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दीचेश्वर -- ( वाराणसी के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० क०, पृ० ४३) ।
वर्डर या दुर्दर -- (नीलगिरि पहाड़ी ) वन० २८२।४३, मार्क ०५४।१२, वराह० २१४।५२, रघुवंश ४।५१, ताम्रपर्णी नदी के पास बार्ह ० सू० १४|११ । दसंक्रमण - वन० ८४ । ४५, पद्म० १।३२।९ । दशार्णा (ऋक्ष पर्वत से निकली हुई नदी, जहाँ के श्राद्ध, जप, दान अति पुण्यकारक होते हैं) मत्स्य० २२ । ३४, कूर्म० २१३७ ३५-३६, वायु० ४५/९९, ७७/९३ । विलसन (जिल्द २, पृ० १५५ ) का कथन है कि अब इसे दसान कहा जाता है, जो भूपाल से निकल कर बेतवा में मिलती है । महाभाष्य (वार्तिक ७ एवं ८, पाणिनि ६६१।८९ ) ने इसकी व्युत्पत्ति की है (जिल्द ३, पृ० ६९) । दशार्ण का अर्थ वह देश है, जिसमें दस दुर्ग हों या वह नदी ( दशार्णा) हो जिसके दस जल हों । मेघदूत ( ११२३ - २४) से प्रकट होता है कि दशार्ण देश की राजधानी विदिशा थी और वेत्रवती (बेतवा ) इसके पास थी। टॉलेमी ने इसे दोसरोन कहा है ( पृ० ७१) । बार्ह ० सू० (१०/१५) का कथन है कि उत्तराषाढ़ में शनैश्चर (शनि) दशार्णो को नष्ट कर देता है । दशाश्वमेधिक -- ( या मेधक, या मेघ) (१) (गंगा
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धर्मशास्त्र का इतिहास
पर एक तीर्थ ) वन० ८३ । १४, ८५।८७, वायु० ७७ । ४५, ब्रह्माण्ड० ३।१३।४५, कूर्म० २।३७।२६, मत्स्य ० १८५।६८ (वाराणसी में ); (२) (प्रयाग के अन्तर्गत) मत्स्य०१०६।४६; (३) ( गया के अन्तर्गत) अग्नि० ११५/४५, नारदीय० २।४७।३० ; ( ४ ) ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य ० १९३।२१, कूर्म० २।४१, १०४ पद्म० १२० १२०; देखिए बम्बई गजे० ( जिल्द २, पृ० ३४८ ) ; ( ५ ) ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १५४।२३; ( ६ ) ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत) पद्म० १।२६।१२; ( ७ ) ( गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० ८३।१ ; ( ८ ) ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० ( ती० क०, पृ० ११६ ) । दाकिनी (डाकिनी) - ( भीमशंकर ) शिवपुराण ४। १ ।
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दामी - (पुंल्लिंग संज्ञा ) वन० ८२।७१-७५ । दामोदरनाग-- कश्मीर की एक धारा, जो खुनमोह ग्राम का ऊपरी शिखर है, जहाँ कवि बिल्हण का जन्म हुआ था | देखिए स्टीन-स्मृति, पृ० १६६ । दात्म्याश्रम -- ( वक दाल्भ्य का आश्रम, जहाँ राम एवं लक्ष्मण सुग्रीव एवं उसके अनुचरों के साथ रहते थे )
पद्म० ६१४६।१४-१५ ।
दारुवन
मं० २०३९।६६, यह देवदारुवन है। दिण्डीपुण्यकर -- ( श्राद्ध के योग्य, सम्भवतः दक्षिण में )
मत्स्य० २२।७७ ।
दिवाकर-लिंग- - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ६५) ।
दिवौकः पुष्करिणी -- वन० ८४।११८, पद्म० १|३८|३५| दीपेश्वर -- ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य ० १९१ ३८,
कूर्म० २।४१।२५-२७ (यह व्यास - तीर्थ - तपोवन है ) । दीप्तोव - ( यह सम्भवतः भृगुतीर्थ है) वन० ९९/६९
( जहाँ पर परशुराम के प्रपितामह भृगु एवं पिता ने कठिन तप किया था ) ।
दीर्घसत्र -- वन० ८२।१०७-११०, पद्म० १।२५।१५-१६ । दीर्घविष्णु -- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १६३।६३ । दुग्धेश्वर -- ( साभ्रमती के अन्तर्गत ) पद्म० ६ १४८|१ ( खण्डधर के दक्षिण ), देखिए बम्बई गजे०, जिल्द १६, पृ० ६ ।
दुर्गा -- बार्ह ० सू० (३१२८), दुर्गा विन्ध्य पर रहती हैं । दुर्गा - - (विन्ध्य से निकलनेवाली एक नदी) वायु०
४५।१०३ एवं ब्रह्माण्ड ० २।१६।३३ । दुर्गातीर्थ - - (१) ( सरस्वती के अन्तर्गत ) वामन०
२५।१०३, ब्रह्माण्ड ० २।१६।३३; (२) (गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० १३२।८। दुर्गा-साभ्रमतीसंगम - पद्म० ६।१६९।१ । दुर्धरेश्वर-- ( साभ्रमती पर) पद्म० ६।१४६ । १ । दृषद्वती - (नदी) (देखिए अध्याय १५ के आरम्भ में ) ऋ० ( ३।२३।४ ) में यह 'आपया' एवं 'सरस्वती' के साथ अग्नि-पूजा के लिए पवित्र मानी गयी है । वन० ९०।११, मनु० २।१७ ने इसे देवनदी कहा है, नार
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