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तीर्थ सूची
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इक्षुदा -- ( महेन्द्र पर्वत से निकलनेवाली नदी ) मत्स्य ० ११४।३१, वायु ० ४५।१०६ ('इक्षुला' पाठ आया है) ।
इक्षु नर्मदा-संगम --- मत्स्य० १९१।४९, कूर्म० २।४१।२८, पद्म० १।१८।४७ ।
आजकीया - (नदी) ऋ० १०1७५ सू०, ५ ऋचा । निक्त ( ९।२६ ) का कथन है कि नदी का नाम विपाश् ( आधुनिक व्यास ) था और विपाश् का प्रारम्भिक नाम उरुंजिरा था। आर्यावर्त --- अमरकोश ने इसे हिमवान् एवं विन्ध्य पर्वतों के बीच की पुण्यभूमि कहा है। देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड २, अ० १, जहाँ आर्यावर्त के विस्तार के विषय में विभिन्न ग्रन्थों के आधार पर विवेचन उपस्थित किया गया है ।
२२/५१, १८१२८, अग्नि० ११२।३ । आर्थिक पर्वत - - वन० १२५।१६ ( जहाँ च्यवन और इक्षुमती - (१) (कुमायूँ एवं कंनौज से बहती हुई एक सुकन्या रहते थे) । नदी) पाणिनि (४/२/८५-८६ ) को यह नदी ज्ञात थी । रामा० (२/६८।१७ ) में आया है कि अयोध्या से जाते समय पहले मालिनी मिलती है, तब हस्तिनापुर के पास गंगा, इसके उपरान्त कुरुक्षेत्र और तब इक्षुमती । मत्स्य० २२।१७ (पितृप्रिय एवं गंगा में मिलने वाली ), पद्म० ५।११।१३; (२) (सिंधु- सौवीर देश की नदी) विष्णु० २११३, ५३-५४ (यहाँ कपिल का आश्रम था, जहाँ सौवीर का राजा आया था, और उसने पूछा था कि दुःख एवं पीड़ा से भरे ए संसार में क्या अत्यन्त लाभप्रद है) भाग० ५।१०।१ ।
आर्षभ --- देखिए 'ऋषभ' के अन्तर्गत ।
आष्टिषेणाश्रम - अनु० २५।५५ । आशालिङ्ग -- ( श्रीपर्वत के अन्तर्गत ) लिंग० १।९२/
इन्द्रकील (पर्वत, गन्धमादन के आगे) वन० ३७।४१-४२, मत्स्य० २२/५३, ( पितरों के लिए पवित्र ) नीलमत० १४४३, भाग० ५।१९।१६ ।
१४८ ।
आषाढ- यह एक लिंग है ( वाराणसी के अन्तर्गत), इन्द्रग्रामतीर्थ -- ( साभ्रमती के उत्तरी तट पर ) पद्म०
आवढ्या नागनाथ ही है जो संप्रति आन्ध्र प्रदेश के परभणी नामक स्थान के उत्तर-पूर्व लगभग २५ मील की दूरी पर है।
आम्रातकेश्वर -- ( वाराणसी के अन्तर्गत) मत्स्य ०
तोर्थ कल्प ०, पृ० ९३ ।
६। १४४। १ ।
३० ।
आषाड़ी तीर्थ -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९४/- इन्द्रतीयं -- ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० ९६।१ । इन्द्रतोया --- ( गंधमादन पर एक नदी) अनु० २५।११ । आसुरीश्वर -- ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (तीर्थ- इन्द्रद्युम्नसर - (१) (पुरुषोत्तम पुरी के अन्तर्गत ) । कल्प०, पृ० ६७ ) ।
इ
इक्षु -- ( १ ) ( हिमालय से निकलनेवाली एक नदी ) वायु० ४५ । ९६ । दे ( पृ० ७७) ने इसे ऑक्सस माना है। उन्होंने अश्मन्वतो एवं चक्षुस् (पृ० १३ एवं ४३ ) को ऑक्सस ही कहा है। अतः उनकी पहचान को गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया जाना चाहिए; (२) ( नर्मदा से मिलनेवाली एक नदी) मत्स्य० १९१/४९ ।
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देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १५ । ब्रह्म० ५१।२९-३०; (२) वन० १९९९-११, आदि० ११९/५० ( गन्धमादन के आगे, जहाँ पाण्डु ने तप किया था) 1
इन्द्र भुनेश्वर -- ( महाकाल का लिंग) स्कन्द ० ११२/
१३।२०९ ।
इन्द्रध्वज -- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १६४।३६ । इन्द्रनदी -- (नदी) वायु० ४३ । २६ ।
इन्द्रप्रस्थ --- ( यमुना के तट पर दिल्ली जिले में आधुनिक इन्द्रपत नामक ग्राम) आदि० २१७।२७, मौसल०
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