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अन्त्येष्टि संस्कार
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ब्रह्मपुराण (शुद्धिप्रकाश, पृ० १५९) का कथन है कि शव को श्मशान ले जाते समय वाद्ययन्त्रों द्वारा पर्याप्त निनाद किया जाता है।"
शव को जलाने के उपरान्त, अन्त्येष्टि-क्रिया के अंग के रूप में कर्ता को वपन (मुंडन) करवाना पड़ता है और उसके उपरान्त स्नान करना होता है, किन्तु वपन के विषय में कई नियम हैं। स्मृति-वचन यों है-'दाढ़ीमूंछ बनवाना सात बातों में घोषित है, यथा-गंगातट पर, भास्कर क्षेत्र में, माता, पिता या गुरु की मृत्यु पर, श्रौताग्नियों की स्थापना पर एवं सोमयज्ञ में।"अन्त्यकर्मदीपक (पृ० १९) का कथन है कि अन्त्येष्टि-क्रिया करनेवाले पुत्र या किसी अन्य कर्ता को सबसे पहले वपन कराकर स्नान करना चाहिए और तब शव को किसी पवित्र स्थल पर ले जाना चाहिए तथा वहाँ स्नान कराना चाहिए, या यदि ऐसा स्थान वहाँ न हो तो शव को स्नान करानेवाले जल में गंगा, गया या अन्य तीर्थों का आवाहन करना चाहिए, इसके उपरान्त शव पर घी या तिल के तेल का लेप करके पुनः उसे नहलाना चाहिए, नया वस्त्र पहनाना चाहिए, यज्ञोपवीत, गोपीचन्दन, तुलसी की माला से सजाना चाहिए और सम्पूर्ण शरीर में चन्दन, कपूर, कुंकुम, कस्तूरी आदि सुगंधित पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए। यदि अन्त्येष्टि-क्रिया रात्रि में हो तो रात्रि में वपन नहीं होना चाहिए बल्कि दूसरे दिन होना चाहिए। अन्य स्मृतियों ने दूसरे, तीसरे, पांचवें या सातवें दिन या ग्यारहवें दिन के श्राद्ध-कर्म के पूर्व किसी दिन भी वपन की व्यवस्था दी है। आपस्तम्बधर्मसूत्र (१३३।१०।६) के मत से मृत व्यक्ति से छोटे सभी सपिण्ड लोगों को वपन कराना चाहिए। मदनपारिजात का कथन है कि अन्त्येष्टि-कर्ता को वपन-कर्म प्रथम दिन तथा अशौच की समाप्ति पर कराना चाहिए, किन्तु शुद्धिप्रकाश (पृ. १६२ ) ने मिता० (याज्ञ० ३।१७) के मत का समर्थन करते हुए कहा है कि वपन-कर्म का दिन स्थान-विशेष की परम्परा पर निर्भर है। वाराणसी सम्प्रदाय के मत से कर्ता अन्त्येष्टि-कर्म के समय वपन कराता है, किन्तु मिथिला सम्प्रदाय के मत से अन्त्येष्टि के समय वपन नहीं होता।
गरुडपुराण (२।४।६७-६९) के मत से घोर रुदन शव-दाह के समय किया जाना चाहिए, किन्तु दाह-कर्म एवं जल-तर्पण के उपरान्त रुदन-कार्य नहीं होना चाहिए।
३०. भरत ने चार प्रकार के वाघों की चर्चा यों की है-'ततं चैवावनवं धनं सुषिरमेव च।' अमरकोश ने उन्हें निम्न प्रकार से समझाया है--'ततं वीणादिकं वाधमानदं मुरजादिकम् । वंशादिकं तु सुषिरं कांस्यतालाविक धनम्।'
३१. गंगायां भास्करक्षेत्रे मातापित्रोरोम॒तौ। आधानकाले सोमे च वपनं सप्तसु स्मृतम् ॥ देखिए मिता० (यान० ३.१७), परा० मा० (१३२, पृ० २९६), शुद्धिप्रकाश (पृ० १६१), प्रायश्चित्ततत्त्व (१०४९३)। भास्कर क्षेत्र प्रयाग का नाम है।
३२. रात्री बग्ध्वा तु पिण्डान्तं कृत्वा वपनवजितम् । वपनं नेष्यते रात्रौ श्वस्तनी चपनक्रिया ॥ संग्रह (शुद्धिप्रकाश, पृ० १६१)।
___३३. अलुप्तकेशो यः पूर्व सोऽत्र केशान् प्रवापयेत् । द्वितीये तृतीयेऽह्नि पञ्चमे सप्तमेऽपि वा ॥ यावच्छादंप्रदीयेत तादित्यपरं मतम् ॥ बौधायन (परा० मा० ११२, पृ० २); वपनं वशमेऽहनि कार्यम् । तदाह देवलः । दशमेऽहनि संप्राप्ते स्मानं ग्रामा बहिर्भवेत् । तत्र त्याज्यानि वासांसि केशश्मश्रुनखानि च ॥ (मिता०, याज्ञ० ३।१७); मदनपारिजात (१० ४१६) ने देवल आदि को उद्धृत करते हुए लिखा है-'पञ्चभादिविनेषु कृतक्षौरस्यापि शुद्ध्यर्थ बशमदिनेपि वपनं कर्तव्यम्।'
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