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तीर्थसूची
दीय० २।६० ३०, भाग० ५।१९।१८। कुछ लोगों ने इसे घग्गर एवं कुछ लोगों ने चित्तांग माना है ( कैम्ब्रिज हिस्ट्री आव इण्डिया, जिल्द १, पृ० ८०) । वर्तमान नाम में यह नदी नहीं पहचानी जा सकी है। कनिंघम ( ए० एस० आई०, जिल्द १४, पृ० ८८ ) ने इसे थानेसर के दक्षिण १७ मील पर रावशी नदी कहा है, जिसे स्वीकार किया जा सकता है, यद्यपि यह मत अभी सन्देहात्मक ही है ।
देवगिरि - ( मथुरा के अन्तर्गत एक पहाड़ी) वराह० १६४।२७, भाग० ५।१९।१६ ।
देवतीर्थ -- (१) ( गोदावरी के उत्तरी तट पर ) ब्रह्म ० १२७|१; (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य ० १९१।२५, १९३।८१, कूर्म० २।४२।१६, पद्म ० १|१८|२५; (३) ( साभ्रमती के अन्तर्गत ) पद्म० ६।१६१।१ ।
देवपथ - - वन० ८५१४५, पद्म० १|३९|४२ ॥ देवपर्वत --- ( सम्भवतः अरावली पहाड़ी) देवल० (ती० क०, पृ० २५० )
देवप्रभ-- ( गण्डकी के अन्तर्गत ) वराह० १४५।५९ । देवप्रयाग - देखिए अलकनन्दा | यह भागीरथी एवं अलकनन्दा संगम-स्थल है। देखिए यू० पी० गजे ०, जिल्द ३६, पृ० २१४ । देवदावन - (१) (बद्रीनाथ के पास हिमालय में ) अनु० २५।२७, कूर्म ० २।३६।५३-६०, २३९।१८ एवं ६६, मत्स्य० १३।४७ ( यहाँ पर देवी का नाम पुष्टि है); (२) (मराठवाड़ा के पास औध ) पद्म० ६।१२९।२७; (३) ( कश्मीर में विजयेश्वर ) ह० चि० १०१३ |
बेवलेश्वर -- ( वाराणसी के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० क०, पृ० ९२ ) ।
देवशाला -- यहाँ विष्णु त्रिविक्रम के नाम से पूजित होते
हैं । नृसिंह० ६५।१५ (ती० क०, पृ० २५२ ) । वेवहद -- (१) ( गण्डकी के अन्तर्गत ) वराह० १४५० ७१, अनु० २६।४४; (२) (कृष्ण-वेणा के अन्तर्गत ) वन० ८५।४३ ।
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देवहदा - ( कश्मीर में एक नदी ) वन० ८४ । १४१, पद्म० १|३८|५७ ।
देवागम -- ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० १६० १ । देवारण्य -- ( लौहित्य या ब्रह्मपुत्र नदी पर एक वन ) वायु ० ४७।११।
देविका -- (१) (हिमालय से निकलनेवाली नदी सिन्धु एवं पंचनद तथा सरस्वती के बीच में ) वन ० ८२।१०२-१०७, २२२ । २२ (चार योजन लम्बी एवं आधा योजन चौड़ी), ब्रह्म० २७।२७, वायु० ४५/९५, अनु०१६६ । १९, वाम ० ८११५ । विष्णु० (४।२४।६९ ) में आया है कि व्रात्य, म्लेच्छ एवं शूद्र सिन्धु के तटों एवं दाविकोर्वी, चन्द्रभागा एवं कश्मीर पर राज्य करेंगे । यहाँ 'दाविकोर्वी', जैसा कि श्रीधर का कथन है, देविका की भूमि है । (२) ( गण्डकी से मिलने वाली एक नदी ) वराह० १४४।८३, ११२-१३, २१४।५४; ( ३ ) ( गया के अन्तर्गत ) वायु० ११२।३०, ७७ ४१, ब्रह्माण्ड० ३।१३।४१ । अनु० २५।१२ एवं १६५ १९, कूर्म ० २।३७ २५, पद्म० १।२५।९-१४, नारदीय० २।४७/२७, विष्णु० २।१५।६, वामन० ७८।३७ -- सभी ने देविका की प्रशस्ति गायी है, किन्तु यह कौन-सी नदी है, नहीं ज्ञात हो पाता। नीलमत० (१५२-१५३) के मत से यह इरावती के समान पुनीत है, उमा स्वरूप है और रावी एवं चिनाब के मध्य में मद्र देश में है । देखिए पाणिनि ( ७|३|१) । दे ( पृ० ५५) का कथन है कि यह सरयू का दक्षिणी भाग है जो देविका या देवा के नाम से विख्यात है । वाम० (८४| १२) ने देविकातीर्थ के ब्राह्मणों का उल्लेख किया है। स्कन्द० (७, प्रभास - माहात्म्य, अध्याय २७८ ६६६७) ने मूलस्थान (मुलतान ) को देविका पर स्थित माना है। पद्म ०१।२५।९-१४ ( पाँच योजन लम्बी एवं आधा योजन चौड़ी ) । विष्णु० (२।१५।६ ) ने वीरनगर को देविका पर स्थित एवं पुलस्त्य द्वारा स्थापित माना है। देविका, जैसा कि अनु० ( १६५।१९ एवं २१) में आया है, सरयू नहीं है, इन दोनों के नाम पृथक्-पृथक् आये हैं । बार्ह ० सू० (२०३५) में आया
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