्वीपी द्वारा। दे० नो० (जिल्द २, पृ० १५१)।
जिकनीयनिबन्ध-शूलपाणि के दुर्गोत्सवविवेक में एवं जातिमाला-मुद्गल एवं झापाम्बिका के पुत्र सोमनाथ कुल्लक द्वारा व०। द्वारा, जिनकी उपाधि सकलकल थी और जो जलग्राम जीर्णोद्वारविषि-(त्रिविक्रम के अनुसार) मन्दिर, के निवासी थे। लक्ष्मीनिन्दा, वैराग्य एवं पार्वतीस्तुति देवप्रतिमा आदि के जीर्णोद्धार पर। नो० (जिल्द नामक तीन भागों में, किन्तु धर्म एवं जातियों पर कुछ १०, पृ० २७१) ।
भी नहीं है। उ. का० (सं० ३०२, १८८४-८६)। जीवच्छाबप्रयोग-रामेश्वर भट्ट के पुत्र नारायण भट्ट मातिमाला-पराशरपद्धति से। स्टीन (पृ. ९४)। द्वारा। जातिविवेक-शेषकृष्णकृत। शूद्राचारशिरोमणि एवं जीवच्छाउप्रयोग-शौनक द्वारा। नृसिंहप्रसाद में वर्णित।
जीवत्पितृककर्तव्यनिर्णय--रंगोजिभट्ट के पुत्र बालकृष्ण जातिविवेक-कृष्णगोविन्द पण्डित द्वारा। वर्णाश्रम- भट्ट द्वारा। नो न्यू० (जिल्द ३, पृ० ६४), पाण्डु.
धर्मदीपिका नामक एक विशाल ग्रन्थ का अंश। की तिथि सं० १७८५ है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org