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तीर्थसूची
१४७३ मुंजवट-(गंगा पर, जो एक शिवस्थान है) वन पुर, प्रहलादपुर, आद्यस्थान (अलबरूनी-शची ८५।६७, पद्म० १।३९।६३ ।
११२९८)। मुण्डपृष्ठ-(१) (गया में फल्गु के पश्चिमी तट पर स्थित मूली--(महेन्द्र से निकली हुई नदी) मत्स्य ० ११४।३१ ।
एक पहाड़ी) कर्म० २।३७१३९-४०, नारद० मृगकामा--(मानस झील से निकली हुई नदी) ब्रह्माण्ड २।४५।९६, अग्नि० ११५।२२ एवं ४३-४४, वायु० ॥१८७१। ७७.१०२-१०३, १०८।१२ एवं १११।१५, ब्रह्माण्ड० मृगधूम-(यहाँ रुद्रपद है) पद्म० ११२६९४, बन० ३।१३।११०-१११ । महादेव ने यहाँ कठिन तप किया ८३।१०१ (यह गंगा पर है)। था। यह विष्णुपद की पहाड़ी के अतिरिक्त कोई अन्य मृगशृंगोदक -(वाग्मती नदी पर) वराह० २१५।६४ । स्थल नहीं है। यह गयायात्रा का केन्द्र है। गयासुर की मृत्युञ्जय (विरज के अन्तर्गत) ब्रह्म० ४२।६।। अनुकथा के अनुसार इस पहाड़ी पर उसके सिर का मेकल--(मध्य प्रदेश की एक पर्वतश्रेणी) नर्मदा को पृष्ठभाग स्थित था। (२) (कश्मीर में एक पहाड़ी) मेकलकन्यका कहा जाता है। नीलमत० १२४७-१२५४।
मेकला-पद्म० ५।११।३४ (क्या यह नदी है ? ) । मुण्डेश--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प०, मेकला --रामायण ४।४१।९, बार्ह ० सू० १४१७ एवं पृष्ठ ११६) ।
१६।२ में यह एक देश कहा गया है। मुर्मुरा--(अग्नि की माताओं के रूप में सात नदियों में मेघकर--मत्स्य० २२।४०, पद्म० ५।११।३४। एक) वन० २२२।२५।
मेघनाद--(नर्मदा के अन्तर्गत) पदा, २।९२।३१ । मूजवान् --(१) (एक पर्वत) ऋ० (१०॥३४११) में मेघङ्कर ---(प्रणीता नदी पर एक नगर) पद्म० सोम के पौधे को मौजवत कहा गया है और निरुक्त ६।१८१।५। (९।८)ने व्याख्या की है कि मूजवान् एक पर्वत है जिस मेघराव--(नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १।१७।४। पर सोम के पौधे उत्पन्न होते हैं। अथर्ववेद में मूजवत् मेखला--(मेघंकर नगर का एक तीर्थ) पद्म० ६. आया है और तक्मा (रोग के एक दुष्टात्मा) से १८१।१६, मत्स्य० २२।४०-४१ (इससे प्रकट होता मुजवान् एवं बाल्हिक के आगे चले जाने को कहा गया है कि मेखला मेघकर नगर का मध्य भाग मात्र है)। है। अथर्ववेद (५।२२।५) में 'मूजवंतः' आया है। मेधातिथि --(एक पवित्र नदी) वन० २२२।२३। ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के उत्तर-पश्चिम में मेधावन- पद्म० ११३९।५२ (श्राद्धस्थल)। यह कोई पर्वत है।
मेधाविक-बन० ८५।५५ । मूलतापी-(तापी नदी, जिसका नाम इसके उद्गमस्थल मेरुकूट ---नृसिंह० ६५ (तीर्थकल्प०, पृष्ठ २६५) । मुल्ताई से, जो मूलतापी का अशुद्ध रूप है, पड़ा है) मेरुवर--(वदरी के अन्तर्गत) वराह १४१।३२-३५ । मत्स्य० २२२३३ (मलतापी पयोष्णीच) । मल्ताई मेहन-. (नदी) ऋ० १०७५१६ (क्रम की एक मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में एक ग्राम है और इसमें सहायक)। एक पवित्र तालाब है जिससे तापी निकली है। देखिए मैत्रेयीलिङ्ग--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती. इम्पी० गजे० इण्डि०, जिल्द १८, पृष्ठ कल्प०, पृष्ठ ५७)। २१।
मैनाक ---(१) (बदरी के पास एक पर्वत) वन० मूलस्थान-(आधुनिक मुलतान) मल्लों की प्राचीन १३९।१७, १४५।४४, अनु० २५।५९, ब्रह्माण्ड ०
राजधानी। ऐं० जि०, पृष्ठ २२०-२२४ एवं २३०- । ३।१३।७०, भाग० ५।१९।१६; (२) (गुजरात के २३६। इसके कई नाम थे, यथा-काश्यपपुर, साम्ब- पास पश्चिम का पर्वत) वन० ८९।११; (३) (सर
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