Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.३उ.२ मू. ११ शक्रचमरयोर्गतिनिरूपणम् ४८५ तान् किलसंख्यातभागान् द्वि योजनपरिमितान् ऊर्ध्वगच्छति, सूत्रे संख्यात भागमात्रोपादानस्यैव सत्वेन तस्योक्तानियतभागव्याख्यानमप्रामाणिकम् इति न वक्तव्यम् जावइअं खेत्तं चमरे असुरिंदे, असुरराया अहे उचयइ एक्केणं समएणं तं सक्के दोण्डिं' तथा 'सक्कस्स उप्पयणकाले, चमरस्स य उवयणकाले तेणं दोण्हि वि तुल्ला' इतिवचनद्वयात यावताकालेन द्वियोजनं चेदूर्ध्व गच्छति
और जब मिला दिया जाता है- तब चार संख्यात भाग कहे जाते हैं-ये चार संख्यात भाग २ योजन प्रमाण हो जाते हैं- इतने क्षेत्र तक इन्द्र-शक्र ऊपर में एक समय में जाता है। यहां पर ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये कि 'सूत्र में तो संख्यातभागमात्र का भी उपादान किया गया है- फिर आपने इस प्रकारके विभाग करके यह व्याख्यान कैसे किया है' क्यों कि 'जावइयं खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया अहे उवयइ एक्केणं समएणं, तं सक्के दोहि' तथा 'सकस्स उप्पयणकाले चमरस्स य उवयणकाले तेणं दोहि वि तुल्ला' इन दो वचनों से यही बात सिद्ध होती है अर्थात्- डेढ़गुणता एवं द्विगुणता फलित होती है-- तात्पर्य कहनेका यह है कि असुरेन्द्र असुरराज चमर एक समय में जितने क्षेत्रतक नीचे जाता है उतने ही क्षेत्रतक नीचे जाने में शक्र को दो समय लगते हैं। तथा शक का जो ऊपर जाने का काल है वह, एवं चमर का जो नीचे जाने का काल है वह ये दोनों समान हैं। इस कथन से यह निश्चित हो जाता है कि शक्र नीचे जितने क्षेत्रतक दो समय में जाता है इतने ही ક્ષેત્રને શકનું ઉર્ધ્વગમન ક્ષેત્ર સમજવું અહી એવી શંકા ન કરવી જોઈએ કે “સૂરામાં તે સંખ્યાત ભાગનું જ ઉપાદાન કર્યું છે, છતાં આપે કેવી રીતે આ પ્રકારના ભાગે पाया छ ?' ४।२९ में जावइयं खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया अहे उवयइ एक्केणं समए णं तं सके दाहि' तथा 'सक्कस्स उप्पयणकाले चमरस्स य उवयणकाले तेणं दाहि वि तुल्ला' मा भन्न सूत्रोथी को पात सिद्ध थाय छ-मेटो 3 u ala ગણુપણું સિદ્ધ થાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમર એક સમયમાં જેટલા ક્ષેત્ર સુધી નીચે જાય છે, એટલા ક્ષેત્ર સુધી નીચે જવામાં શકને બે સમય લાગે છે. તથા શકનો ઉર્ધ્વગમન કાળ અને ચમરને અાગમન કાળ સરખે જ છે. આ કથનથી એ વાત સિદ્ધ થાય છે કે શક નીચે જેટલા ક્ષેત્ર સુધી એ સમયમાં જાય છે, એટલાં જ ક્ષેત્ર સુધી ઊંચે જવાને તેને એક સમય લાગે છે. આ રીતે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩