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अपात्र ब्राह्मणों की गणना
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(२१) क्षय रोगी, (२२) (विपत्ति में न पड़ने पर भी) पशु पालन करके जीविका चलानेवाला, (२३ एवं २४) बड़े भाई के पहले विवाह करनेवाला और पूताग्नियाँ प्रज्वलित करने वाला, (२५) पञ्चमहायज्ञों के प्रति उदासीन रहनेवाला, (२६) ब्राह्मणों या वेद का शत्रु, (२७ एवं २८) छोटे भाई के उपरान्त विवाह करनेवाला या पूताग्नियाँ जलानेवाला बड़ा भाई, (२९) श्रेणी या संघ का सदस्य, (३०) अभिनेता या गायक, (३१) ब्रह्मचर्य व्रत भंग करनेवाला वेदाध्यायी ब्राह्मण, (३२) जिसकी पहली पत्नी या एक ही पत्नी शूद्रा हो, (३३) पुनर्विवाहित विधवा का पुत्र, (३४) भेडा या काना, (३५) जिसके घर में पत्नी का प्रेमी रहता हो, (३६) जो किराये पर या पैसा लेकर पढ़ाता हो, (३७) जो किराया या शुल्क लेनेवाले गुरु से पढ़े, (३८) शूद्रों का शिक्षक, (३९) जिसका शिक्षक शूद्र हो, (४०) कर्कश या असत्य बोलनेवाला, (४१) व्यभिचारिणी का पुत्र, (४२) विधवा पुत्र, (४३) माता-पिता या गुरु को अकारण त्यागनेवाला, (४४) वेद (शिक्षक या शिष्य के रूप में) या विवाह के द्वारा पतितों से सम्बन्ध रखनेवाला, (४५) आग लगानेवाला, (४६) समद्र यात्रा करनेवाला, (४७) भाट (वन्दी), (४८) तेल
रनेवाला, (४७) भाट (वन्दी), (४८) तेली, (४९) झठा साक्ष्य देने या लेख्य प्रमाण बनानेवाला या कुट लेखक या कपट रूप से मद्रा बनानेवाला, (५०) पिता के विरोध में मुकदमा लड़नेवाला, (५१) दूसरों को जुआ खेलने को प्रेरित करनेवाला, (५२) सुरापी या मद्यपी, (५३) पूर्व जन्म के अपराध के दण्डस्वरूप उत्पन्न रोग से पीड़ित, (५४) महापातकी, (५५) कपटाचारी, (५६) मिष्टान्न या रस का विक्रेता, (५७) धनुष-बाण निर्माता, (५८) बड़ी बहिन के पूर्व विवाहित छोटी बहिन का पति, (५९) मित्र को धोखा देनेवाला, (६०) द्यूतशाला का पालक, (६१) पुत्र से (वेद) पढ़नेवाला, (६२) अपस्मार (मृगी) से पीड़ित, (६३) कठमाला, रोग से पीड़ित (६४) संक्रामक रोगी, (६५) पिशुन (चुगलखोर), (६६) पागल, (६७) अन्धा, (६८) वेद के विषय में विवाद करनेवाला, (६९) हाथियों, घोड़ों, बैलों या ऊँटों को प्रशिक्षण देनेवाला, (७०) ज्योतिष (फलित) की वृत्ति (पेशा) करनेवाला, (७१) चिड़ियों को फँसाने वाला, (७२) शस्त्रों की शिक्षा देनेवाला, (७३) जलमार्गों को दूसरे मुख की ओर करनेवाला, (७४) जलमार्गों का अवरोध करनेवाला, (७५) भास्कर्य शिल्प की शिक्षा या व्यवहार की वृत्ति करनेवाला, (७६) संदेशक, (७७) धन के लिए वृक्ष लगानेवाला, (७८) शिकारी कुत्तों को उत्पन्न करनेवाला, (७९) श्येन (बाज) पालने वाला, (८०) कुमारी को अपवित्र करनेवाला (या झूठमूठ कुमारी को बदनाम करनेवाला), (८१) जीव-जन्तुओं को पीड़ा देनेवाला, (८२) शूद्रों से जीविका ग्रहण करनेवाला, (८३) श्रेणियों के उपलक्ष्य में किसी यज्ञ का पौरोहित्य करनेवाला, (८४) साधारण आचरण-नियमों (अतिथि-सत्कार आदि) का उल्लंघन करनेवाला, (८५) धार्मिक कृत्यों के लिए असमर्थ, (८६) सदैव दान मांगने वाला, (८७) स्वयं कृषि करनेवाला, (८८) फोलपाँव से ग्रस्त, (८९) सद्व्यक्तियों द्वारा मत्सित, (९०) भेड़-पालक, (९१) भैंस पालनेवाला, (९२) पुनर्विवाहित विधवा का पति तथा (९३) (धन के लिए) शव ढोनेवाला। मनु (३।१६७) ने कहा है कि पवित्र नियमों के ज्ञाता ब्राह्मण को देवों एवं पितरों दोनों प्रकार के यज्ञों में भाग लेनेवाले उपर्युक्त ब्राह्मण त्याज्य समझने चाहिए और वे भी जो श्राद्ध भोजन में एक पंक्ति में ब्राह्मणों के साथ बैठने के अयोग्य हों।
मनु (३।१७०-१८२) ने यह संकेत किया है कि किस प्रकार ऐसे अयोग्य ब्राह्मणों को खिलाने से पितरों की संतुष्टि की हानि होती है और यह भी बतलाया है कि किस प्रकार ऐसे अयोग्य व्यक्तियों द्वारा खाया गया भोजन अखाद्य वस्तुओं के समान समझा जाना चाहिए। कूर्म (उत्तरार्ध २१॥३२) एवं हेमाद्रि (पृ०४७६ एवं ३६५) ने श्राद्ध में बौद्ध श्रावकों (साधुओं), श्रावकों (निर्ग्रन्थ जैन साधुओं), पांचरात्र एवं पाशुपत सिद्धान्तों के माननेवालों, कापालिकों (शिव के वाममार्गी भक्तों) तथा अन्य नास्तिक लोगों को आमंत्रित करने से मना किया है। विष्णुपुराण (३।१८।१७) ने एक ऐसे राजा की कथा कही है जिसने पवित्र स्थल में स्नान के उपरान्त किसी नास्तिक से बात की जिसके फलस्वरूप
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