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साकेत एवं अयोध्या को एक ही माना है । काशिका (पाणिनि ५।१।११६) ने लिखा है - 'पाटलिपुत्रवत् साकेते परिखा, जिससे प्रकट होता है कि ७वीं शताब्दी में साकेत का नगर चौड़ी खाई के साथ विद्यमान था। अभिधानचिन्तामणि ( पृ० १८२ ) के मत से साकेत, कोसला एवं अयोध्या पर्याय हैं । सामलनाथ -- ( श्यामलनाथ) मत्स्य० २२१४२, पद्म० ५।११।३५। दे (पृष्ठ २०० ) ने इसे महीकण्ठ एजेन्सी के सामलाजी कहा है।
धर्मशास्त्र का इतिहास
सानन्दूर वराह० १५०।५ । इसका वास्तविक स्थान नहीं बताया जा सकता। यह दक्षिणी समुद्र एवं मलय के मध्य में है। यहाँ पर विष्णु की प्रतिमा स्थापित हुई थी जो कुछ लोगों के कथनानुसार लोहे की और कुछ के कथनानुसार ताम्र या सीसा या पत्थर आदि की थी । दे ने इसका कोई उल्लेख नहीं किया है ।
सान्तेश्वर -- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ६६) ।
सामुद्रक - (ब्रह्मावर्त के पास ) वन० ९८४१४१ । साम्बपुर -- ( १ ) ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० ३७७१५५ ( कुलेश्वर नाम भी आया है); (२) (चन्द्रभागा के किनारों पर) भविष्यपुराण, ब्रह्म० १४०/३ | यह आज का मुल्तान है।
सामुद्रतीर्थ - ( गोदा के अन्तर्गत) ब्रह्म० १७२१ - २०, जिसके लगभग १० श्लोक तीर्थसार ( पृ० ६३-६४ ) द्वारा कुछ पाठान्तरों के साथ उद्धृत हैं । साभ्रमतो - सागर-संगम - पद्म० ६।१६६।१ । साभ्रमती -- ( आधुनिक साबरमती नदी, जो मेवाड़ की पहाड़ियों से निकलकर खम्भात की खाड़ी में गिरती है) साबरमती का मौलिक नाम श्वभ्रवती' है, इम्पी० गजे० इण्डि०, जिल्द २१, पृ० ३४४ । पद्म० ६।१३१ से अध्याय १७० तक इस नदी के उपतीर्थों का सविस्तर वर्णन है । अध्याय १३३ के २-६ तक के श्लोकों में इसकी सात धाराओं का उल्लेख है, यथा साभ्रमती, सेटीका ( श्वेतका),
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बकुला, हिरण्मयी, हस्तिमती (आधुनिक हाथीमती), वेत्रवती (आधुनिक वात्रक) एवं भद्रमुखी । सारस्वत --- (१) यहाँ श्राद्ध अति पुण्यकारी है, मत्स्य ० २२/६३; (२) (वारा ० के अन्तर्गत) कूर्म ० १ ३५/१२, पद्म० ११३७।१५ ।
सारस्वत तीर्थ - शल्य० ५० (असित, देवल एवं जंगी
षव्य की गाथा ) ; ५१ ( सरस्वती से सारस्वत का जन्म, जिन्होंने ऋषियों को १२ वर्ष के दुर्भिक्ष में वेद पढ़ाये थे) । सारस्वत-लिङ्ग- ( वारा० के अन्तर्गत ) स्कन्द ० ४।३३।१३४।
सावर्णीश्वर -- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ६० ) ।
सावित्री -- (नदी, जो आधुनिक रत्नगिरि एवं कोलाबा जिलों की सीमा बनाती है) पद्म० ६।११३।२८ । सावित्रीतीर्थ -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९४/६, कूर्म ० २०४२।१९, पद्म० १।२१।६ | सावित्रीपद -- ( गया के अन्तर्गत ) वन० ८४ ।९३ । सावित्रीश्वर -- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क० पृ० ७० ) ।
साहस्रकतीर्थ - - वन० ८३ । १५८, पद्म० १।२७।४६ ॥ सिंह बाई० सू० (३|१२० ) के अनुसार यह एक वैष्णव क्षेत्र है । सम्भवतः यह विजगापट्टम (आधुनिक विशाखापत्तन) के उत्तर-पश्चिम नृसिंहावतार का सिंहाचलम् मन्दिर है । देखिए इम्पी० गजे० इण्डि०, जिल्द १२, पृ० ३७५ । सिद्धकेश्वर -- (विरज तीर्थ के अन्तर्गत आठ तीर्थों में एक ) ब्रह्म० ४२|६ ॥
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सिद्धतीर्थ - ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० १४३ । १ । सिद्धपद -- (सरस्वती पर एक तीर्थ ) भाग० ३।३३।३१ ।
सिद्धपुर - ( अहमदाबाद से ६० मील उत्तर) मत्स्य ०
१३।४६ ( यहाँ देवी माता कही जाती है) । पितरों के लिए जो गया है वही माता के लिए सिद्धपुर है । यह सरस्वती नदी पर है ।
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