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तीर्थसूची
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किष्किन्धा-गुहा--वायु० ५४।११६ (सम्भवतः यह होने पर मुनि रैभ्य ने एक आम्र का वृक्ष देखा और किष्किन्धा ही है।
वे श्रद्धावश झुक गये। इसके स्थान के विषय में अभी किष्किन्धपर्वत-मत्स्य० १३।४६ (इस पर्वत पर देवी निश्चिततापूर्वक नहीं कहा जा सकता। वराह० (१७को तारा कहा गया है)।
९।२६-३१) में आया है कि मथुरा सौकरतीर्थ से कुक्कुटेश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० उत्तम है और सौकरतीर्थ कुब्जाम्रक से उत्तम क०, पु०७८)।
है। वराह० (१४०।६०-६४) ने व्याख्या की है कि कुञ्जतीर्थ--(नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९४।९।। किस प्रकार पवित्र स्थल हृषीकेश का यह नाम कुण्डिन--नृसिंह० ६५।१९, वाम० (ती० क०, पृ० पड़ा। ऐसा लगता है कि यह हरिद्वार में कोई
२३९), इसे विदर्भा भी कहते हैं (अभिधान- तीर्थ था। चिन्तामणि, पृ० १८२, श्लोक ९७९)।
कुब्जासंगम--(नर्मदा के साथ) पद्म० २१९२॥३२॥ कुण्डिप्रभ-(श्रीपर्वत के अन्तर्गत) लिंग० ११९२।१४८। कुन्जायम--(एक योजन विस्तार वाला एक विष्णुकुण्डेश्वर--- (वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० स्थान) कूर्म० २।३५१३३-३५ । ___ क०, पृ०६८)।
कुजावन-पद्म० १।३९।३४ । कुण्डोद--(काशी के पास एक पहाड़ी) वन० ८७।२५।- कुग्जिकापीठ--(यहाँ पर शिव द्वारा ले जाते हुए सती
शव से सती का गुप्तांग गिर पड़ा था) कालिका कुण्डलेश्वर--(१) (नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य०९०।- ६४।५३-५४ एवं ७१-७२।
१२; (२) (श्रीपर्वत के दक्षिण द्वार पर) लिंग० कुभा--(सम्भवतः आधुनिक काबुल नदी) ऋ० ५। ११९२११४९।
५३।९ एवं १०।७५।६ । यह टॉलेमी की कोफेस एवं कुड्मला----(एक नदी) मत्स्य० २२।४६ (यहाँ का एरियन की कोफेन है (ऐ० इ०, पृ० १७९)। श्राद्ध अधिक पुण्यदायक होता है)।
काबुल नदी ओहिन्द के पास अटक से कुछ मील कुन्दवन--(मथुरा के १२ वनों में तीसरा वन) वराह. उत्तर सिन्धु में मिल जाती है। पाणिनि (५।१। १५३।३२।
७७) ने उत्तरापथ का उल्लेख किया है (उत्तरकुबेर---सारस्वत तीर्थों में एक, देवल० (ती० क०, पथेनाहृतं च)। उत्तरापथ उत्तर में एक मार्ग है जो पृ० २५०)।
अटक के पास सिन्धु के पार जाता है। कुम्जक--नारदीय० २।६०।२५, गरुड़ १।८।१० (कुब्ज- कुमार-पद्म० ११३८।६१। के श्रीधरो हरिः)।
कुमार-कोशला-तीर्थ-वायु० ७७१३७ । कुब्जाम्रक--(यहाँ गंगाद्वार के पास रैभ्य का आश्रम था) कुमारकोटी-वन० ८२।११७, पद्म० ११२५।२३, अग्नि०
वन०८४।४०, मत्स्य०२२।६६, पद्म०१।३२।५। वि. १०९।१३। ध० सू० ८५।१५, कूर्म० २।२०।३३, गरुड़ (११८१। कुमारतीर्थ-नृसिंह० ६५।१७ (ती० क०, पृ० २५२) । १०) का कथन है कि यह एक महान् श्राद्ध-तीर्थ है। कुमार-धारा-वि० ध० सू० ८५।२५, वायु० ७७।८५, वराह० १२५।१०१ एवं १३२ एवं १२६।३-३ (यह वन० ८४।१४९ (जो पितामह-कुण्ड से निकलती माया तीर्थ अर्थात् हरिद्वार है)। वराह० (अध्याय है), वाम० ८४।२३, कूर्म० २१३७।२० (स्वामितीर्थ १२६) में इसका माहात्म्य है। और देखिए कल्पतरु के पास), ब्रह्माण्ड० ३।१३।९४-९५ (ध्यान के लिए (तीर्थ पर, पृ० २०६-२०८) । वराह० (१२६।१०- व्यास का आसन एवं कान्तिपुरी)। १२) में नाम की व्याख्या है। भगवान् द्वारा सूचित कुमारी-(केप कामोरिन, जहाँ कुमारी देवी का एक
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