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धर्मशास्त्रीय प्रन्यसूची
१५४५ जीवत्पितककर्तव्यनिर्णय-बालकृष्ण पायगुण्डे द्वारा ज्योतिःसागर----गदाधर के कालसार एवं नि० सि. (बड़ोदा, सं० ३५८ एवं ५५४९)।
में व जीवत्पितककर्तव्यनिर्णय--(या कर्मनिर्णय) रामेश्वरा- ज्योतिःसागरसार-मथुरेश द्वारा। त्मज नारायण भट्ट के पुत्र रामकृष्ण भट्ट द्वारा। ज्योतिःसागरसार--विद्यानिधि द्वारा । नो० न्यू० लग० १५७०-९० ई०।
(जिल्द १, पृ.० १३४)। पाण्डु० तिथि शक सं० जीवल्पितककर्तव्यसंचय--कृष्णभट्ट द्वारा।
१६७० (१७४८ ई.)। जीवत्पितकविभागव्यवस्था---व्रजराज के पुत्र मधुसूदन ज्योतिःसार--धर्मप्रवृत्ति एवं गोविन्दार्णव में व०। गोस्वामी द्वारा।
ज्योतिःसारसंग्रह- रघुनन्दन द्वारा ज्योतिस्तत्त्व तथा जीवत्पितकविभागसारसंग्रह--उपर्युक्त का संक्षिप्त रूप मदनपारिजात में २० ।
(अलवर, सं० १३२४)। संवत् १८१२ (१७५५- ज्योतिःसारसंग्रह-हृदयानन्द विद्यालंकार द्वारा। ६ ई०) में प्रतिलिपि की गयी।
ज्योतिःसारसमुच्चय-रघुनन्दन द्वारा। जीववाद--ओफ्रेस्ट ०, सं० ६११ ।
ज्योतिःसारसमुच्चय--देवशर्मा के पुत्र नन्द द्वारा। जैमिनिगृह्य--डा. कैलैण्ड (पंजाब ओरिएण्टल सी०, ज्योतिरर्णव-गोविन्दार्णव एवं सं० को० में व० ।
१९२२) द्वारा सम्पादित । टी० सुबोधिनी, श्रीनिवास ज्योतिनिबन्ध--शूद्रकमलाकर, संस्कारमयूख एवं शुद्धिद्वारा।
मयूख में व.। जैमिनिगृह्यमन्त्रवृत्ति।
ज्योतिसिंह----गोविन्दार्णव एवं भट्टोजि के चतुर्विंशतिसातिभेदविवेक।
मत व्याख्यान में व०। शानभास्कर--(सूर्य एवं अरुण के कथनोपकथन के रूप ज्योतिषरत्न-सिद्धेश्वर के संस्कारभास्कर में व०। में) प्रायश्चित्त, कर्म आदि पर प्रकाशों में विभक्त। ज्योतिषरत्न-केशव तर्कपंचानन द्वारा। नो० न्यू० दे० बोकानेर, पृ० ३९८ । बर्नेल (तंजौर, पृ० (जिल्द २, पृ० ५८)। १३६ बो) के मत से लेखक का नाम दिअमणि है। ज्योतिषार्णव-शूलपाणि के दुर्गोत्सवविवेक एवं रघु. बड़ोदा की सं०११३६ इसका एक भाग है (रोगा- नन्दन द्वारा व०। धिकार पर कर्मप्रकाश) एवं १०००० श्लोक तक ज्योतिषप्रकाश-नारायणभट्ट के प्रयोगरत्न, नि० सि०, चला जाता है तथा सं० १०५४६, १४००० श्लोक गोविन्दार्णव द्वारा व०। में एक अन्य है।
ज्योतिस्तत्त्व-रघुनन्दन द्वारा। मानमाला--भट्टोत्पल द्वारा। भोज के धर्मप्रदीप, रघु- टोडरप्रकाश-रघुनन्दन मिश्र द्वारा; राजा टोडरमल नन्दन के आह्निकतत्त्व में तथा आचारमयूख में के आश्रय में। व०।
टोडरानन्द-दे० प्रक० १०४। मानरत्नावलि---हेमाद्रि, नृसिंहप्रसाद (दानसार), दुणिप्रताप-महाराज ढुण्डि के आश्रय में विश्वनाथ
कुण्डकौमुदी में व०। १२५० ई. के पूर्व । द्वारा। वर्ष के प्रत्येक दिन के कृत्यों पर। पाण्डु. मानांकुर-राघवेन्द्र चट्ट के पुत्र चूड़ामणि द्वारा। चार शक १५८९ (१६६७-६८ ई०) में उतारी गयी स्तवकों में।
(बर्नेल, तंजौर, पृ० १३६ बी)। मानानावतरंगिणी-कृष्णानन्द द्वारा, (संस्कारों पर)। पति-नारायणभट्ट की अन्त्येष्टिपद्धति में, रघुज्येष्ठाविधान।
नन्दन के श्राद्धतत्त्व (१,पृ०२१३) एवं शूद्रकमलामोतिकालकांमुवी-रघुनन्दन द्वारा व०।
कर में १०। १५२५ ई० के पूर्व ।
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