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तीर्थसूची
१४२९ गभस्तीश--(वाराणसी के अन्तर्गत) स्कन्द० ६।३३। गर्तेश्वर--(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १६९।१७ १५४।
१७६।६। गभीरक-(मन्दार के दक्षिण भाग के अन्तर्गत) वराह० गल्लिका--(गण्डकी नदी का एक अन्य नाम) पद्म० १४३।४२।
६७६४२, (जहाँ शालग्राम पाषाण पाये जाते हैं) गम्भीरा--(१) (एक नदी जो विजयेश्वर के नीचे ६।१२९।१४। वितस्ता से मिल जातीहै) ह. चि०१०११९२, स्टीन- गायत्रीस्थान-वन० ८५।२८ । स्मृति (पृ० १७०) । स्टीन ने राज० (८।१०६३) गायत्रीश्वर-(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती. की टिप्पणी में कहा है कि यह वितस्ता से मिलने के क०,१० ७०)। पूर्व विशोका के निम्नतम भाग का नाम है; (२) गायत्रीतीर्थ-(गया के अन्तर्गत) वायु० ११२।२१ । (मध्य प्रदेश में) मेघदूत ११४०; बृहत्संहिता गाणपत्यतीर्थ-(विष्णु नामक पहाड़ी पर, साभ्रमती के (१६।१५) ने 'गाम्भीरिका' नदी का नाम लिया है, पास) पद्म० ६।१२९।२६, ६।१६३।१। जो क्षिप्रा से मिलती है।
गालव--देखिए 'पापप्रणाशन'। गया--(१) देखिए, इस ग्रन्थ का खण्ड ४ अध्याय १४; गालवेश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग. (ती०
(२) (बदरिकाश्रम पर पाँच धाराओं में एक) क०, पृ० ९८)। नारदीय० २१६७१५७-५८।
गार्हपत्यपद-(गया के अन्तर्गत) वायु० ११११५० । गयाकेदारक-- (गया के अन्तर्गत) अग्नि० ११५।५३। गारुड-- (गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० ९०।१। गया-निष्क्रमण--नसिंह० (ती० क०, प० २५२). यहाँ गिरिकणिका--मत्स्य० २२१३९। दे (१० ६५) ने विष्णु का गुह्य नाम हरि है।
इसे साभ्रमती कहा है। गयाशिर--(राजर्षि गय के नाम से प्रसिद्ध पहाड़ी) गिरिकुञ्ज--पद्म० १।२४।३४ (जहाँ ब्रह्मा निवास करते
वन० ९५।९,८७।११, वायु० १०५।२९ (यह विस्तार हैं)। में एक कोस है), वाम० २२।२० (यह ब्रह्मा की पूर्व गिरिकूट-(गया के अन्तर्गत) नारदीय० २।४७।७५ । वेदी है) अग्नि० ११५।२५-२६ (यह फल्गुतीर्थ है)। गिरिनगर--(काठियावाड़ में आधुनिक जूनागढ़) डा० बरुआ ('गया एण्ड बुद्धगया', जिल्द १, पृ० ७) इसके पास की पहाड़ी प्राचीन काल में उज्जयन्त या के मत से यह आधुनिक ब्रह्मयोनि पहाड़ी है।
ऊर्जयन्त कहलाती थी, किन्तु अब गिरनार कही जाती गयातीर्थ--(वाराणसी के अन्तर्गत) पद्म० ११३७।५ । है। दे (पृ०६५-६६) ने इस पर लम्बी टिप्पणी की गयाशीर्ष--(गया नगर के पास एक पर्वतश्रेणी) वि० है। एक पहाड़ी के ऊपर दत्तात्रेय की पादुकाओं (पदध० सू० ८५।४। बुद्ध १००० भिक्षुओं के साथ गया के चिह्नों के साथ पत्थर) के चिह्न यहाँ अंकित हैं। यहाँ पास गयाशीस पर गये; देखिए महावग्ग २२१०१ अशोक का शिलालेख है, अतः ई० पू० तीसरी शताब्दी (एस० बी० ई०, जिल्द १३, पृ० १३४)। देखिए में यह स्थान प्रसिद्ध रहा होगा। जनागढ़ के शिलालेख इस ग्रन्थ के खण्ड ४ का अध्याय १४ ।
में यह प्रथम पंक्ति में वर्णित है (एपि० इण्डि०, जिल्द गवां-भवन-पद्म०२६।४६।
८, पृ० ३६, ४२)। देखिए 'वस्त्रापथ' के अन्तर्गत । गरुडकेश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० गिरिखज-(जरासन्ध एवं उसके पुत्र सहदेव से लेकर क०, पृ०६७)।
मगध के राजाओं की राजधानी) इसे बौद्ध काल गर्गस्रोत--(सरस्वती पर) शल्य० ३७।१४।
में राजगृह कहा जाता था। यह पटना से लगभग ६२ गर्गेश्वर--(नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९१३८२। मील पर है। दे (पृ० ६६-६९) ने इस पर लम्बी
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