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धर्मशास्त्र का इतिहास चमस या चमसोभेद--(१) (जहाँ मरुभूमि में विलु- लिए पड़ा है कि यहां पर रन्तिदेव के यज्ञों में बलि
प्त हो जाने के पश्चात् सरस्वती पुनः प्रकट होती दिये हुए पशुओं की खालों के समूह रखे हुए थे) है) वन० ८२।११२, १३०१५ (एष वै चमसोद्- पद्म० १०२४।३, मेघदूत ११४५ (रन्तिदेव की ओर भेदो यत्र दृश्या सरस्वती), पद्म० १।२५।१८;
संकेत करता है); चर्मण्वती नाम पाणिनि (८/(२) (प्रभास के अन्तर्गत) शल्य० ३५।८७, २०१२) में आया है। वन० ८८।२०।
चर्मकोट--मत्स्य० २२।४२ । चम्पकतीर्थ-(जहाँ गंगा उत्तर की ओर बहती हैं) चिच्चिक तीर्थ-- (गोदा० के अन्तर्गत) ब्रह्म० १६४।१। नारदीय० २१३४०1८६ ।
चिताभमि--(वैद्यनाथ या सन्थाल परगने में देवघर चम्पकवन--(गया के अन्तर्गत) वायु० ३७।१८- जहाँ वैद्यनाथ का मन्दिर है, जो १२ ज्योतिलिङ्गों २२।
में परिगणित हैं) शिवपुराण ११३८।३५, देखिए चम्पा-(१) (भागलपुर से ४ मील पश्चिम भागीरथी दे, पृ० ५०।
पर एक नगरी और बुद्ध-काल की छ: बड़ी पुरियों में चित्रकट--(पहाडी, बाँदा जिले में, प्रयाग से दक्षिणएक) वन० ८४।१६३, ८५।१४, ३०८।२६, पद्म० पश्चिम ६५ मील की दूरी पर) वन० ८५।५८, ११३८।७०; मत्स्य० ४८०९१ (आरम्भ में यह रामा० २।५४।२८-२९ एवं ९३।८, (भारद्वाजाश्रम मालिनी कहलाती थी और आगे चलकर राजा चम्प के से दस कोस दूर) रामा० २०५५।९, (यह पितृनाम पर 'चम्पा' कहलाने लगी। महापरिनिब्बान तीर्थ है) २०५६।१०-१२, मत्स्य० २२१६५ एवं सुत्त के मत से छः बड़ी नगरी हैं-च-पा, राजगृह, अनु० २२५।२९, नारदीय० २।६०१२३ एवं ७५/श्रावस्ती, साकेत, कौशाम्बी एवं वाराणसी (एस० २६, अग्नि० ६।३५-३६, (मन्दाकिनी नदी के पास) बी० ई०, जिल्द ११, पृ० ९९ एवं २४७)। वाम १०९।२३, पद्म० १३९।५४, रघुवंश १३।४७; मेघदूत (८४११२) ने चाम्पेय ब्राह्मणों का उल्लेख किया है। (टीका) ने इसे रामगिरि कहा है। चम्पा वर्णादि-गण (पाणिनि ४।२।८२) में पठित है; चित्रकूटा--(ऋक्ष पर्वत से निकली हुई एक नदी) (२) (पितरों के लिए पुनीत नदी) मत्स्य वायु०४५।९९, मत्स्य० ११४१२५ (जहाँ मन्दाकिनी २२४१, पद्म० ५।११।३५ (अंग एवं मगध, देखिए एवं यह नदी ऋक्षवान् से निकली हुई कही गयी है। दे, पृ० ४३) यह लोमपाद एवं कर्ण की राजधानी चित्राङ्गदतीर्थ-(वारा० के अन्तर्गत) कूर्म० १।३५।थी।
११, वाम० ४६।३९ (चित्रांगदेश्वर लिंग)। चम्पकारण्य--(बिहार का आधुनिक चम्पारन) चित्रांगवदन--(साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० ६।१४११
वन० ८४।१३३, पद्म० ११३८१४९ (चम्पारन जिले ।
में संग्रामपुर के पास वाल्मीकि का आश्रम था)। चित्रेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, चर्माल्य--(वारा० के अन्तर्गत) कूर्म० ११३५।४। पृष्ठ ९७)। धर्मवती-(नदी, आधुनिक चम्बल जो मऊ (मालवा) चित्रोपला--(नदी) ब्रह्म० ४६।४-५ (विन्ध्य से
के दक्षिण-पश्चिम लगभग ९ मील दूर से निकली निकली हुई एवं महानदी नाम वाली)। है और इटावा नगर के दक्षिण-पूर्व २५ मील पर चित्रोत्पला--(सम्भवतः ऊपर वाली ही) भीष्मः यमना में मिल जाती है) आदि. १३८।७४ (द्रुपद ९।३५, मत्स्य० ११४।२५ (ऋक्षवान् से निकली दक्षिण पंचाल से चर्मण्वती तक राज्य करता था), हुई), ब्रह्म० २७॥३१॥३२ (ऋक्षपाद से निकली वन० ८२।५४, द्रोण० ६७५, (चर्मण्वती नाम इस
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