Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 545
________________ १५३८ गृह्यपद्धति --- वासुदेव दीक्षित द्वारा; संस्कारों, अष्टका आदि पर तीन खण्डों में; शक सं० १७२० में पाण्डु० उतारी गयी । धर्मशास्त्र का इतिहास गृह्यपरिशिष्ट - बह वृच गृह्य परिशिष्ट, छन्दोगगृह्य- गृह्यासंग्रह - गोभिलपुत्र द्वारा (बिब्लि० इण्डि० सी०, परिशिष्ट के अन्तर्गत देखिए । गोभिलगृह्य की अनुक्रमणिका के रूप में ) । शिव गृह्यपरिशिष्ट - अनन्त भट्ट द्वारा । गृह्यपरिशिष्ट-- वैकुण्ठनाथाचार्य द्वारा । राम की कृत्यचिन्तामणि एवं तथा मठप्रतिष्ठातत्त्व में व० छन्दोग वृषोत्सर्गतत्त्व टी० दामोदर के गृह्यप्रदीपकभाष्य -- नारायण द्वारा शांखायनगृह्यसूत्र पर एक टीका । गृह्यप्रयोग - ( आपस्तम्बीय) ब्रह्मविद्यातीर्थ द्वारा । सुदर्शनाचार्य को उ० किया गया है। अलवर (उद्धरण १४)। गृह्यप्रयोग - वीवायनीय । वाजसनेयीय । गृह्यप्रायश्चित्तसूत्र -- हुल्श, सं० ६३७ । गृह्यभाष्यसंग्रह -- ( या गृह्यभाष्यार्थसंग्रह) हेमाद्रि द्वारा व० । गुह्यरत्न -- वैदिकसार्वभौम ( अर्थात् सम्भवतः वेंकटेश) द्वारा । २१ खण्डों में । गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोशयन, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, उपनयन, चत्वारि वेदव्रतानि -- ऐसे बाह्य संस्कारों एवं दैव संस्कारों (यथा पाकयज्ञ ) का विवरण है । टी० बिबुधकण्ठभूषण, जो हारीतगोत्रज रंगनाथ के पुत्र वेंकटनाथ वैदिकसार्वभौम द्वारा प्रणीत है ( कण्ठभूषा नाम भी है ) । हुल्श, सं० ६०३ एवं उद्धरण, पृ० ८८ । इसमें उनके पितृमेधसार एवं उसकी टी० का तथा आशौचशतक और व्याख्या प्रयोगपारिजात, प्रयोगरत्न, निर्णयसिन्धु, भट्टोजिदीक्षित, परशुरामप्रताप एवं राम वाजपेयी तथा उनके श्राद्धसागर का उद्धरण है । १६५० ई० के उपरान्त । पुत्र विश्वनाथ द्वारा । लग० १६०० ई० । गृह्याग्निसागर -- ( प्रयोगसार ) लक्ष्मीघर के पुत्र नारायण भट्ट द्वारा ( उपाधि आरड या आरडे ) ; आपस्तम्ब के धूर्तस्वामी भाष्य पर रामाण्डारव्या रूपा, Jain Education International पुत्र रामकृष्ण द्वारा । गृह्यासंग्रहपरिशिष्ट-- छन्दोगवृषोत्सर्गतत्त्व में व० एवं ब्लूमफील्ड (जेड० डी० एम० जी०, जिल्द ३५, पृ० .५३७-५४८, २०९ श्लोकों एवं दो प्रपाठकों में) द्वारा सम्पादित | आरम्भ है— 'अथातः संप्रवक्ष्यामि यदुक्तं पद्मयोनिना । ब्राह्मणानां हितार्थाय संस्कारार्थे तु भाषितम् ॥' दे० बिब्लि० इण्डि० सी० । गृह्येोक्तकर्मपद्धति । गोत्रनिर्णय नन्दिपुर के केशवदेवज्ञ द्वारा, २७ श्लोकों में। टी० वावपुष्पमाला, प्रभाकर दैवज्ञ द्वारा; श्रीधरकृत प्रवरमञ्जरी का उद्धरण है । गोत्रनिर्णय -- बालम्भट्ट द्वारा । गोत्रनिर्णय - महादेव दैवज्ञ द्वारा (संभवतः यह केशव - कृत वाक्पुष्पमाला है, जो गोत्रप्रवरनिर्णय की टीका है) । गोत्रप्रवरकारिका । ० है । गोत्रप्रवरदीप - विष्णु पण्डित द्वारा । गृह्यसंग्रह - पारस्करगृह्य ( ३|१|१ ) के अपने भाष्य गोत्रप्रवरनिर्णय - आपदेव द्वारा (संभवत: यह भ्रांति है, क्योंकि जोवदेव आपदेव का एक पुत्र था ) । दे० बड़ोदा, सं० १८७० । में जयराम द्वारा व० । गृह्यसूत्रपद्धति । गृह्यसूत्रप्रकाशिका - (पारस्करगृह्य पर ) नृसिंह के गोत्रप्रवर निर्णय -- ( या गोत्रप्रवरदर्पण ) रामकृष्ण के पुत्र कमलाकर द्वारा । मैसूर में मुद्रित, १९०० ई० । १७वीं शताब्दी काल । गोत्रप्रवरनिर्णय -- अनन्तदेव द्वारा ( संस्कारकौस्तुभ में, जो उनके भाई के ग्रन्थ से लिया गया है ) । गोत्रप्रवरखण्ड -- धर्मसिन्धु से । आपरतंबीय भी । गोत्रप्रवरदर्पण | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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