________________
१४७४
धर्मशास्त्र का इतिहास स्वती के पास पर्वत) कूर्म० २।३७।२९। दे (पृष्ठ यमुनातीर्ण-शल्य० ४९।११-१६ (जहाँ वरुण ने राज१२१) एवं प्रो० आयंगर (ती. कल्प०, पृष्ठ २९) सूय यज्ञ किया था), मत्स्य० १०७।२३-२४ । (सूर्य के अनुसार यह शिवालिक की श्रेणी है। देखिए की पुत्री के रूप में) पद्म. १०२९।६। पाजिटर (पृष्ठ २८७-२८८) जिन्होंने मैनाक नामक यमुनासंगम - वराह० अ० १७४ ने इसकी महिमा का
तीन पर्वतों की चर्चा की है जो उपर्यक्त से भिन्न हैं। परा वर्णन किया है। मोक्षकेश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० यमुनेश्वर-(१) (वारा० के अन्तर्गत) लिङ्ग (ती० __ कल्प०, पृष्ठ ११२)।
क०, पृ० ६६); (२), वराह० (मथुरा के मोक्षराज-(मयुरा के अन्तर्गत) वराह० १६४।२५। अन्तर्गत) १५४।१२।। मोमतीर्थ--(मयुरा के अन्तर्गत) वराह० १५२।६१ ययातिपुर-(आधुनिक याजपुर) उड़ीसा में वैतरणी
(ऋषितीर्य के दक्षिण में), त्रिस्थलीसेतु (पृष्ठ नदो पर। ऐं. जि०, पृ० ५१२, और देखिए एपि० १०१)।
इण्डि०, पृष्ठ १८९, जहाँ ययातिनगर को जाजपुर मोमेश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कहा गया है जो सन्देहात्मक है। कल्प०, पृ० ४८)।
ययातिपतन--वन० ८२।४८, पद्म० २१२।८। मोदागिरि-(पर्वत) सभापर्व ३०।२१।
ययातीश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिङ्ग (ती० क०,
पृ० ११५)। यक्षतीर्व-आगे चलकर इसका नाम हंसतीर्थ हो गया। यवतीयं-(नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९११८८। वराह० १४४।१५५-१५६ ।
यष्टि--(गया के अन्तर्गत) नारदीय० २।४७।८२। यक्षिणी-संगम -(गोदावरी के अन्तर्गत ब्रह्म० १३२।१। दे(पृष्ठ २१५)का कथन है कि यह जेठिया है जो गया यजन-वन० ८२।१०६।
के तपोवन से उत्तर लगभग दोमील की दूरी पर है। यज्ञवराह-याज्ञपुर या जाजपुर में, जो उड़ीसा में वैत- याज्ञवल्क्यलिङ्ग-(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० रणी पर है, वराहदेव का विख्यात मन्दिर है।
क०, पृ० ४७ एवं ८८)। यन्त्रेश्वर-(नर्मदा के उत्तरी तट पर) मत्स्य० १९०११। यायाततीर्थ-(१) (सरस्वती के अन्तर्गत) वामन० यमतीर्थ--(१) (वाराणसी के अन्तर्गत) कूर्म० ३९।३६; (२) (वारा० के अन्तर्गत) शल्य० ४१।
११३५।६, २।४१३८३; (२) (गोदावरी के अन्तर्गत) ३२, पद्म० ११३७।९। ब्रह्म० १२५।१ एवं १३११; (३) (नर्मदा के युगन्धर--(१) पाणिनि (४।२।१३०) के अनुसार अन्तर्गत) पद्म० ११३७१६।
यह एक देश है और काशिका ने इसे शाल्वावयवों में यमलार्जुनकुण्ड--(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० (ती० एक माना है, ; (२) (पर्वत) पाणिनि (३।२।४६) कल्प०, पृ० १८७)।
के मत से, वाम० ३४।४७ । बार्ह ० सू० (३२३१९) यमव्यसनक--(कोकामुख के अन्तर्गत) वराह० १४० ने सम्भवतः इसे किसी देश या जन-समुदाय के नाम
से वर्णित किया है। यमुना-(नदी) ऋ० ५।५२।१७, ७।१८।१९, १०७५। योगितीर्य --(सूकर के अन्तर्गत) वराह० (ती० क०,
५। यमुना-माहात्म्य के लिए देखिए पद्म० ६, अ० पृ० २१०)।
१९५-१९७ । प्लिनी ने इसे जोमनस कहा है। योनिद्वार-(गया में ब्रह्मयोनि पहाड़ी पर) वन० ८४॥ यमुनाप्रभव-(यमुनोत्तरी) कूर्म० २।३७।३०, ब्रह्माण्ड० ९४-९५, पद्म० ११३८।१५, नारदीय० २।४४।७६
३३३१७१ (जहाँ गर्म एवं शीत जल की धाराएँ हैं)। ७७।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org