Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीचे
पूर्वं दर्शनविषयीकृतान भाषितान् पश्चात् भाषणाविषयीकृतान् ' पासंडत्थेव ' पाखण्डस्थान धर्मविशेषधारकान् 'गिहत्थेय ' गृहस्थांच 'पुण्बसंगतिए य' पूर्वसङ्गतिकांश्च प्रवज्या काल पूर्वपरिचितांश्च मातृपित्रादींश्च ' पच्छासंगतिएय ' पश्चात्सङ्गतिकांश्च प्रव्रज्या ग्रहणपूर्व श्वशुरश्वश्वप्रभृतिकान् 'परियायसंगतिए ' पर्यायसङ्गतिकांश्च समानप्रब्रज्यापर्याययुक्तान् एतान् सर्वान 'आपुच्छित्ता ' आपृच्छय ताम्रलिप्त्या नगर्या: 'मज्झ मज्झेणं' मध्यं मध्येन मध्यभागेन 'निगच्छित्ता' निर्गत्य ' पाउगं' पादुकाम् 'कुंडियमादीयं ' कुण्डिकादिकम् 'उवगरणं' उपकरणम् 'दारुमयं च पडिग्गहियं' दारुमयंच प्रतिग्रहकं पात्रविशेजो मेरे पहिलेके देखे हुए मनुष्य है, और जिनके साथ मैं पहिले बातचीत करता रहा हूं-उनसे, 'पासंडत्थेय' तथा जो पाषंडस्थ हैधर्मविशेष के धारक हैं उनसे तथा 'गिहत्थेय' जो गृहस्थजन हैं उनसे, तथा 'पुव्व संगतिए य' प्रव्रज्या ग्रहण करने के पहिले जिनसे परिचय रहा है ऐसे माता पिता आदि जनों से, तथा 'पच्छासंगतिएय' संसार अवस्था में जिनके साथ पश्चात् संगति हुई है ऐसे जो श्वसुर सासुजी आदि जन हैं उनसे, तथा - ' पर्याय संगतिकान् ' जिनकी प्रव्रज्या पर्याय मेरी प्रव्रज्या पर्याय के बराबर है ऐसे जनों से 'आपुच्छित्ता' पूछकर तथा 'तामलित्तीए नयरीए मज्झमज्झेणं' ताम्रलिप्ती नगरी के ठीक बीचोबीच से 'निगच्छत्ता' निकलकर 'पाउगं' खडाऊओंको, कुंडिमादीयां' कुण्डिका आदि 'उवगरणं' उपकरण को 'दारुमयं च पडिग्गाहियं' तथा काष्ठनिर्मित प्रतिग्रह - पात्र को भट्ठेय ' त्यां रहेता भारा पूर्व पश्थिीत बोओने तथा भेभनी साथै वातशीत ४२वानी योजयाशु हुती मेवा बोओने, 'पासंडत्थेय ' તથા પાષંડસ્થ લેાકાને ( ધર્મविशेषना धारउने) तथा 'गिहत्थेय' गृहस्थाने, 'पुव्त्रसंगतिए : પ્રવ્રજ્યા ગ્રહણ कुर्या पडेसांना भारां भाता, पिता आदि सभां संधीने "पच्छा संगतीए य" જેની સાથે પાછળથી સંબધ થયા છે એવાં સાસુ, સસરા આદિને, તથા " पर्याय संगतिकान् ” समासिन दीक्षापर्यायवाणा साधुमने “आपुच्छित्ता" पूछीने (तेमनी ससा सहने ) " तामलित्तीए नयरीए मज्ज्ञं मज्झेणं " ताम्रलिप्ती नगरीनी वस्यो वय्यथी 'निगच्छित्ता' नीजीने 'पाउगं' पाहुअ', 'कुडिमादीयां' उभ आह उ५४२शोने तथा “दारुमयं च पडिग्गहिये" अष्ठनिर्मित पात्रने “एगंते एडित्ता"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩