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धर्मशास्त्र का इतिहास
आयास (थकावट) एवं काम-क्रोध से वर्जित होकर मेरे घर में होनेवाले श्राद्ध में भाग लेना है', ब्राह्मण लोग उत्तर देंगे'ऐसा ही होगा यदि रात्रि किसी विघ्न-बाधा के बिना प्रसन्नतापूर्वक बीत जाय।' श्राद्धक्रियाकौमुदी (पृ०८१), श्राद्धतत्त्व (१० १९४) एवं निर्णयसिन्ध (३, १०८०४) का कथन है कि यदि एक दिन पूर्व आमंत्रण दिया जाय तो 'सर्वाया आदि श्लोक के साथ और यदि श्राद्ध-दिन के प्रातःकाल वैसा किया जाय तो 'अक्रोधनैः' श्लोक के साथ वैसा करना चाहिए। विभिन्न लेखकों ने आमंत्रण के विभिन्न शब्द दिये हैं। उदाहरणार्थ मिता० (याज्ञ० १।२२५) के मत से शब्द ये हैं-'श्राद्धे क्षणः क्रियताम्।' और देखिए श्राद्धप्रकाश (पृ० १०६) । मन (३।१८७-१९१) में 'निमंत्रण' एवं आमंत्रण' शब्द पर्याय रूप में प्रयुक्त हैं। श्राद्धसूत्र (१, कात्यायनकृत) में भी 'आमंत्रण' शब्द आया है, किन्तु पाणिनि (३।३।१६१)ने स्पष्टतः दोनों शब्दों का अन्तर बताया है और महाभाष्य ने व्याख्या की है कि निमंत्रण वह है जिसे अकारण अस्वीकार करने पर दोष या पाप लगता है और आमंत्रण वह है जिसे बिना दोषी एवं पापी हुए अस्वीकार किया जा सकता है। अत: ऐसा कहा जाना चाहिए कि बहत कम लेखक (कात्यायन आदि) ऐसे हैं जो आमंत्रण को गौण अर्थ में प्रयुक्त करते हैं। कर्ता स्वयं या उसका पुत्र, भाई या शिष्य या ब्राह्मण निमंत्रण कर दे, किन्तु दूसरे वर्ग के व्यक्ति द्वारा या स्त्री या बच्चा या दूसरे गोत्र के व्यक्ति द्वारा निमंत्रण नहीं दिया जाना चाहिए और न दूर से ही (प्रजापति ६४)। प्रचेता ने व्यवस्था दी है कि ब्राह्मण श्राद्धकर्ता को निमंत्रण देते समय आमंत्रित होने वाले व्यक्ति का दाहिना घटना, क्षत्रिय को बायाँ घटना, वैश्य को दोनों पैर छुने चाहिए और शद्र को साष्टांग पैरों पर गिर जाना चाहिए (श्रा० प्र०, पृ० १०६). मार्कण्डेय ने एक अपवाद दिया है (२८१३५) कि यदि श्राद्ध-कृत्य के समय ब्राह्मण या ब्रह्मचारी (वेदाध्ययन करनेवाले) या संन्यासी अचानक शिक्षा मांगते हुए आ जाये तो कर्ता को उनके पैरों पर गिरकर उन्हें प्रसन्न करना चाहिए और उन्हें भोजन देना चाहिए (अर्थात् इन लोगों को आमंत्रित करना आवश्यक नहीं है)। देखिए विष्णुपुराण (३।१५।१२)।
उशनस-स्मृति में आया है कि कर्ता को श्राद्ध के एक दिन पूर्व घर की भमि को पानी से धोना चाहिए, गोबर से लीपना चाहिए और पात्रों को स्वच्छ करना चाहिए, तब ब्राह्मणों को इन शब्दों के साथ आमंत्रित करना चाहिए'कल मैं श्राद्ध कर्म करूँगा।' और देखिए वराहपुराण एवं कूर्मपुराण जिनमें वस्त्रों को स्वच्छ करने की भी व्यवस्था है। मनु (३।२०६) ने भी कहा है कि श्राद्धस्थल को स्वच्छ, एकान्त वर्ती, गोबर से लिपा हुआ एवं दक्षिण की ओर ढालू होना चाहिए।
कात्यायन के श्राद्धसूत्र (श्राद्धतत्त्व, पृ० १८९) में आया है कि श्राद्ध में दोषरहित कर्ता द्वारा आमंत्रित होने पर ब्राह्मण को अस्वीकार नहीं करना चाहिए और उसे स्वीकृति देने के उपरान्त किसी दूसरे व्यक्ति से असिद्ध (अर्थात् बिना पका हुआ) भोजन भी स्वीकार नहीं करना चाहिए। मनु (३।१९०) एवं कूर्मपुराण ने लिखा है कि यदि कोई ब्राह्मण देवों एवं पितरों के यज्ञ में आमंत्रित होने के उपरान्त नियम भंग करता है तो वह पापी है और दूसरे जन्म में घोर नरक की यातना सहता हुआ सूकरयोनि को प्राप्त होता है। किन्तु रोग-ग्रसित होने पर या किसी उपयुक्त कारण से न आने पर दोष नहीं लगता।
स्मृतियों में आमंत्रित ब्राह्मणों एवं श्राद्धकर्ता के लिए कुछ कड़े एवं विशद नियमों की व्यवस्था दी हुई है। कुछ नियम तो दोनों के लिए समान हैं। गौतम (१५।२३-२४) ने कहा है कि उस ब्राह्मण को जिसने श्राद्ध-भोजन किया है, पूरे दिन भर ब्रह्मचर्य-व्रत पालन करना चाहिए, यदि वह अपनी शूद्रा पत्नी के साथ सम्भोग करता है तो उसके
५१. अक्रोधनैः शौचपरैरिति गाथामुदीरयन् । सायमामन्त्रयेद्विप्रान् श्राद्ध देवे च कर्मणि ॥ प्रजापतिस्मृति, ६३॥
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