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धर्मशास्त्र का इतिहास
आदि के शिलालेखों तथा बहुत-से आधुनिक लेखों की चर्चा करना आवश्यक नहीं है। इस विषय में देखिए आर० गोपालन कृत 'हिस्ट्री आव दि पल्लवज आव काञ्ची' (सन् १९२८) जहाँ अद्यतन सामग्री के आधार पर काञ्ची का इतिहास प्रस्तुत किया गया
।
अब हम काञ्ची के विषय में कुछ पौराणिक वचनों का उल्लेख करेंगे। ब्रह्माण्डपुराण में आया है कि काशी एवं काञ्ची दोनों भगवान् शिव की दो आँखें हैं, काञ्ची प्रसिद्ध वैष्णव क्षेत्र है, किन्तु यहाँ शिव का सान्निध्य भी है । " बार्हस्पत्य-सूत्र ( ३।१२४ ) में ऐसा उल्लेख है कि काञ्ची एक विख्यात शाक्त क्षेत्र है, और देवीभागवत (७/३८१८) में आया है कि यह अन्नपूर्णा नामक देवीस्थान है । वामन० (१२/५० ) में लिखा हुआ है -- पुष्पों में जाती, नगरों में काञ्ची, नारियों में रम्भा, चार आश्रमों के व्यक्तियों में गृहस्थ, पुरों में कुशस्थली एवं देशों में मध्यदेश सर्वश्रेष्ठ हैं।
काची मन्दिरों एवं तीर्थों से परिपूर्ण है, जिनमें अत्यन्त प्रसिद्ध हैं पल्लव राजसिंह द्वारा निर्मित कैलासनाथ का शिव मन्दिर एवं विष्णु का वैकुण्ठ पेरुमल मन्दिर । प्रथम मन्दिर में कहा जाता है कि १००० स्तम्भ हैं।" एक प्राचीन जैन मन्दिर भी है।
पंढरपुर
म्बई प्रदेश में एक अति प्रसिद्ध तीर्थयात्रा-स्थल है पंढरपुर । प्रति वर्ष सैकड़ों सहस्रों यात्री यहाँ पधारते हैं। बम्बई गजेटियर (शोलापुर जिला) ने पंढरपुर के विषय में बहुत कुछ लिखा है (जिल्द २०, पृ० ४१५-४८२) । यह तीर्थ बहुत पुराना नहीं है । विठोबा का तीर्थ कब अवस्थित हुआ, यह कहना कठिन है, किन्तु १३वीं शताब्दी के मध्य भाग में इसका अस्तित्व था । पद्म० ( उत्तरखण्ड, १७६।५६-५८) ने भीमरथी के तट पर विट्ठल विष्णु की मूर्ति का उल्लेख किया है। इस मूर्ति के केवल दो ही हाथ थे और यह बिन्दुमाधव के नाम से विख्यात थी । पद्म० के इस भाग के प्रणयन - काल के विषय में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है। ऐसा कहा जा सकता है कि यह पश्चात्कालीन क्षेपक है जो लगभग १००० ई० सन् से आगे का नहीं हो सकता। आधुनिक पण्ढरपुर का नगर भीमा नदी के दाहिने तट पर अवस्थित है । नगर के मध्य में विठोबा का मन्दिर है, जो पवित्र कहा जाता है । इस मन्दिर के पीछे रखुमाई का मन्दिर है । रखुमाई विठोबा की धर्मपत्नी थीं । विठोबा के मन्दिर में पुरोहितों एवं नौकर-चाकरों की एक लम्बी जमात है, जिनके मुख्य पुरोहितों को 'बद्वे' कहा जाता है। बद्वे लोगों की संख्या अधिक है और वे लोग एक समय अपने को मन्दिर के स्वामी कहने लगे थे । किन्तु बम्बई के उच्च न्यायालय ने उन्हें मन्दिर का रखवाला घोषित किया और एक प्रबन्धकारिणी समिति बना दी जो मन्दिर की सम्पत्ति की रखवाली करती है। बद्वे लोगों को छोड़कर अन्य सेवक लोग सेवाधारी कहलाते हैं, जिनकी कई श्रेणियाँ हैं, यथा- पुजारी (जो देव पूजा में प्रधान स्थान रखते हैं), बेनारी ( जो
४९. नेत्रद्वयं महेशस्य काशीकाञ्चीपुरद्वयम् । विख्यातं वैष्णवक्षेत्रं शिवसांनिध्यकारकम् ।। ब्रह्मांड० (४।१९-१५) । ५०. पुष्पेषु जाती नगरेषु काञ्ची नारीषु रम्भाश्रमिणां गृहस्थः । कुशस्थली श्रेष्ठतमा पुरेषु देशेषु सर्वेषु च मध्यदेशः ॥ वामन० (१२।५० ) । देखिए 'साउथ इण्डियन इंस्क्रिप्शंस, जिल्द १, पृ० ८-२४, जहाँ काञ्ची के कैलासनाथ के मन्दिर में छठी शताब्दी की पल्लव-लिपि के लेखों का वर्णन है।
५१. डब्लू० एस० कंने ने अपनी पुस्तक 'पिक्चरेस्क इण्डिया' में लिखा है कि गिनने पर केवल ५४० स्तम्भ मिलते हैं।
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