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धर्मशास्त्र का इतिहास
१८१।२८. अग्नि० ११२/३; (२) ( गोदा० के दक्षिणी तट पर ) ब्रह्म० १०४।८६ एवं ८८; (३) ( एक पर्वत) देवल ( ती० क०, २५० ) । हरिश्चन्द्रेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० क०, पृ० ११७) ।
हरितेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० १२०)।
हरिपर्वत -- ( श्रीनगर की एक पहाड़ी, सारिका पर्वत यापीठ) कश्मीर रिपोर्ट पृ० १७, विक्रमाङ्क देवचरित १८ । १५ ।
हरीतक. वन -- देखिए गत अध्याय १४ ' वैद्यनाथ' । हरिहरक्षेत्र -- (१) (तुंगभद्रा पर ) नृसिंह० ६५/१८ (ती० क०, पृ०२५३), पद्म० ६ । १७६।४६ एवं ६ - १८३३, वराह० १४४।१४५ ( देवाट भी कहा गया है); (२), गण्डकी और गंगा का संगम स्थल सोनपुर जहाँ पर गजेन्द्र मोक्ष हुआ था ) वराह० १४४।११६१३५। वाम० (८५।४-७६) ने गजेन्द्रमोक्ष की कथा को त्रिकूट पर्वत पर व्यक्त किया है। हरो भेद -- (श्राद्ध के लिए उपयुक्त स्थल) मत्स्य ० २२।२५ ।
हरियूपीया - ( एक नदी ) ऋ० ६ २७ ५ ( सम्भवतः हिमवान् — ऋ० (१०।१२१२।४) एवं अथर्ववेद (४/२/५) कुरुक्षेत्र में ) । में बहुवचन का प्रयोग है ( विश्वे हिमवन्तः ) । किन्तु अथर्ववेद (५।४।२ एवं ८, ४।२४। १ ) में एकवचन का प्रयोग है । केनोपनिषद् ( ३।२५) में उमा हैमवती का उल्लेख है। वन ० ( १५८/१९ ), उद्योग ० ( ११।१२) एवं पाणिनि (४|४|११२ ) में हिमवान् का उल्लेख है तथा कूर्म ० (२।३७।४६-४९) में इसकी लम्बाई १०८० योजन है। यह भारतवर्ष का वर्ष - पर्वत है तथा अन्य प्रमुख सात पर्वतों को कुल-पर्वत कहा गया है। मत्स्य ० ( ११७-११८) में इसके वृक्षों, पुष्पों एवं पशुओं का सुन्दर वर्णन किया गया है । हिमालय शब्द वेद-भिन्न ग्रंथों में भी आया है, यथा गीता (१०।२५) । हिमवान् का अर्थ है पूर्व
हर्षपथा -- ( कश्मीर में, शची कश्यप की प्रार्थना के
फलस्वरूप यह धारा हो गयी ) नीलमत० ३०९ । हस्ततीर्थ -- (हंसतीर्थ) कूर्म ० २।४२।१३ ( नर्मदा पर ) । हास्तिनपुर या हस्तिनापुर- (कुरुओं की राजधानी जो
भरत दोष्यन्ति के प्रपौत्र राजा हस्तिन के नाम पर पड़ी ) यह दिल्ली के उत्तर-पूर्व में है। आदि० ९५।३४, रामा० २।६८/१३ ( हास्तिनपुर), विष्णु ० ४।२११८, भाग० ९।२२।४० । जब यह गंगा द्वारा बहा दिया गया तो जनमेजय के पौत्र निचक्नु ने atara को अपनी राजधानी बनाया। पाणिनि ( ६ २१०१ ) को हास्तिनपुर ज्ञात था । और देखिए महाभाष्य, जिल्द १, पृ० ३८०, पाणिनि २।१।१६ ।
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हस्तिपादेश्वर - ( स्थाणुवट के पूर्व में एक शिवलिंग ) वाम० ४६।५९ ।
हस्तिपालेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ७६) ।
हाटक -- (करोड़ों हत्याओं के पापों का निवारक ) पद्म० ४।१७।६७ ॥
हाटकेश्वर - वाम० ६३।७८ (सप्त गोदावर पर ) । हारकुण्ड -- ( हारपुर के पास ) लिंग ० ११९२ १६४ । हारीततोयं -- ( श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध स्थल) मत्स्य ० २२६२ ( वसिष्ठतीर्थ के बाहर ) ।
आसाम से लेकर पंजाब के पश्चिम तक सम्पूर्ण पर्वत श्रेणी । मार्क० (५१।२४) का कथन है कि कैलास एवं हिमवान् पूर्व से पश्चिम तक फैले हुए हैं और दो समुद्रों के बीच में स्थित हैं तथा हिमवान् भारत ( जिसके दक्षिण, पश्चिम एवं पूर्व समुद्र हैं) के उत्तर में धनुष की प्रत्यंचा के समान है (मार्क० ५४|५९ ) । हिमवत्- अरण्य - देवीपुराण (तो० क०, पृ० २४४ ) । हिमालय - - देखिए 'हिमवान्' ऊपर । हिरण्यकशिपु-लिङ्ग- ( वारा० के अन्तर्गत ) लिंग ० ( ती० क०, पृ० ४३ ) |
हिरण्याक्षेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ४७) ।
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