Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 546
________________ धर्मशास्त्रीय प्रन्थसूची १५३९ गोत्रप्रवरनिर्णय--नन्दिग्राम के केशवदैवज्ञ द्वारा । पाण्डु० गोत्रप्रवरमञ्जरी--केशव द्वारा, जिन्होंने मुहूर्ततत्त्व बड़ोदा, सं० ८१३१, शक सं० १६००। प्रत्येक भी लिखा है। टी० राम द्वारा; स्मृत्यर्थसार एवं श्लोक का 'कुर्वन्तु वो मंगलम्' से अन्त होता है। प्रयोगपारिजात का उद्धरण है। टी० वाक्पुष्पमाला, प्रभाकर दैवज्ञ द्वारा। गोत्रप्रवरमञ्जरी-(प्रवरमञ्जरी) पुरुषोत्तम पण्डित गोत्रप्रवरनिर्णय--गोपीनाथ द्वारा (बड़ोदा, सं० द्वारा (इस विषय पर प्रामाणिक ग्रन्थ) । चेन्तसाल११०४१)। राव द्वारा मुद्रित (मैसूर, १९००)। ८ मौलिक गोत्रों गोत्रप्रवरनिर्णय--आपदेव के पूत्र एवं अनन्तदेव के । में प्रत्येक पर आपस्तम्ब, आश्वलायन, कात्यायन, छोटे भाई तथा संस्कारकौस्तुभ के लेखक जीवदेव बौधायन, मत्स्य०, लौगाक्षि, सत्याषाढ से उद्धरण द्वारा। प्रवरमंजरी, आश्वलायनसूत्रवृत्तिकार, नारा- दिये गये हैं। आपस्तम्बसूत्र के भाष्यकार के रूप में यणवृत्ति के उद्धरण हैं। लग० १६६०-१६८०। धूर्तस्वामी, कपर्दिस्वामी एवं ग्रहदेवस्वामी का उल्लेख कथन ऐसा है कि केवल माध्यन्दिनों को विवाह में है। निर्णयसिन्धु, नृसिंहप्रसाद, दत्तकमीमांसा में मातृगोत्र वजित है; सत्याषाढ़ एवं शिष्टाचार ने भी व० है। १४५० ई० से पूर्व । ऐसा कहा है। गोत्रप्रवरमञ्जरी-शंकर तान्त्रिक द्वारा। गोत्रों के भागों गोत्रप्रवरनिर्णय--नागेशभट्ट द्वारा। एवं उपभागों पर विशद विवेचन है। ज्योतिनिबन्ध, गोत्रप्रवरनिर्णय--नारायण भट्ट द्वारा। भट्टोजि के प्रवरदीपिका एवं बौधायन के व्याख्याकार द्वारा व० । गोत्रप्रवरनिर्णय में व०। बड़ोदा (सं० ७६५७)। गोत्रप्रवरनिर्णय--पद्मनाभ द्वारा (बड़ोदा, सं० ८७८९)। गोत्रप्रवरमञ्जरीसारोद्धार--शिव के पुत्र शंकर दैवज्ञ गोत्रप्रवरनिर्णय--भटोजिदीक्षित द्वारा। १७वीं शताब्दी द्वारा। ___ का पूर्वार्ध । इसका दूसरा नाम गोत्रप्रवरभास्कर गोत्रप्रवररल--रामकृष्ण भट्ट के पुत्र एवं कमलाकर भट्ट के छोटे भाई लक्ष्मण भट्ट द्वारा। लग० १५८५गोत्रप्रवरनिर्णय-(अभिनव) माधवाचार्य द्वारा। टी० १६३० ई०। मण्डूार रघुनाथाचार्य के पुत्र रघुनाथ द्वारा (मैसूर, गोत्रप्रवरविवेक-धनञ्जय के धर्मप्रदीप से। १९०० में प्रकाशित) गोत्रप्रवराध्याय-दे० 'प्रवराध्याय'। गोत्रप्रवरनिर्णय--रामेश्वरात्मज माधव के पुत्र रघनाथ गोत्रप्रवरोच्चार-औदीच्यप्रकाश से। द्वारा। १५५०-१६२५ ई०।। गोत्रामत-नसिंहपण्डित द्वारा। गोत्रप्रवरनिर्णय-शम्भुदेव के पुत्र विश्वेश्वर या विश्व- गोदानविधिसंग्रह-व्रजराज के पुत्र मधुसूदन गोस्वामी नाथ देव द्वारा, जो रामदेव के छोटे भाई थे। बनारस द्वारा। में समाप्त किया गया। इण्डि० आ०, जिल्द ३ गोपालकारिका-(बौधायनीय) वेदिकानिर्माण, वेदिकापृ० ५८० । शक सं० १५०६ में प्रणीत। बड़ोदा मापदण्ड जैसे धार्मिक कृत्यों पर ४२० श्लोक। (सं० ११०५५)। गद्य एवं पद्य दोनों में। गोपालपद्धति-~लेखक एवं नारायण द्वारा भी व०। गोत्रप्रवरनिर्णय-सदाराम द्वारा। १००० ई० के पूर्व । बी० बी० आर० ए० एस० गोत्रप्रवरनिर्णयवाक्यसुधार्णव-विश्वनाथ द्वारा। बड़ोदा (जिल्द २, पृ० १८३)। (सं० ९३७५) । 'गोत्रप्रवरनिर्णय' से भिन्न। गोपालपूजापद्धति--दशार्ण देश के नृसिंह-पुत्र दिनकर गोत्रप्रवरभास्कर---भट्टोजि द्वारा। यह 'गोत्रप्रवर- द्वारा (कृष्ण-पूजा पर)। इण्डि० आ० (पाण्डु०, निर्णय' ही है। पृ० ५८७)। संवत् १६६४। १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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