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सुपार्श्व – पद्म० ६।१२९।१६ । सुयोगा - ( उन नदियों में एक जो अग्नि की माताएँ हैं) वन० २२२।२५३, मार्क ० ५४/२६, वायु ० ४५।१०४ । इसकी पहचान नहीं हो सकती, यद्यपि यह कहा गया है कि यह सह्य से निकली है (ब्रह्माण्ड ० २।१६।३५), कुछ लोग इसकी पहचान पेन्नार से करते हैं। देखिए एपि० इण्डि०, जिल्द २७, पृ०
२७३ ।
सुभद्र सिन्धु- संगम - - पद्म० ६।१२९।२५ । सुभूमिक-- ( सरस्वती पर एक तीर्थ ) शल्य० ३७ - २३ ( यहाँ बलराम आये थे ) ।
सुमन्तुलिंग - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ९७) ।
सुरभिवन --- ( हिमालय में शिलोदा नदी पर ) ब्रह्माण्ड ०
धर्मशास्त्र का इतिहास
सुवर्णसिकता -- - (नदी) इसका नाम जूनागढ़ वाले शिलालेख ( रुद्रदामन, १५५ ई० एपि० इण्डि०, जिल्द ८, पृ० ३६ एवं ४२ ) में आया है । आजकल यह काठियावाड़ में सोनरेखा के नाम से विख्यात है । सुवास्तु-- (नदी, काबुल नदी में मिलनेवाली आधुनिक स्वात) ऋ० ८।१९।३७ | यह एरियन (ऐं० इण्डिया, पृ० १९१ ) की सोआष्टोस है । पाणिनि (४/२/७७ ) को सुवास्तु ज्ञात थी । स्वात के पास प्रसिद्ध बौद्धगाथाओं वाले संस्कृत के शिलालेख पाये गये हैं (एपि० इण्डि०, जिल्द २, पृ० १३३ ) । सुव्रतस्य आश्रम -- ( दृषद्वती पर ) वन० ९०।१२-१३ ॥ सुषुम्ना -- ( १ ) ( गया के अन्तर्गत नंदी) नारद ० २१४७ ३६; (२) ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (तो० क०, पृ० ३५ ) ( इसे मत्स्योदरी भी कहते
२।१८।२३ ।
हैं) ।
३६ ।
सुरभिकेश्वर -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १११८/- सुषोमा-- (नदी) ऋ० ८ ६४|११ । ऋ० (१०१७५२ ५) में यह शब्द किसी नदी का द्योतक है किन्तु निरुक्त (९।२६ ) ने इसे सिन्धु माना है; भाग० ५। १९ | १८ | स्टीन (डा० आर० जी० भण्डारकर अभिनन्दन ग्रंथ, पृ० २१ २८, रिवर नेम्स इन ऋग्वेद') का कथन है ( पृ० २६) कि सुषोमा सोहन (सुजन) है जो रावलपिण्डी जिले में बहती हुई नमक की श्रेणी के उत्तर सिन्धु तक पहुंचती है। सुसर्तु--नदी, सिन्धु के पश्चिम उसकी सहायक नदी । ऋ० १०/७५/६ । कीथ को यह नहीं मालूम हो सका कि सिन्धु की यह कौन-सी सहायक नदी थी । सुतीक्ष्णाश्रम- - रामा० ३।७, रघुवंश १३ | ४१ (अगस्त्या - श्रम से कुछ दूर पर)।
सूकरतीर्थ -- ( बरेली और मथुरा के बीच में गंगा के पश्चिम तट पर सोरों) ऐं० जि०, पृ० ३४६-३६५ के मत से । देखिए इम्पी० गजे० इण्डि०, जिल्द २३, पृ० ८८-८९ । वराह० अ० १३७-१३९; ती० क० ( पृ० २०९-२१२ ) ने केवल वराह० के १३७वें अध्याय से ३७ श्लोक उद्धृत किये हैं। नारदीय २।४०।३१ एवं ६०।२२ ( यहाँ पर अच्युत वराह के
सुरसा -- (नदी) विष्णु ० २ | ३ | ११ ( विन्ध्य से निकलती है), ब्रह्माण्ड० २।१६।२९ (ऋक्षवान् से निकलती है), भाग० ५।१९।१८। सुरेश्वरी क्षेत्र - ( कश्मीर में इशाबर नामक आधुनिक ग्राम जो डल झील के उत्तर दो मील की दूरी पर है) राज० ५ १३७, नीलमत० १५३५, स्टीन-स्मृति पृ० १६१, यहाँ का मुख्य आकर्षण है गुप्तगंगा नामक एक पवित्र धारा । सुवर्ण-वन० ८४|१८, अग्नि० १०९।१६, पद्म० १|२८|१९ ( जहाँ पर विष्णु ने रुद्र की प्रसन्नता चाही थी ।
सुवर्णतिलक -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १।१८।४६ । सुवर्गाक्ष -- ( वारा० के अन्तर्गत) मत्स्य० १८१ २५, कूर्म ० २।३५।१९ ।
सुवर्णरेखा -- ( रैवतक के पास एक पवित्र नंदी) स्कन्द० ७२१११-३ ( सम्भवतः यह आगे वाली नदी भी है । बंगाल में भी इसी नाम की एक नदी है) । देखिए इम्पो० गजे० इण्डि, जिल्द २३, पृ० ११४ ।
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