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१२ जहाँ दन्तकथा दी हुई है। अय्या वोल या अवल्ली या ऐहोल नाम का प्रसिद्ध गाँव इस नदी पर है जो बदामी के पूर्व है । देखिए इण्डियन ऐण्टिक्वेरी, जिल्द ८, पृष्ठ २४३, जिसमें ऐहोल शिलालेख ६३४ ई० का उल्लेख है । परशुराम ने अपनी रक्तरंजित कुल्हाड़ी मलप्रभा में धोयी थी । देखिए बम्बई का गजेटियर, जिल्द २३, पृष्ठ ५४५ ।
मलय-- ( भारत के सात प्रसिद्ध पर्वतों में एक ) वन० २८२।४३, ३१३।३२, भीष्म० ९।११, कूर्म ० १ ४७ | २३ ( इसके शिखर से समुद्र देखा जा सकता है), वायु० ४५।८८, ब्रह्म० २७।१९। रघुवंश (४/४५५१) में आया है कि मलय कावेरी के तट पर है जहाँ यह समुद्र में गिरती है और यहाँ एला एवं चन्दन के वृक्ष उगते हैं, इसे ताम्रपर्णी भी कहा गया है । यह पाण्ड्य देश का पर्वत है ( रघुवंश ४,४९-५१), अगस्त्य का यहाँ पर आश्रम था । मलयज - पद्म० ६।१२९/१२ (विष्णु एवं शिव के तीर्थों में एक ) ।
मलार्जुनक - (यमुना के तट पर मथुरा के अन्तर्गत एक तीर्थ) वराह० १५७।१ ।
धर्मशास्त्र का इतिहास
मल्लक- - (गंगा के पश्चिमी तट पर ) पद्म० ५।५।७४ ( जहाँ सती ने अपने को जलाया था ) । मलापहा -- (दक्षिण में एक नदी ) इसके तट पर मुनि
पर्णा नामक नगरी है जहाँ 'पंचलिंग महेश्वर' हैं । मल्लिकाव्य -- (एक बड़ा पर्वत) पद्म० ४।१७।६८। मल्लिकार्जुन -- (श्रीपर्वत के अन्तर्गत ) लिंग ० १।९२। १५५ ।
मल्लिकेश्वर -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १ १८/६ | महत्कुण्ड -- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प०, पृष्ठ ७० ) ।
महती - ( पारियात्र से निर्गत नदी) मत्स्य० ११४।२३, वायु० ४५।९७ ।
महाकाल - (१) (उज्जयिनी में शिव, १२ ज्योतिलिंगों में एक ) वन० ८२।४९, मत्स्य० १३ ४१, २२ | २४, १७९५ ( अवन्ति देश में महाकालवन में शिव
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एवं अन्धकासुर में युद्ध हुआ था), ब्रह्म० ४३१६६, स्कन्द० ४|१|९१ ; (२) (वारा० में एक लिंग) लिंग० १।९२।१३७ ॥
महाकालवन --- ( अवन्ति देश में) मत्स्य० १७९/५ । महाकाशी - वामन० (ती० कल्प० पृ० २३९ ) । महाकूट - (श्राद्ध के लिए उपयुक्त एक पहाड़ी) वायु० ७७/५७, ब्रह्माण्ड ० ३ | १३|५८ | यह संदेहात्मक है कि यह वही है जो बदामी के पूर्व की पहाड़ियों पर मन्दिरों का समूह है, जिसे आज भी महाकूट कहा जाता है । स्थानीय परम्परा के अनुसार यह वह स्थल है जहाँ वातापी एवं इल्वल नामक दो राक्षस भाई मारे गये थे । देखिए इण्डियन ऐण्टिक्वेरी, जिल्द १०, पृष्ठ १०२-१०३, जहाँ ६९६-७३४ ई० के लगभग के एक शिलालेख का उल्लेख है । महागङ्गा - अनु० २५।२२ ( ती० कंरूप० पृ० २४६ ),
वि० ६० सू० ८५।२३ ( इसकी टीका ने उसे अलकनन्दा माना है ।
महागौरी - (विन्ध्य से निर्गत एक नदी) मत्स्य० ११४ ॥ २८, वायु० ४५।१०३ । महातीर्थ - कूर्म० २।३७।१२ । महानदी -- (१) (वह नदी जो विन्ध्य से निकलकर उड़ीसा में कटक के पास बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है) ब्रह्माण्ड० ४६ ४५, कूर्म० २।३५।२५ । ब्रह्माण्ड ० ( २।१६।२८ ) के अनुसार यह पारियात्र से निकलती है; (२) ( गया के अन्तर्गत नदी, सम्भवतः फल्गु) पद्म० ११३८ ४, वायु० १०८ | १६-७, ११०१६, अग्नि० ११५।२५, वन० अध्याय ८४; (३) ( द्रविड़ देश में ) भाग० ११।५।४० । महानन्दा - ( बंगाल के उत्तर पूर्व में दार्जिलिंग के पास हिमालय से निकली हुई और मालदा जिले में गंगा से मिलनेवाली एक नदी) देखिए इम्पीरियल गजेटियर, जिल्द २० पृष्ठ ४१३- ४१४ । ( पूर्णियाँ जिले के अन्तर्गत )
महानल -- ( मृत्यु द्वारा स्थापित एक लिंग, गो० के अन्तर्गत ) ब्रह्म० ११६।१ ।
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