Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 897
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.१० सू.१ देवानां सभास्वरूपनिरूपणम् ८८३ प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-' गोयमा !' हे गौतम ! तो परिसाओ' तिस्रः पर्षदः 'पण्णताओ' प्रज्ञप्ताः, ता एवाह-'तं जहा'-तद्यथा-'समिआ' शमिका, श्रेष्ठत्वेन शान्तस्थिरमकृतितया शमवती अथवा अत्यन्तोपादेयवचनतया स्वस्वामिन : क्रोधौत्सुक्यादिभावान् शमयतीति, 'शमिका' तथा 'चंडा' चण्डा, प्रथमवत् तादृशमहत्त्वाभावेन किश्चित्क्रोधादिसत्वात् 'चण्डा' इति व्यपदिश्यते, एवं 'जाया' जाता, अनुत्तमत्वेन प्रकृत्यादिमहत्त्वरहिततया अनवसरे कोपादिना जायमानत्वात् 'जाता' इति व्यवहियते, एताश्च तिस्रः क्रमशः 'अभ्यन्तरा' रराज 'चमरस्स' चमरकी 'परिसाओ' परिषदा 'कइपण्णत्ताओ' कितनी कही गई हैं ? इसका उत्तर देते हुए भगवान्ने गौतमसे कहा 'गोयमा' गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमरकी परिषदा 'तओ' पण्णत्ताओ' तीन कही गई हैं 'तं जहा' वे इस प्रकारसे हैं 'समिया' शमिका अपनी शान्त एवं स्थिर प्रकृतिके द्वारा श्रेष्ठ होनेसे शमवती, अथवा-अत्यन्त उपादेय वचनवाली होने के कारण अपने स्वामी के क्रोध एवं औत्सुक्य आदि भावोंके शमन करनेवाली होनेसे शमिका, तथा 'चंडा' शमिका परिषदा की तरह उस प्रकारके महत्वका अभाव होनेसे कुछ२ क्रोधादिक के सद्भाव हो जानेके कारण इस नामावाली, शान्त प्रकृति आदिसे रहित होनेके कारण अनुत्तम होने से, कोपादिकको विना अवसरके भी करनेवाली होनेके कारण 'जाता' इस नामावाली-ऐसी ये तीन परिषदाएँ हैं। प्रथम परिषदा जो शमिका है वह असुररण्णो चमरस्स' मसुरेन्द्र, असु२२।४, यमरनी 'परिसाओ कइ पण्णत्ताओ?' टी परिषह। (सभासी) ४छ ?? उत्तर- 'गोयमा!' गौतम! असुरेन्द्र, ससु२२।०४ यमनी परिसाओ तओ पण्णत्ताओ' न परिष। ४ी छे. 'तंजहा' तेन नाम नाथे प्रमाणे छ'समिया, चंडा. जाता' सभि (सभिता), न्य। अने ता. 'समिका' मा परिषद पातानी शान्त मने स्थि२ प्रकृति दास श्रेष्ठ हावाथा શમતાયુક્ત છે. અથવા અત્યંત ઉપાદેય વચનવાળી હોવાથી તેના સ્વામિના કેપ, ઔસુક્ય (ઉત્સુકતા) આદિ ભાવેનું શમન કરનારી હોવાથી તેનું નામ શમિકા છે. 'चंडा' मा परिष४ थाउ म पाहिना समाववाणी डावाथी तनुं नाम । ५च्यु छ. 'जाता' मा परिष४ शान्त प्रति माहिथी २हित डावाथी, मनुत्तम હોવાથી; કોઈ પણ પ્રકારના કારણ વિના કે પાદિક કરનારી હોવાથી, તેનું નામ “જાતા” પડ્યું છે. આ પ્રકારની ત્રણ પરિષદે છે. પહેલી શમિકા નામની પરિષદે આભ્યન્તર શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩

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