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धूतवाहिनी - ( ऋष्यवन्त से निकली हुई नदी) मत्स्य० ११४।२६ ।
धेनुक
- ( गया के अन्तर्गत ) वन० ८४१८७-८९, पद्म ० ११३८।७-१०, नारदीय० २।४४।६८ | धेनुकारण्य -- ( गया के अन्तर्गत ) वायु० ११२।५६, अग्नि० ११६।३२।
धेनुवट -- (कोकामुख के अन्तर्गत ) वराह० १४० १४०
४३ |
धौतपाप - देखिए 'पापप्रणाशन' । धौतपापा -- (हिमालय से निकली हुई नदी) मत्स्य ० ११४।२२ ।
धौतपापेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत )
तीर्थसूची
४।३३।१५६ ।
ध्रुवतपोवन - पद्म० १।३८।३१ । ध्रुवतीर्थ -- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १५२/५८ एवं १८०११ ।
न
स्वन्द
नकुलगण -- ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ) वाम० ४६।२ । सम्भवतः यह लकुलीश (यह बहुधा 'नकुलोश' कहा गया है) के अनुयायियों की ओर संकेत करता है। देखिए एपि० इण्डि०, जिल्द २१, पृ० १, जहाँ चन्द्रगुप्त द्वितीय के मथुरा शिलालेख सन् ३८० ई० का उल्लेख है जिसमें यह उल्लिखित है कि पाशुपत सम्प्रदाय के प्रवर्तक लकुली प्रथम शताब्दी के प्रथम चरण में हुए थे। मिलाइए वायु० २३।२२-२५ ( कायावरोहण नकुली का सिद्धिक्षेत्र कहा गया है) ।
नकुली -- ( विष्णुपद से निकली हुई नदी) ब्रह्माण्ड ०
पृ० १०७ ) ।
नकुलीश्वर -- कूर्म० २४४।१२ ।
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पद्म० ५।१८।४५६ ।
नन्दिकेश -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९१६ । नन्दिकुण्ड - - ( १ ) ( कश्मीर में ) अनु० २५/६०, नीलमत० १४५९, अग्नि० २|९|६४; (२) ( जहाँ से साभ्रमती निकलती है) पद्म० ६।१३२।१ एवं १३ । नन्दिकूट -- अनु० २३।६० (ती० क०, पृ० २४८ ) । नन्दिक्षेत्र - ( कश्मीर में ) राज० १०३६, नीलमत ०
१२०४ - १३२८ (यहाँ सिलाद के पुत्र के रूप में उत्पन्न नन्दी की गाथा है), हरमुख चोटी के, जहाँ कालोदक सर है, पूर्वी हिम- खण्डों की उपत्यका है ।
२।१८।६८ ।
नकुलीश --- ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (तो० क० नन्विगुहा -- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० ( ती० क०,
नग - - ( गया के अन्तर्गत एक पहाड़ी) वायु० १०८।२८ | नवन्तिका -- वि० ध० सू० ८५।१९ (श्राद्ध का तीर्थ ) ।
१४४७
नदीश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० १०३ ) ।
नन्दनवन --- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० (ती० क०, पृ० १८७) ।
नन्दना --- (ऋक्षवान् पर्वत से निकली हुई नदी) मत्स्य ० १४४।२५, वायु० ४५।२७, ब्रह्म० २७।२८ (दोनों में 'चन्दना' पाठ आया है, जो अशुद्ध है) । नन्दावन ० ८७।७७, वायु० ७७ ७९, आदि ० २१५।७, वन० ११०।१ ( हेमकूट के पास), अनु० १६६।२८, भाग० ७।१४।३२, वराह० २१४।४७ । ये सभी ग्रन्थ इसके स्थान के विषय में कुछ नहीं कहते । भाग० (४।६।२४ ) से प्रकट होता है कि यह कैलास एवं सौगन्धिक वन के पास था । भाग० (४।६।२३-२४) ने इसे एवं अलकनन्दा को सौगन्धिक वन के पास रखा है।
नन्वावरी --- (नदी) देवल (ती० क० पृ० २४९) ने
इसे कौशिकी के पश्चात् वर्णित किया है। प्रो० आयंगर ने इसे कोसी नदी के पूर्व में उत्तर प्रदेश में महानदी माना है ।
नन्दासरस्वती - (सरस्वती का यह नाम पड़ गया) देखिए
पृ० १९३)।
नन्दिग्राम - ( जहाँ पर राम के वनवास के उपरान्त उनके प्रतिनिधि रूप में रहकर भरत राज्य की रक्षा करते थे) वन० २७७।३९, २९१/६२, रामा० २।११५/२२,
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