Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 892
________________ भगवतीसने शब्दपरिणामश्च (शुभाशुभशब्दपरिणाम इत्यर्थः) ततः चक्षुरिन्द्रियविषये पुच्छा ? गौतम ! विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-सुरूपपरिणामः दूरूपपरिणामश्च, ततो घ्राणेन्द्रियविषये पृच्छा ? गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-सुरभिगन्ध परिणामोदुरभिगन्धपरिणामश्च, एवं जिहवेन्द्रियविषये पृच्छा ? गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा सुरसपरिणामः, दूरस परिणामश्च, तथा 'स्पर्शेन्द्रिय विषये पृच्छा? द्विविधः प्रज्ञप्तः सुखस्पर्शपरिणामः, दुःखस्पर्शपरिणामश्च कचित्तु 'इ दिय विसए, उच्चावय-मुभिणो' इति दृश्यते 'सुन्द्रियविषयः, उच्चावच दो प्रकारका होता है-एक शुभ शब्दरूप और दूसरा अशुभ शब्दरूप इसी प्रकार से उन्होंने वहां चक्षुइन्द्रियके विषयमें भी प्रश्न किया है और इसका उत्तर प्रभुने 'चक्षुरिन्द्रिय के विषयभूत हुए रूपका परिणाम-शुभ और अशुभरूप दो प्रकार से होता है। ऐसा कहा है । नासिका इन्द्रियके विषय में भी ऐसा ही प्रश्न प्रभुसे उन्होंने पूछा है और इसके उत्तरमें प्रभुने उनसे 'विविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा सुरभिगन्धपरिणामः दुरभिगंधपरिणामश्च' ऐसा कहा है अर्थात् घ्राणेन्द्रिय के विषयभूत कहे गये गंध गुणका परिणाम सुरभिगंधरूपसे और दुरभिगंधरूप से होता है जिहा इन्द्रिय के विषयभूत रस गुणका परिणाम भी इस प्रकारसे दो प्रकारका सुरसरूप परिणाम और दूरस-बूरेरसरूप परिणाम इस तरह दो तरहका प्रकट किया गया है । स्पर्शन इन्द्रियके विपयभूत स्पर्शन गुणमें भी इसी | प्रकारसे प्रश्न किया गया है और प्रभुने इसके उत्तरमें उन्होंसे ऐसा પ્રમાણે છે- ભાષાવર્ગણાઓનું પરિણમન બે પ્રકારનું હોય છે- (૧) શુભ શબ્દરૂપ પરિણમન અને (૨) અશુભ શબ્દરૂપ પરિણમન. એ જ પ્રકારનો પ્રશ્ન ચક્ષુ ઈન્દ્રિયના વિષયમાં પણ ગૌતમે પૂછ છે અને મહાવીર પ્રભુએ તેને આ પ્રમાણે ઉત્તર આપે છે. ચક્ષુરિન્દ્રિય દ્વારા વિષયભૂત બનેલા રૂપનું પરિણામ બે પ્રકારનું હોય છે– શુભ भने अशुभ. ધ્રાણેન્દ્રિયના વિષયમાં પણ એવો જ પ્રશ્ન પૂછવામાં આવ્યું છે, અને મહાવીર प्रभुमे तने। मा प्रमाणे उत्तर माया छ- "द्विविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा सुरभिगन्धपरिणामः दुरभिगन्धपरिणामश्च' नाणेन्द्रियनी विषयभूत अपना प्रा२ना પરિણામ કહ્યા છે– સુરભિગધરૂપ પરિણામ અને દુરભિગંધરૂપ પરિણામ. રસનેન્દ્રિયના વિષયભૂત રસ ગુણના પરિણામ પણ બે પ્રકારના કહ્યા છે– સુરસરૂપ પરિણામ અને દૂરસ (ખરાબ રસ) રૂ૫ પરિણામ સ્પર્શન ઈન્દ્રિયના વિષયભૂત સ્પર્શ ગુણના પરિણામ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩

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