Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्र. टी. श.३ उ.१ २.२२ बलिच्चाराजधानिस्थदेवादिपरिस्थितिनिरूपणम् २२१ यन्ति, अन्योन्यं शब्दयित्वा एवम् अवादिषुः- एवंखलु देवानुमियाः ! बलिचश्चा राजधानी अनिन्द्रा, अपुरोहिता, वयंच देवानुप्रियाः ! इन्द्राधीनाः, इन्द्राधिष्ठिताः, इन्द्राधीनकार्याः, अयञ्च देवानुप्रियाः ! तामलिः बालतपस्वी ताम्रलिप्त्याः नगर्याः बहिः उत्तरपौरस्त्ये निवर्तनिकमण्डलम् आलिख्य, संलेखना-जूषणाषितः प्रत्याख्यातभक्तपानः, पादपोपगमनं निष्पन्नः, तत् मण्णं सदावेंति) उन्होंने एक दूसरे को बुलाया ( अण्णमण्णं सहावेत्ता) एक दूसरे को बुला करके (एवं वयासी) इस प्रकार से कहा – ( एवं खलु देवाणुप्पिया। बलिचंचा रायहाणी अणिंदा अपुरोहिया) हे देवानुप्रियो ! बलिचंचा राजधानी इस समय इंद्र और पुरोहित से रहित है। (अम्हे य णं देवाणुप्पिया इंदाधीणा, इंदाधिटिया इंदाधीणकन्जा) तथा हे देवानुप्रियो ! अपन सब इन्द्र के आधीन रहनेवाले हैं, इन्द्र के आधार पर अपना जीवन हैं, तथा जितना भी अपना कार्य होता है वह सब इन्द्रकी आज्ञा के अनुसार ही होता है। (अयंच देवाणुप्पिया! तामली बालतवस्सी) यह जो बालतपस्वी तामली है वह (तामलित्तीए नगरीए बहिया) ताम्रलिप्ती नगरी के बाहर (उत्तरपुरथिमे दिसिभागे) ईशानकोण में (नियत्तणियमंडलं आलिहिता) निर्वर्तनिकमंडल को लिखकर (संलेहणा जूसणा जूसिए) संलेखना का सेवन कर रहा है। और भवधिज्ञानथी ते तपस्वी ताभिसने नये. ( अण्णमण्णं सद्दावेति) तेने निधन तेभर मे४ मीनने साताव्या. ( अण्णमण्णं सदावेत्ता एवं क्यासी) मे मीन मातादीने (धाये मे॥ भजीत) २मा प्रमाणे ४ह्यु- ( एवं खलु देवाण्णुप्पिया ! बलिचंचा रायहाणी अणिंदा अपुरोहिया) वानुप्रियो ! समi lel मा मलियया २४धानी न्द्र भने पुडितथा २डित छे. ( अम्हे य णं देवाणुप्पिया
दाधीणा, इंदाचिट्ठिया, इंदाधीणकजा) वानुप्रिये ! भापणे सौ छन्द्रने माधान રહેનારા છીએ, ઈન્દ્રના આધારે આપણું જીવન છે, અને આપણું સઘળાં કાર્યો ઈન્દ્રની आज्ञा अनुसार यया ४२ छे. ( अयं च देवाणुप्पिया! तामली बालतबस्सी) मा मारत५वी ती छे ते ( तामलित्तीए नयरीए बहिया) ताम्रावती नगरीनी मार (उत्तरपुरथिमे दिसिभागे) शानभा (नियत्तणियमंडलं आलिहिता) नितन भ36 सालेभान-स्थाननी भयह शक्तिी २५ हारीने (संलेहणा जूसणा जूसिए) समानानुं पान ४२\ २॥ छे. मने (भत्तपाणपडि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩