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तीर्थसूची
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महानाद--मत्स्य० २२।५३, यहाँ का दान अत्यन्त फल- महामुण्डा---(वाराणसी के अन्तर्गत) । लिंग० (ती० दायक है।
कल्प०, पृ० ५६)। महापानाग--(कश्मीर में एक झील) नीलमत० महामुण्डेश्वर--- (वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती०
११२०-११२२, ११५७ (एक योजन लम्बी और कल्प०, पृ०५६)। चौड़ी)। यह उल्लोल एवं आधुनिक उल्लूर झील है। महारुद्रः-मत्स्य० २२।३४। देखिए राज० ४।५९१, नीलमत० ११२३-११५९ जहाँ महालक्ष्मेश्वर-(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० दुष्ट षडंगुल नाग की गाथा है। बुहलर कृत 'कश्मीर (ती० कल्प०, पृ० ६९)। रिपोर्ट' पृष्ठ ९-१०। .
महालय--वन० ८५।९२ (दानं दद्याद् महालये), वि० महापाशुपतेश्वर-(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग ध० सू० ८५।१८, मत्स्य० १८१।२५, कर्म० २।२०।३३ __ (ती० कल्प०, पृष्ठ १०५) ।
(श्राद्ध के लिए अति उपयुक्त), २।३७।१-४ (जहाँ महापुर--(एक तीर्थ) अनु० २५-२६।। पाशुपतों ने महादेव की पूजा की), पद्म० ५।११।१७, महाबल-(१) (सतारा जिले में महाबलेश्वर) ब्रह्माण्ड० ३।१३।८२-८४, वामन० ९०।२२, पद्म०
पम० ६।११३।२९। देखिए जे० बी० आर० ए० ११३७।१६। एस०, जिल्द १०, पृष्ठ १-१८ जहाँ महाबलेश्वर महालयकूप--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० माहात्म्य का वर्णन है; (२) (गोकर्ण का कल्प०, पृ० ६३)। महाबलेश्वर) देखिए कदम्बराज कामदेव का गोकर्ण महालय लिंग--(पितरों का तीर्थ) मत्स्य० १३।३३, दानपत्र (१२३६ ई०, एपि० इण्डि० जिल्द २७, २२॥३४ (यहाँ पर देवी को कपिला कहा जाता है और पृष्ठ १५७)।
यहाँ का श्राद्ध अत्यन्त फलदायक होता है)। महाबोषि तर-(बोध गया का पीपल वृक्ष जिसके नीचे महावन--(मथुरा के १२ वनों में ८वां वन, वज) वराह० बुद्ध को सम्बोधि प्राप्त हुई) अग्नि० ११५।३७, १५३।४०, १६१।८ । आधुनिक महावन बस्ती यमुना मत्स्थ०२२।३३, नारद० २।४५।१०३, वायु० १११॥ के बायें किनारे के सन्निकट है। कृष्ण ने अपना बचपन २६, वायु० अ० १११ के श्लोक २८-२९ इस तरु को यहीं बिताया था। सम्बोधित हैं । पम० (६।११७।२६-३०) ने बतलाया है महावेणा--पद्म० ५।११।२७। कि बोधि तरु किस प्रकार शनिवार को स्पर्श के योग्य महाशाल-मत्स्य० २२।३४, पद्म०५।११।२७ । एवं अन्य दिनों स्पर्श के अयोग्य है। देखिए डा० बरुआ महाशालनदी-मत्स्य० २२।४२। ('गया ऐण्ड बुद्ध गया', जिल्द १, पृष्ठ २३४), वायु० महाश्रम--वन० ८४१५३, पद्म० ११३२।१७। ११११२७-२९ की स्तुतियाँ यहाँ उद्धत हैं, और देखिए महाशोण-(शोण भद्र) सभापर्व २०।२७। वही, जिल्द २, पृ० २-९, जहाँ इस वृक्ष के इतिहास का महासर--महाभारत (ती० कल्प०, पृ० २४६) । उल्लेख है। और देखिए कनिंघम का 'महाबोधि' महास्थल-(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १४०।२२। नामक विख्यात ग्रन्थ जहाँ धर्मपाल के शिलालेख पाँच स्थलों में एक; अन्य हैं अर्कस्थल, वीरस्थल, कुश(८५० ई०) में उल्लिखित महाबोधि की चर्चा पृष्ठ स्थल तथा पुण्यस्थल। ३ में की गयी है।
महीसागरसंगम-स्कन्द० २।३।२६ । महाभैरव-(आठ शिवतीर्थों में एक) मत्स्य० १८११- माहिष्मती--(नर्मदा पर) पाजिटर ने इसे ओंकार
२९, कूर्म० २।४४१३, देवल० (ती० कल्प०, पृ० । __ भान्धाता (नदी द्वीप) तथा हाल्दार आदि ने महेश्वर २५०)।
कहा है। मान्धाता द्वीप मध्य प्रदेश के नेमाड़ जिले से
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