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तीर्थसूची
रूप में प्रकट हुए थे ), पद्म० ६।१२१।६-७ (४ योजन का विस्तार है ) । कुछ ग्रंथों में 'शूकरतीर्थ' नाम आया है ।
सूर्यतीर्थ - (१) (वारा० के अन्तर्गत) वन० ८३।४८, कूर्म ० १।३५।७, पद्म० १।३७ ७ (२) ( मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १५२/५०, १५६।१२ जहाँ विरोचन के पुत्र बलि ने सूर्य को प्रसन्न किया था । सेतु - ( रामेश्वर एवं श्रीलंका के बीच का कल्पित पुल, जिसे राम ने सुग्रीव एवं उसके वानरों की सहायता से निर्मित कराया ) भाग० ७ १४१३१, १०।७९।१५ ( सामुद्र सेतु), गरुड़ ११८११८, नारद० २|७६ (सेतुमाहात्म्य पाया जाता है)। इसे 'आदम का ब्रिज' (पुल) भी कहा जाता है। सोलोन (श्रीलंका का अपभ्रश-सा लगता है) की आदम नामक चोटी पर एक पद चिह्न है, जिसे हिन्दू, बौद्ध, ईसाई एवं मुसलमान सभी सम्मान से देखते हैं। तीर्थप्र० पृ० ५५७-५६०, जहाँ इसका माहात्म्य वर्णित है । सेतुबन्ध -- वही जो उपर्युक्त है। देखिए तीर्थसार, पृ०
१-४ एवं तीर्थप्र० पृ० ५५७-५६०, रामा० ६।२२। ४५-५३, ६।१२६।१५ । पद्म (५/३५/६२) का कथन है कि सेतु तीन दिनों में निर्मित हुआ था । स्कन्द ० ३, ब्रह्मखण्ड, अध्याय १-५२ में सेतु-माहात्म्य, इसके सहायक या गोण तीर्थ या सेतुयात्राक्रम है । यहाँ प्रायश्चित्त के लिए भी लोग जाते हैं । संलोब --- ( अरुण पर्वत के चरण की एक झील) वायु०
४७ २०, ब्रह्माण्ड० २।१८।२१-२३ । संन्धवारण्य --- ( जहाँ च्यवन ऋषि सुकन्या के साथ रहते थे) वन० १२५ । १३, वाम० (तो० क०, पृ० २३९ ) । वन० (८९/५९ ) ने इसे पश्चिम में कहा है। सोवरनाग-- ( कश्मीर में ) नीलमत० १३-१४, यह डल झील में आनेवाले ( अन्तर्मुखी) गहरे नाले के ऊपर स्थित आधुनिक सुदर्बल गाँव है। देखिए राज० १।१२३-१२६ एवं २।१६९ तथा स्टीनस्मृति, पृ० १६४ । स्टीन ने टिप्पणी की कि भूतेश्वर के मन्दिर के भग्नावशेष के पास स्थित आज के नारान
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नाग का पुराना नाम सोदर है । नीलमत० ने इसे भूतेश एवं कनकवाहिनी के साथ उल्लिखित किया है । भूतेश्वर से श्रीनगर लगभग ३२ मील है। सोमकुण्ड (गया के अन्तर्गत ) अग्नि० ११६।४ । सोमतीर्थ - ( १ ) ( सरस्वती के किनारे) वामन० ४१४, वन० ८३।११४, मत्स्य० १०९।२ (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९१।३०, पद्म० १।१८।३० एवं २७/३, कूर्म० २।४१।४७ (३) ( वारा० के अन्तर्गत ) कूर्म० १।३५।७, पद्म० ११३७/७; (४) (गो० के अन्तर्गत ) ब्रह्म० १०५/१, ११९ | १ ; ( ५ ) ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १५४।१८; (६) (कोकामुख के अन्तर्गत ) वराह ० १४०।२६-२८; (७) (विरज के अन्तर्गत) ब्रह्म० ४२।६; (८) (सूकर के अन्तर्गत ) वराह० १३७।४३ (जहाँ सोम ने सर्वोत्तम सिद्धि प्राप्त की थो); (९) ( साभ्रमती के अन्तर्गत ) पद्म० ६ । १५४ । १ । सोमनाथ -- ( १ ) ( सोराष्ट्र में वेरावल के पास) अग्नि०
१०९।१० (सोमनाथं प्रभासक ), पद्म० ६ । १७६/३७; देखिए ऐं० जि० पृ० ३१९ ओर 'प्रभास' के अन्तर्गत ; (२) ( गया के अन्तर्गत ) अग्नि० ११६ | २३ | एक प्रसिद्ध श्लोक है -- 'सरस्वती समुद्रश्च सोमः सोमग्रहस्तथा । दर्शन सोमनाथस्य सकाराः पंच दुर्लभाः ॥
सोमपद -- वन० ८४१११९ । सोमपान - मत्स्य ० २२।६२ । सोमाश्रम - वन० ८४ । १५७ । सोमेश - ( वारा० के अन्तर्गत ) कूर्म० १।३५। ९ । सोमेश्वर-- ( १ ) ( सभी रोगों को दूर करता है ) मत्स्य० २२।२९, कूर्म० २।३५ | २०; (२) ( शालग्राम के अन्तर्गत ) वराह० १४४।१६ २९ । सौरव -- (जैसा कि वेंकटेश्वर प्रेस में मुद्रित वराह०
१३७।७ में पाया जाता है), संभवतः सौकरक शुद्ध है | देखिए सूकरतीर्थ के अन्तर्गत । सौगन्धिकगिरि - मत्स्य० १२१।५ ( कैलास के उत्तरपूर्व ) ।
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