Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे न्ति वा, त्रायस्त्रिंशाश्च, लोकपालाग्रमहिष्यो यथैव चमरस्य, नवरम्-द्वौ केवल कल्पौ जम्बूद्वीपौ द्वीपौ, अन्यत् तच्चैव, तदेवं भदन्त ! नदेवं भदन्त ! इति द्वितीयो गौतमो यावत्-विहरति ॥ सू० १२ ॥
टीका-अग्निभूतिः गौतमगोत्रस्तृतीयो गणधरः शक्रेन्द्रस्य तिष्यकभिन्न सामानिकदेवानां समृद्धयादीन् भगवन्तं पृच्छति-'जहणं भंते ! तीसए' इत्यादि। चेव णं संपत्तीए विकुविसु वा विकुव्वंति वा बिकुन्विस्संति वा) संपत्तिसे किसीने भी आजतक ऐसी विकुर्वणा नहीं की है, कोई नहीं करता है और आगे भी कोई ऐसी विकुर्वणा नहीं करेगा। (ताय त्तीसा य, लोगपाल, अग्ग महिसीणं जहेव चमरस्स) त्रायस्त्रिंशक, लोकपाल
और पट्ट देवियोंके विषयमें कथन चमरेन्द्रकी तरह जानना चाहिये । (नवरं-दो केवलकप्पे, जंबूदीवे दीवे, अण्णं तं चेव सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति दोचे गोयमे जाव विहरइ) परन्तु जो विशेषता है वह इस प्रकारसे है कि इन सबकी विकुर्वणाशक्ति समस्त पूरे दो जंबूद्वीपोंको अपने २ रूपोंसे भर सकनेकी है- ऐसा जानना चाहिये । बाकी और सब कथन वैसा ही है। हे भदन्त ! आप देवानुप्रियने जो कहा है वह सब ऐसा ही है, हे भदन्त ! ऐसा ही है. इस प्रकार कहकर द्वितीय गणधर अग्निभूति स्वस्थान पर विराजमान हो गए।
टीकार्थ- गौतम गोत्रीय द्वितीय गणधर अग्निभूति, शक्रेन्द्र के नि३५ ४२१॥ भोट ०४ मा पात ४डी छे. (नो चेव णं संपत्तीए विकुब्बिसु वा, विकुव्वंत्ति वा, विकुचिस्संति वा) ये सारी सुधी भनी मा विष्ण શકિતને પ્રયોગ કર્યો નથી, વર્તમાનમાં કરતા પણ નથી અને ભવિષ્યમાં કરશે પણ नही (तायत्तीसाए, लोगपाल, अग्गमहिसीणं जहेव चमरम्स) त्रायशि वो લેપાલ અને પટ્ટરાણીઓનું કથન ચમરેન્દ્રના ત્રાયસ્ત્રિ શકે લેકપોલ અને પટ્ટરાણીએ, प्रभा १ सभ.. (नवरं) परंतु (दो केवलकप्पे, जंचूदीवे दीवे अण्णं तं चेव) વિશેષતા એ છે કે શકેન્દ્રના ત્રાયશ્ચિકે, લેકપાલ અને પટ્ટરાણીઓ વિફર્વણ શકિતથી ઉત્પન્ન કરેલાં રૂપે વડે બે જંબૂદ્વીપને ભરી શકવાને સમર્થ છે બાકીનું કથન બંનેમાં सरभु . छे. (सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति दोच्चे गोयमे जाव विहरइ) त्यारे भीत ગૌતમ અગ્નિભૂતિએ કહ્યું- “હે ભદન્ત ! આપનું કથન યથાર્થ છે. આપની વાત તદ્દન સાચી છે” એમ કહીને વંદણ નમસ્કાર કરીને તેઓ તેમના સ્થાને બેસી ગયા છે સૂ. ૧૨
ટીકાથ– ગૌતમ ગેત્રીય બીજા ગણધર અગ્નિભૂતિ મહાવીર પ્રભુને, કેન્દ્રના
श्री भगवती सूत्र : 3