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धर्मशास्त्र का इतिहास
नदी, जिसे 'उरी' या 'ओर' कहा जाता है) मत्स्य. एवं कावेरी के संगम पर मान्धातपुर में रहते हैं
१९१३४२, १९३।६५ एवं पा० १।१८।४११ . (एपि० इण्डि०, जिल्द २५, पृ० १७३)। देखिए एरण्डीनर्मदासंगम-मत्स्य० १९४।३२, कूर्म० २०४१।- 'माहिष्मती' के अन्तर्गत।
८५ एवं २॥४२॥३१, पम० १११८१४१। ओंकारेश्वर-(वारा० के अन्तर्गत) स्कन्द एलापुर-(सम्भवतः आधुनिक एलोरा) मत्स्य० २२१- ४।३५।११८।
५० (श्राद्ध के लिए उपयुक्त स्थल)। ऐं. जि. मोघवती-(पंजाब में एक नदी) भीष्म० ९।२२, (पृ. ३१९) ने इसे काठियावाड़ का वेरावल मत्स्य० २२१७१ (यहाँ श्राद्ध एवं दान अत्यन्त पुण्यकहा है। राष्ट्रकुट कृष्णराज प्रथम के तलेगाँव कारक हैं।, वाम० ४६५०, ५७१८३, ५८।११५। ताम्रपत्र (७६८-७६९ ई.) से पता चलता है कि पृथूदक (आधुनिक पेहोवा ) इस पर स्थित था। काञ्ची स्थित कैलासनाथ मन्दिर की अनकृति पर शल्य० (३८।४ एवं २७) से प्रकट होता है कि यह कैलासनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर उस राजा ने बन- सरस्वती का एक नाम था। देखिए दे (पृ. १४२) वाया (एपि० इण्डि०, जिल्द १३, पृ. २७५), विभिन्न पहचानों के लिए। और देखिए एपि० इण्डि० (जिल्द २५, पृ० ओजस--(कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत, सम्भवतः यह 'औजस' २५)।
है) वाम० ४११६, ९०।१७।
कल्प
ऐरावती-(एरियन को हाइड्राओटस, ऐं० इण्डि०, मोजस-(कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत) वि० ध० सू० प० १९०, रावी नदी?) (हिमालय से निकली ८५।५२, वाम० २२।५१ एवं ५७।५१। हई एवं मद्र देश की सीमा की एक नदी) मत्स्य आहालक तीर्थ-वन० ८४११६१। ११५।१८-१९, ११६।१ एवं ६ तथा देवल (ती० आचानक तीर्थ-पप० ११३८।६८ । क०, पृ० २४९)।
मोपमन्यव-(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती. ऐलापत्र-(पश्चिमी दिशा का दिमाल जो कश्मीर में कल्प०, पृ० ९७)। दिक्पाल नाग के नाम से प्रसिद्ध है) नीलमत० १११८ मोशनस-(सरस्वती-तट पर एक महान् तीर्थ) यह (आधुनिक ऐलपतुर)।
कपालमोचन ही है। वन० ८३।१३५, मत्स्य०
२२॥३१, शल्य० ३९।४ एवं १६-२२, पम० १।२७।यो
२४-२६, वाम० ३९।१ एवं १४ (जहाँ उशना बोकार-(१) (वारा के पांच गुह्य लिंगों में एक) को सिद्धि प्राप्त हुई और वे शुक्र नामक ग्रह
कूर्म० ११३२।१-११, लिंग० ११९२।१३७, पम० हो गये। ११३४११-४; (२) (ओंकार मान्धाता, खण्डवा से मौशीर पर्वत--वायु० ७७२९। उत्तर-पश्चिम ३२ मील पर नर्मदा के एक द्वीप पर मौसज-(१) वि. घ. सू० ८५।५२ (सूपरिक, १२ ज्योतिलिंगों में एक लिंग) मत्स्य० २२२७, वैजयन्ती टीका के अनुसार)। जाली (एस० बी० १८६।२, पद्म० २।९।३२, ६।१३१२६७, स्कन्द. ई०, जिल्द ७, पृ० २५९) ने भिन्न पाठ दिया है १।१।१७।२०९। नर्मदा के बायें तट पर मान्धाता और कहा है कि यह 'औजस' है, जो उनके मत से के अमरेश्वर मन्दिर में उत्कीर्ण हलायुध-स्तोत्र 'औशिज' है; (२) (समन्तपंचक की सीमा) (१०६३ ई०) में ऐसा आया है कि ओंकार नर्मदा वाम० २२॥५१ ।
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