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ती सूची
विन्ध्यवासिनी - ( देवीस्थान ) मत्स्य० १३/३९, देवी
भाग० ८|३८|८ ।
विप्रतीर्थ -- ( गोदा० के अन्तर्गत ) ब्रह्म० १६७।१ एवं ३३ ( नारायण भी कहा गया है ) । विपाशा -- ( पञ्जाब में विपाट् या ब्यास नदी, यूनानी लेखकों की हैसिस या हिक्सिस ) ऋ० ३।३३।११३, ४|३०| ११ | निरुक्त ९।२६) ने ऋ० १०/७५/५ की व्याख्या में कहा है कि विपाशा आरम्भिक रूप में उञ्जरा कहलाती थी, फिर आर्जीकीया कहलायी और जब वसिष्ठ अपने को रस्सियों से बाँधकर इसमें गिर पड़े जब कि वे बहुत दुखी थे, तो वे नदी के ऊपर रस्सियों से विहीन होकर निकले। पाणिनि (४/२/१४ ) ने इसके उत्तर के पहाड़ों के साथ इसका उल्लेख किया है; आदि० ( १७७/१-५) ने भी वसिष्ठ द्वारा आत्महत्या करने के प्रयत्न की ओर संकेत किया है । वन० १३०१८-९ ( यहाँ विपाशा शब्द आया है)। (अनु० ( ३।१२-१३ ) ने भी इस कथानक की ओर संकेत किया है। देखिए रामायण २।६८।१९, वायु० ७९१६, नारदीय० २।६०।३० । विमल --- ( कश्मीर में मार्तण्ड मन्दिर के पास प्रसिद्ध धारा) देखिए मार्तण्ड, ऊपर ।
विमल - - न० ८२/८७ ( जहाँ चाँदी और सोने के रंगों वाली मछलियाँ पायी जाती हैं), पद्म० १|२४| ३५ ( दोनों में एक ही श्लोक है) ।
विमला -- ( एक नगरी) पद्म० ४।१७।६७ ( अवन्ती एवं कांची के समान यह बहुत-सी हत्याओं के पापों को नष्ट करती है) ।
विमलाशोक - वन० ६४।६९-७०, पद्म० १।२२/२३
(दोनों में एक ही श्लोक है) ।
विमलेश -- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती ० कल्प०,
पृ० ५६) ।
विमलेश्वर ---- ( १ ) ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९० | १४, १९४।३८-३९, २२८, कूर्म ० २।४११५ एवं २।४२।२६, पद्म० १।१७।११; ( २ ) ( सरस्वती के अन्तर्गत) वाम० ३४।१५, पद्म० ६।१३१।५० ।
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विमोचन वन० ८३।१६१, पद्म० ११२७१४९ । विभाण्डेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ११५ ) ।
विरज-- ( १ ) ( उड़ीसा में जाजपुर के चतुर्दिक् की भूमि ) वन० ८५/६ (२) तीर्थेन्दु शेखर (पृष्ठ ६ ) के अनुसार यह लोणार देश एवं झील है जो बरार
में
- बुलढाना जिले में है; (३) ( गोदा० एवं भीमा के पास सह्य पर्वत पर ) ब्रह्म० १६१।३ । विरजमण्डल -- ( ओड्र देश की उत्तरी सीमा) ब्रह्म०
२८१-२ ।
विरजतीर्थ (उड़ीसा में वैतरणी नदी पर ) वन० ८५/६, पद्म० ११२९१६, ११४५१२८-२९ ( यह आदित्यतीर्थ है ), ब्रह्म० ४२।१ (विरजे विरजा माता ब्रह्माणी सम्प्रतिष्ठिता), वाम० २२।१९ ( ब्रह्मा की दक्षिण वेदी) ब्रह्माण्ड० ३।१३।५७/ देखिए ती० प्र० ( पृ० ५९८-५९९ ) विरज क्षेत्र के लिए, जो उड़ीसा में जाजपुर के नाम से विख्यात है । विरजा -- ( उड़ीसा में नदी ) कूर्म० २।३५।२५-२६, बाम ० (ती० क०, पृ० २३५ ) । विरजाद्रि-- ( गया के अन्तर्गत) वायु ० १०६ ८५ ( इसी पर गयासुर की नाभि स्थिर थी) । विरूपाक्ष --- (१) (हम्पी ) पद्म० ५।१७ १०३, स्कन्द ० ब्रह्मखण्ड ६२।१०२; (२) ( वारा० के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० कल्प०, पृष्ठ १०२ ) । विशल्या -- (१) (नदी) वन० ८४|१४; (२) (नर्मदा
के अन्तर्गत) मत्स्य ० १८६।४३ एवं ४६-४८ ( विशल्यकरणी भी कही जाती है), कूर्म० २।४०।२७, पद्म ० १।१३।३९, ब्रह्माण्ड ० ३।१३।१२ ।
विशाखयूप - ( कुरुक्षेत्र के पास ) वन० ९०/१५, १७७।१६, वाम० ८१।९, नृसिंह० ६५।१४ ( विष्णु का गुह्य नाम यहाँ विश्वेश है ) ।
विशाला -- ( १ ) ( उज्जयिनी ) मेघदूत १।३० ; देखिए अवन्ती एवं उज्जयिनी के अन्तर्गत । अभिधानचिन्तामणि में आया है--' उज्जयिनी स्याद् विशालावन्ती पुष्पकरण्डिनी'; (२) (बदरी के पास आश्रम )
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