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धर्मशास्त्र का इतिहास
रण कर सकते हैं (त्रिस्थलीसेतु, पृ० ३९ ) । इसी प्रकार पद्म०, कूर्म ०, अग्नि० आदि पुराणों ने यह कहकर कि यह तीन करोड़ गौओं के दान के बराबर है, माघ मास में तीन दिनों तक स्नान करने का गुणगान किया है। इन तीन दिनों के अर्थ के विषय में कई मत-मतान्तर हैं, जैसा कि त्रिस्थलीसेतु ( पृ० ३२ ) में आया है। कुछ मत ये हैं--वे तीनों दिन माघ की मकर संक्रांति रथसप्तमी एवं अमावस्या हैं; माघ के शुक्लपक्ष की दशमी के साथ लगातार तीन दिन; माघ के प्रथम तीन दिन माघ के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी के उपरान्त लगातार तीन दिन; तथा माघ के कोई तीन दिन ।
३६-३७ ) ; षष्टिस्तीर्थसहस्राणि षष्टिस्तीर्थशतानि च । माघमासे गमिष्यन्ति गंगायमुनसंगमे ॥ कूर्म ० ( १|३८|१ ) ; मत्स्य ० ( १०७/७) में भी लगभग ऐसा ही आया है।
४५. गवां कोटिप्रदानाद्यत् त्र्यहं स्नानस्य तत्फलम् । प्रयागे माघमासे तु एवमाहुर्मनीषिणः ॥ अग्नि० ( १११ १०-११ ) ; गवां शतसहस्त्रस्य सम्यग्दत्तस्य यत्फलम् । प्रयागे माघमासे तु व्यहं स्नातस्य तत्फलम् ॥ पद्म (आदि, ४४१८) एवं कूर्म ० ( ११३८२ ) ।
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