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धर्मशास्त्र का इतिहास मत्स्यनवी-(पवित्र नदी) मत्स्य० २२०४९। । देखिए डा० एस० कृष्णस्वामी आयंगर द्वारा लिखित मत्स्यशिला--(कोकामुख के अन्तर्गत) वराह. १४०।- 'मणिमेखलई इन इट्स हिस्टारिक सेटिंग', पृ० २० । ७९-८३।
मधुरा मयुरा का ही तमिल ढंग का उच्चारण है। मत्स्योदपान-नृसिंह० (ती० कल्प०, पृष्ठ २५१)। देखिए मीथिक सोसाइटी का जर्नल, सन् १९४२, जिल्द मत्स्योदरी-(वाराणसी में कपिलेश्वर के दक्षिण एवं ३२, पृ० २७०-२७५ (तमिल साहित्यिक परम्परा
ओंकारेश्वर के पास) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० एवं मदुरा के लिए) एवं प्रो० दीक्षितार का 'सिलप्प५८-५९), स्कन्द० ४।२३:१२० एवं ४१७३।१५५। दिकारम्' (पृष्ठ २०१-८) जहाँ इसका वर्णन है और त्रिस्थलीसेतु (पृ० १४०) का कथन है-'मत्स्याकारं पृ० २५५ जहां कन्नकी के शाप से मदुरा के विनाश काशीक्षेत्रम् उदरे अस्या इति व्युत्पत्त्या गंगेव मत्स्यो- का वर्णन है। दरी ज्ञेया।'
मथुरातीर्थ-(साभ्रमती के अन्तर्गत) पम० ६।१३५॥ मदोत्कट-पम० ६।१२९६९ (जम्बू द्वीप के १०८ तीर्थों १८। में ९वाँ)।
मषक्त-(१) (मथुरा में) वन० १।१२ एवं ३१ (यहाँ भावा--(एक पहाड़ी) ब्रह्माण्ड० ३।१३।५२ एवं ५७। मधु नामक राक्षस रहता था) कूर्म० २।३६।९, वराह. सम्भवतः यह मण्डवा ही है।
१५३।३०, वाम० ८३॥३१, ९०११४, भाग०४१८०४२ माा--(नदी, विन्ध्य से निकली हुई) वायु०४५।१०२। (यमुना के तटों पर), ९।११।१४ (शत्रुघ्न ने मधुवन मनुकुल्या-(नदी, गया में) वायु० १०६।७५, ११२- में मथुरा बसायी), ग्राउस ने 'मथुरा' नामक पुस्तक
में इसे महोली कहा है जो मथुरा से दक्षिण-पश्चिम मधुकैटभलिङ्ग-(वाराणसी में) लिंग० (ती० कल्प०, पाँच मील दूर है (पृष्ठ ३२, ५४); (२) (कुरुक्षेत्र पृ०४३)।
___ के सात वनों में एक) वाम० ३४।५। मनन्दिनी-(नदी) वाम ० ८१२१६ ।
मषुवती-(एक देवीस्थान) पर० १।२६।८८ । मपुर-(पृथूदक के अन्तर्गत) पद्म० ११२७३३८। मघुनवा-(नदी) (१) (गया में) वायु० १०६।७५, मधुपुरी-(मथुरा) भाग०७।१४।३१, विष्णु० १।१२। ११२॥३०७।३४, नारदीय० २।४७।२७; (२) (सर२-४।
स्वती के अन्तर्गत) वाम० ३४१७, ३९।३६-३८, वन० मधुमती-(१) (कश्मीर में एक नदी) नीलमत० १४४ ८३।१५० ।
(वितस्ता में मिलती है), १४४४ (इस पर दुर्गा नामक मधुविला-(नदी) समंगा। वन० १३५।१। तीर्थ है जो शाण्डिल्य द्वारा स्थापित हुआ था), मकवन-(अगस्त्याश्रम एवं पंचवटी के मध्य) रामा० विक्रमांकदेवचरित १८१५; (२) (एक नदी जोबंगाल ३।१३।२३। । के नदिया और बाकरगंज जिलों से होकर बहती हुई मधुबका-(नदी) वाम० ५७४८० । बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। (३) (वह नदी जो मध्यम पुष्कर-(देखिए पुष्कर) पम० ५।१९।३८, मध्यप्रदेश में सिन्धु से मिलती है); देखिए मालती- वाम० २२।१९।।
माधव (९वाँ अंक, श्लोक २ के पश्चात् गद्यांश)। मध्यमेश्वर लिग-(१) (वाराणसी के अन्तर्गत कूर्म. मपुरा-(१) (मथुरा, शूरसेन देश की राजधानी) ११३२१२, ११३४११-२, लिंग. ११९२।९१ तथा
ब्रह्माण्ड० ३।४९।६, विष्णु० १।१२।४ एवं रामा० १३५, पद्म० ११३४।१० (वाराणसी के पांच मुख्य ७७०१५; (२) (आधुनिक मदुरा, पाण्ड्य लोगों की लिंगों में एक); (२) (श्रीपर्वत के अन्तर्गत) लिंग प्राचीन राजधानी जिसे दक्षिण मधुरा कहा जाता था, ११९२११५१
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