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शूलभेव - ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य ० १९१ ३, कूर्म ० २।४१।१२-१४, पद्म० १।१८।३ । शूलेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ५२) ।
श्रृंगतीर्थ -- ( नर्मदा के अन्तर्गत ) पद्म० १।२१।३१ । श्रृंगवेरपुर -- या ( शंगिवेर) वन० ५०/६५, पद्म०
धर्मशास्त्र का इतिहास
१|३९|६१; रामा० २।१९३।२२, ६।१२६।४९, अग्नि० १०९।२३ । यहीं पर अयोध्या से वन को जाते समय राम ने गंगा पार की। यह आज का सिंगरौर या सिंगोर है जो प्रयाग से उत्तर-पश्चिम २२ मील दूर गंगा के बायें किनारे है । शृंगाटकेश्वर --- (श्रीपतंत के अन्तर्गत ) लिंग० ११
९२।१५५ ।
श्रृंपा -- (नदी, विन्ध्याचल से निकली हुई) ब्रह्माण्ड ० २।१६।३२ ।
शेषतीर्थ --- ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० ११५१ । शैलेश्वर -- ( वारा० के अन्तर्गत ) लिंग० १।९२।८६,
वराह० २१६।२३, नारदीय० २/५०/५७, स्कन्द ० ४।३।१३५ ।
शैलेश्वराश्रम -- वराह० २१५।५७ एवं ८३-८४ । शैलोदा - (नदी, जो अरुण पर्वत की शैलोद झील से निकलती है) वायु० ४७।२१, ब्रह्माण्ड० २।१८।२२ । देखिए दे, पृष्ठ १७२ ।
शोण-- (एक नद, जिसका नाम हिरण्यवाह भी है, जो पुराणों के अनुसार गोण्डवाना में ऋक्ष पर्वत से निकलता है और बांकीपुर से कुछ मील दूर गंगा से मिल जाता है) मत्स्य० ३२२।३५ ( एक नद), ११४।२५, ब्रह्म० २७/३०, वायु० ४५।९९, ब्रह्माण्ड ० २।१६।२९ | यह टालेमी ( पृ० ९९ ) का 'सोवा' एवं एरियन का 'सोनस' है । यह वहीं से, जहाँ से नर्मदा अमरकण्टक पहाड़ी से निकलती है, निकली है । देखिए ऐं० जि० ( पृ० ४५३-४५४) जहाँ इसके और गंगा के संगम का वर्णन है, और देवल-नि० सि० ११० -- ' शोण - सिन्धु - हिरण्याख्याः कोक- लोहितघर्घराः | शतद्रुश्च नदाः सप्त पावनाः परिकीर्तिताः ॥'
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यहाँ हिरण्य एवं कोक अनिश्चित हैं, लोहित ब्रह्मपुत्र है।
शोण ज्योतीरथ्या-संगम वन० ८५१८: पद्म० १1३९१८। वि० ध० सू० (८५।३३) शोण - ज्योतिषासंगम में आया है किन्तु इसकी टीका वैजयन्ती ने टिप्पणी की है कि यह शोणज्योतीरथा है । शोणप्रभद -- ( प्रभव ? ) वन० ८५/९, पद्म० १1३९/
९।
शोणितपुर -- (बाणासुर की राजधानी, जहाँ उषा के साथ कपटाचार करने के कारण अनिरुद्ध को बन्दी बनाया गया था) ब्रह्म० २०६।१, हरिवंश, विष्णुपर्व १२१।९२-९३ । दे ( पृ० १८९ ) का कथन है कि यह कुमायूँ में आज भी इसी नाम से है। और भी बहुत से स्थल बाणासुर के शोणितपुर के समान कहे गये हैं । हरिवंश में आया है कि शोणितपुर द्वारका से ११,००० योजन दूर है । भविष्य ० ( कृष्णजन्मखण्ड, उत्तरार्ध ११४।८४७) ने शोणितपुर को बाणासुर की राजधानी कहा है। अभिधानचिन्तामणि ( पृ० १८२ ) ने कहा है कि इसे कोटीवर्ष भी
कहा जाता था ।
शौनकेश्वरकुण्ड -- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० १२२) ।
शौर्पारक ब्रह्माण्ड० ३|१३|३७| देखिए सूर्पारक । श्मशान ---- - (दे० 'अविमुक्त' ) मत्स्य ० १८४ । १९ । श्मशानस्तम्भ- - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ५४ ) ।
श्यामाया आश्रम - अनु० २५।३० ।
श्येनी -- (ऋक्ष पर्वत से निकलने वाली नदी ) मत्स्य ०
११४।२५ । दे ( पृ० २००) ने इसे बुन्देलखण्ड की केन नदी कहा है ।
श्रावस्ती - - ( अवध में राप्ती के किनारे सहेत महेत )
कहा जाता है कि उत्तर कोसल में यह लव की राजधानी थी। अयोध्या से यह ५८ मील उत्तर है, रामा० ७ १०७७४-७, वायु० ८८।२०० एवं ऐं० ० पृ० ४०९ । रघुवंश (१५/९७) में श्रावस्ती
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