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तीर्थसूची
अमरकेश्वर- ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० ५३) ।
अमरेश - (१) ( नर्मदा पर ) मत्स्य० १८६१२; (२) ( वाराणसी में एक लिंग) लिंग० १।९२।३७ । अमरेश्वर - (१) (निषध पर्वत पर ) वाम० (ती० कल्प० पृ० २३६); (२) (श्रीपर्वत के अन्तर्गत) लिंग० १।९२।१५१; (३) नीलमत० १५३५; राज० १२६७ ( अमरनाथ की प्रसिद्ध गुफा की यात्रा, जहाँ शिव हिमखण्ड के लिंग के रूप में पूजित होते हैं), यह यात्रा कश्मीर में अत्यन्त प्रचलित है। आईने अकबरी, जिल्द २ पृ० ३६० ने इसका वर्णन किया है और कहा है कि अमावस के बाद १५ दिनों तक प्रतिमा बढ़ती जाती है और क्षीयमाण चन्द्र के साथ घटती जाती है। अमोहक - ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य० १९१११०५, पद्म० १।१८।९६-९९ (तपेश्वर इसी नाम से पुकारे गये थे और वहाँ के प्रस्तरखण्ड हाथियों के बराबर होते थे । अम्बरीषेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० ११८ ) ।
अम्बाजन्म -- ( सरक के पूर्व में ) वन० ८३।८१ ( यह अरिष्टकुण्ड - ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १६४।३०
( जहाँ पर अरिष्ट मारा गया था) ।
अरुण - ( कैलास के पश्चिम का पर्वत जहाँ शिव रहते हैं) वायु० ४७।१७-१८, ब्रह्माण्ड० २।१८।१८। अरुणा - ( १ ) ( पृथूदक के पास सरस्वती एवं दृषद्वती
के बीच की नदी) शल्य० ४३।३०-३५ । सरस्वती ने राक्षसों को पापों से मुक्त करने के लिए एवं इन्द्र को ब्रह्महत्या से पवित्र करने के लिए अरुणा से संगम किया; (२) ( कौशिकी की एक शाखा ) वन० ८४।१५६ | देखिए जे० ए० एस० वी०, जिल्द १७, पृ० ६४६-६४९ जहाँ नेपाल में सात कोसियों का वर्णन है, जिनमें अरुणा सर्वोत्तम कही गयी है; ( ३ ) ( गोदावरी के निकट ) ब्रह्म० ८९११, पद्म० ६।१७६।५९ | देखिए बम्बई गजेटियर, जिल्द १६, पृ० ४६८ ।
अरुणा - वरुणासंगम -- ( गौतमी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० ८९।१ एवं पद्म० ६।१७६।५९ ।
नारदतीर्थ है ) ।
अम्बिकातीर्थ - लिंग० १।९२।१६६ । अम्बिकावन --- ( सरस्वती नदी पर) भागवत० १०/
३४।१२ ।
अम्ल---- - ( कुरुक्षेत्र की एक पवित्र नदी) वाम० ३४।७। अयोध्या --- ( उ० प्र० के फैजाबाद जिले में ) घाघरा नदी
पर, सात पवित्र नगरियों में एक । यहाँ कुछ जैन सन्त उत्पन्न हुए थे, अत: यह जैनों का तीर्थस्थल भी है । अथर्ववेद १०।२।३१ एवं तै० आ० ११२७१२, वन० ६०।२४-२५ एवं ७०।२ ( ऋतुपर्ण एवं राम की राजधानी ), ब्रह्माण्ड० ४१४०/९१, अग्नि० १०९।२४ | रामायण (१।५।५-७ ) के अनुसार कोसल देश में सरयू बहती थी; अयोध्या जो १२ योजन लम्बी एवं ३ योजन चौड़ी नगरी थी, मनु द्वारा स्थापित कोसल-राजधानी थी। प्राचीन काल में कोसल सोलह महाजनपदों में एक था (अंगुत्तरनिकाय, जिल्द ४, पृ० २५२ ) । १०४
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आगे चलकर कोसल दो भागों में बँट गया; उत्तर कोसल एवं दक्षिण कोसल, जिन्हें सरयू या घाघरा विभाजित करती थी । रघुवंश ६।७१ एवं ९।१ के अनुसार अयोध्या उत्तर कोसल की राजधानी थी। और देखिए वायु० ८८ २०, जहाँ इक्ष्वाकु से लेकर बहुत-से राजाओं की सूची दी हुई है, एवं पद्म० ६ । २०८ ४६-४७ (दक्षिण कोसल एवं उत्तर कोसल के लिए) । साकेत को सामान्यतः अयोध्या कहा जाता है। देखिए तीर्थप्रकाश, पृ० ४९६ और 'साकेत' के अन्तर्गत । डा० बी० सी० ला ने एक बहुत ही प्रामाणिक एवं विद्वत्तापूर्ण लेख अयोध्या पर लिखा है (गंगानाथ झा रिसर्च सोसाइटी, जिल्द १, पृ० ४२३-४४३)। अयोगसिद्धि - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ९८ ) ।
अयोनिसंगम - ( नर्मदा के अन्तर्गत ) पद्म० १११८५८ । अरन्तुक - एक द्वारपाल । वन० ८३।६२। अरविन्द - ( गया के अन्तर्गत एक पहाड़ी ) वायु० १०९ । १५, नारदीय० २।४७२८३ ।
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