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व्रज-मण्डल के तीर्थ; जगन्नाथ पुरी
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एवं ७७ ) । यही कृष्ण की लीला भूमि थी । पद्म० (४।६९।९ ) ने इसे पृथिवी पर वैकुण्ठ माना है । मत्स्य ० ( १३| ३८) ने राधा को वृन्दावन में देवी दाक्षायणी माना है । कालिदास के काल में यह प्रसिद्ध था । रघुवंश ( ६ ) में नीप कुल के एवं शूरसेन के राजा सुषेण का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वृन्दावन कुबेर की वाटिका चित्ररथ से किसी प्रकार सुन्दरता में कम नहीं है । इसके उपरान्त गोवर्धन की महत्ता है, जिसे कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर इन्द्र द्वारा भेजी गयी वर्षा से गोप-गोपियों एवं उनके पशुओं को बचाने के लिए उठाया था ( विष्णुपुराण ५।११।१५-२५ ) । वराहपुराण (१६४।१) में आया है कि गोवर्धन मथुरा से पश्चिम लगभग दो योजन है । यह कुछ सीमा तक ठीक है, क्योंकि आजकल वृन्दावन से यह १८ मील है । कूर्म ० ( १ | १४ | १८ ) का कथन है कि प्राचीन राजा पृथु ने यहाँ तप किया था। हरिवंश एवं पुराणों की चर्चाएँ कभी-कभी ऊटपटांग एवं एक-दूसरे के विरोध में पड़ जाती हैं। उदाहरणार्थ, हरिवंश (विष्णुपर्व १३।३ ) में तालवन गोवर्धन से उत्तर यमुना पर कहा गया है, किन्तु वास्तव में यह गोवर्धन से दक्षिण-पूर्व में है । कालिदास ( रघुवंश ६।५१ ) ने गोवर्धन की गुफाओं ( या गुहाओं कन्दराओं ) का उल्लेख किया है । गोकुल व्रज या महावन है जहाँ कृष्ण बचपन में नन्दगोप द्वारा पालित पोषित हुए थे । कंस के भय से नन्दगोप गोकुल 'वृन्दावन चले आये थे । चैतन्य महाप्रभु वृन्दावन आये थे (देखिए चैतन्यचरितामृत, सर्ग १९ एवं कवि कर्णपूर या परमानन्द दास कृत नाटक चैतन्यचन्द्रोदय, अंक ९ ) । १६वीं शताब्दी में वृन्दावन के गोस्वामियों, विशेषतः सनातन, रूप एवं जीव के ग्रन्थों के कारण वृन्दावन चैतन्य भक्ति - सम्प्रदाय का केन्द्र था ( देखिए प्रो० एस० के० दे कृत 'वैष्णव फेथ एण्ड मुवमेंट इन बेंगाल, १९४२, पृ० ८३-१२२) । चैतन्य के समकालीन वल्लभाचार्य ने प्राचीन गोकुल की अनुकृति पर महावन से एक मील पश्चिम में नया गोकुल बसाया है। चैतन्य एवं वल्लभाचार्य एक दूसरे से वृन्दावन में मिले थे (देखिए मणिलाल सी० पारिख का वल्लभाचार्य पर ग्रन्थ, पृ० १६१ ) । मथुरा के प्राचीन मन्दिरों को औरंगजेब ने बनारस के मन्दिरों की भाँति नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था ।"
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सभापर्व (३१९।२३-२५) में ऐसा आया है कि जरासंघ ने गिरिव्रज (मगध की प्राचीन राजधानी, राजगिर ) से अपनी गदा फेंकी और वह ९९ योजन की दूरी पर कृष्ण के समक्ष मथुरा में गिरी; जहाँ वह गिरी वह स्थान 'गदाatra' के नाम से विश्रुत हुआ । वह नाम कहीं और नहीं मिलता।
ग्राउस ने 'मथुरा' नामक पुस्तक में (अध्याय ९, पृ० २२२ ) वृन्दावन के मन्दिरों एवं (अध्याय ११ ) गोवर्धन, बरसाना, राधा के जन्म-स्थान एवं नन्दगाँव का उल्लेख किया है । और देखिए मथुरा एवं उसके आसपास के तीर्थ स्थलों के लिए डब्लू० एस० कैने कृत 'चित्रमय भारत' ( पृ० २५३ ) ।
पुरुषोत्तमतीर्थ ( जगन्नाथ )
पुरुषोत्तमतीर्थ या जगन्नाथ के विषय में संस्कृत एवं अंग्रेजी में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। जो लोग इसके
१८. पद्म० (पाताल, ७५।८-१४) ने कृष्ण, गोपियों एवं कालिन्दी की गूढ़ व्याख्या उपस्थित की है । गोपपत्नियाँ योगिनी हैं, कालिन्दी सुषुम्ना है, कृष्ण सर्वव्यापक हैं, आदि आदि ।
१९. देखिए इलिएट एवं डाउसन कृत 'हिस्ट्री आव इण्डिया ऐज टोल्ड बाई इट्स ओन हिस्टोरिएन', जिल्द ७, पु० १८४, जहाँ 'म असिर-ए-आलमगीरी' की एक उक्ति इस विषय में इस प्रकार अनूदित हुई है, "औरंगजेब ने मथुरा के 'बेहरा केसु राय' नामक मन्दिर (जो, जैसा कि उस ग्रन्थ में आया है, ३३ लाख रुपयों से निर्मित हुआ था) को नष्ट करने की आज्ञा दी, और शीघ्र ही वह असत्यता का शक्तिशाली गढ़ पृथिवी में मिला दिया गया और उसी स्थान पर एक बृहत् मसजिद की नींव डाल दी गयी ।"
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