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कोटिकेश्वर -- ( नर्मदा के अन्तर्गत ) पद्म० १।१८।३६ । कोटीश्वर - - ( १ ) ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग०
( ती० क०, पृ०५४); (२) (श्रीपर्वत के अन्तर्गत ) लिंग० ११९२।१५७; (३) (पंचनद के अन्तर्गत ) वाम० ३४।२९; क्या यह सिन्धु एवं समुद्र के पास कच्छ के पश्चिम तट का कोटीश्वर है, जो तीर्थयात्रा का प्रसिद्ध स्थल है ? ऐं० जि०, पृ० ३०२ ४एवं बम्बई. गजे ० ( जिल्द ५, पृ० २२९-२३१)। कोटितीर्थ -- (१) (पृथूदक के पास ) वाम० ५१ ५३, ८४१११-१५ ( जहाँ करोड़ों मुनियों के दर्शन हेतु शिव ने एक करोड़ रूप धारण किये थे); (२) (भर्तृस्थान के पास ) वन० ५५ | ६१; (३) (प्रयाग के अन्तर्गत) मत्स्य० १०६ ४४ ( ४ ) ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १५२/६२, १५४।२९; (५) ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य० १९११७, कूर्म ० २०४१ ३४, पद्म० १।१३।३३ एवं १८।८ ( यहाँ एक करोड़ असुर मारे गये); ( ६ ) ( गोदावरी के दक्षिणी तट पर ) ब्रह्म० १४८|१; ( ७ ) ( गंगाद्वार के पास ) वन० ८२ ।४९; वन० ८४।७७, नारदीय ० २/६६।२९ (८) (पंचनद में ) पद्म० १।२६।१४, वाम० ३४ । २८ ( यहाँ हर ने करोड़ों तीर्थों से जल एकत्र किया था ); ( ९ ) ( गया के अन्तर्गत ) अग्नि ० ११६/६ (१०) ( कश्मीर में आधुनिक कोटिसर, बारामूला के पास ) कश्मीर रिपोर्ट ( पृ० १२ ) । कोटिवट -- ( कोकामुख के अन्तर्गत ) वराह० १४० | ४७-५०, १४७१४० ।
कोणार्क (या कोणादित्य ) - ( ओडू या उड़ीसा में; जगन्नाथपुरी के पश्चिम लगभग २४ मील की दूरी पर ) इसका अर्थ है 'कोण का सूर्य' । 'कोनाकोन' सम्भवतः प्राचीन नाम । यह सूर्य-पूजा का एक ज्वलन्त स्मृति चिह्न है। यहाँ नरसिंहदेव (१२३८-१२६४ ई० ) द्वारा, जो एक गंग राजा थे, निर्मित भव्य मन्दिर के भग्नावशेष हैं। उत्तर भारत के भास्कर - शिल्प का यह अद्वितीय नमूना है। इसका शिखर १८० फुट और मण्डप
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तीर्थसूची
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१४० फुट ऊँचा था । देखिए डा० मित्र कृत 'ऐण्टिक्विटीज़ आव उड़ीसा' (जिल्द २, पृ० १४५-१५६), हण्टर कृत 'उड़ीसा' (जिल्द १, पृ० २८८ ) एवं माडर्न रिव्यू (१९४५, पृ० ६७-७२ ) का लेख 'सन गॉड आव को गार्क अनअर्थ । ब्रह्म० २८ २, ९, ११,४७, ६५ एवं २९।१, तीर्थचि ० ( पृ० १८० ) । यह सम्भवत: टॉलेमी ( पृ०७० ) का 'कन्नगर' है । कोलापुर -- ( यह आधुनिक कोल्हापुर है, जो देवीस्थानों में एक है ) देवीभाग० ७।३८/५, पद्म० ६ १७६।४२ ( यहाँ लक्ष्मी का एक मन्दिर है ), १८२।१ ( अस्ति कोल्हापुरं नाम नगरं दक्षिणापथे ) एवं ११ । ब्रह्माण्ड ० ४१४४ ९७ ( यह ललितातीर्थ है ) । शिलाहार विजयादित्य के दान-पत्र (सन् ११४३ ई० ) में 'क्षुल्लकापुर' नाम आया है, जो कोल्हापुर का एक अन्य नाम है (एपि० इण्डि०, जिल्द ३, पृ० २०७ एवं २०९ - २१० ) । अमोघवर्ष प्रथम के संजन दान-पत्र (८७१ ई०) में आया है कि राजा ने किसी जन- विपत्ति को दूर करने के लिए अपना बायाँ अँगूठा काटकर महालक्ष्मी देवी को चढ़ा दिया (एपि० इण्डि०, जिल्द १८, पृ० २३५ एवं २४१) । यह कोल्हापुर वाली महालक्ष्मी ही हैं। देखिए इण्डियन एण्टीक्वेरी, जिल्द २९, पृ० २८० । कोल्ल -- बार्हस्पत्य सूत्र ( ३ | १२४ ) के अनुसार यह शाक्त क्षेत्र है ।
कोल्लगिरि - अग्नि० ११०।२१, भाग ० ५।१९।१६ । कोलाहल -- ( एक पर्वत ) वायु० ४५/९०, १०६/४५,
ब्रह्माण्ड ० २।१६।२१, मार्क ० ५४|१२, विष्णु ० ३।१८।७३ | डा० मित्र के अनुसार यह ब्रह्मयोनि पहाड़ी है । आदि० (६३।३४५ ) के मत से यह चेदिदेश में है, जिसने शुक्तिमती के प्रवाह को रोक दिया है। कोशला - ( नदी, अयोध्या के पास ) पद्म० १|३९|
११,६२०६।१३, २०७/३५-३६, २०८।२७ । वाकाटक राजा नरेन्द्रसेन के दान-पत्र में उसको कोसला ( कोसल), मेकल एवं मालवा के राजाओं द्वारा सम्मानित कहा गया है। देखिए एपि० इण्डि० ( जिल्द ९, पृ० २७१) ।
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